दिल्ली विश्वविद्यालय की संस्कृति परिषद एवं मिरांडा हाउस कॉलेज के संयुक्त तत्वाधान में मिरांडा हाउस में लोक/ जनजातीय वाद्य संगीत प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। इस प्रतियोगिता में विभिन्न कॉलेजों की कुल 11 टीमों ने भाग लिया। जिन्होंने भारत के विभिन्न राज्यों के लोक एवं जनजातीय संगीत की प्रस्तुतियां दीं। इस अवसर पर दिल्ली वि.वि. संस्कृति परिषद के चेयर पर्सन एवं फॉक आर्केस्ट्रा के फाउंडर अनूप लाठर मुख्य अतिथि के रूप में और संस्कृति परिषद के डीन रवीन्द्र कुमार विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थिति रहे। अनूप लाठर ने अपने संबोधन में कहा कि लोक एवम जनजातीय संगीत प्रतियोगिता आयोजित करने का उद्देश्य ही यह है कि विद्यार्थियों को लोक से भी जोड़ा जाए।
अनूप लाठर ने अपने संबोधन में कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय की संस्कृति परिषद विद्यार्थियों के मध्य संस्कृति के विकास और उसके मूल्यों को विकसित करने के लिए निरंतर कार्यरत है। यह हमारी समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा और आपसी विचारों की सहभागिता का साझा मंच है। उन्होंने कहा कि संक्रमण के इस दौर में जब हम अपनी विरासत को भूल रहे हैं, ऐसे में लोक वाद्य यंत्रों के पुनरुद्धार के लिए एक कार्यक्रम के रूप में लोक आर्केस्ट्रा अपरिहार्य है।
प्रो. रवीन्द्र कुमार ने अपने संबोधन में कहा कि संगीत एक साधना है जो न केवल एक कला रूप है अपितु मनुष्य के व्यक्तित्व को भी समायोजित करती है। इस तरह के कार्यक्रम आयोजित करने का उद्देश्य विद्यार्थियों को अपनी संस्कृति के प्रति जागरूक करना है। उन्होंने कहा कि प्रतियोगिता का निर्णय गीत के चयन, उसमें निहित आकांक्षा, भाव और विचार तथा उसकी प्रस्तुति के आधार पर किया गया। मिरांडा हाउस की प्राचार्या प्रो. बिजयलक्ष्मी नंदा ने कहा कि हमें इस बात का गर्व और ख़ुशी है कि विरासत को पुनः अर्जित करने में हम भी भागीदारी कर रहे हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय संस्कृति परिषद ने हमें यह मौका दिया, इसके लिए हम उनके आभारी है। उन्होंने कहा कि मिरांडा हाउस अपनी परंपरा और कलाओं को संरक्षित रखने के लिए प्रतिबद्ध है और रहेगा।
विभिन्न लोक-संगीत रूपों में उत्तर-पश्चिम, पूर्वी, पंजाबी, नागा छठ, बिहारी, बंगाली और अवधी लोक गीत प्रस्तुत किए गए। रंग-बिरंगे लोक-परिधानों में सजे प्रतिभागियों को देखकर भारत की बहुधर्मी और बहुमुखी संस्कृति के दर्शन सहज ही हो रहे थे। कार्यक्रम के दौरान मिरांडा हाउस का सभागार दर्शकों से खचाखच भरा हुआ था। मधुर गीत संगीत के तालमेल ने समां बांध रखा था। जिसमें दर्शकों का अति उत्साह प्रतिभागियों को और अधिक प्रोत्साहन दे रहा था।
प्रतियोगिता का प्रथम पुरस्कार लक्ष्मीबाई कॉलेज, द्वितीय पुरस्कार मिरांडा हाउस एवं तृतीय पुरस्कार एस जी बी टी खालसा कॉलेज को गए। निर्णायक के रूप में डॉ. विश्व रमन निर्मल् (फिल्म निर्माता एवं थियेटर कलाकार), सुरेश गंधर्व (जाने-माने गायक एवं संस्थापक तान तरंग संगीत सभा) एवं डॉ.संतोष नाहर (सहायक निदेशक केन्द्रीय ध्वनि अभिलेखागार, आकाशवाणी) उपस्थित रहे। डॉ. प्रेरणा मल्होत्रा (सदस्य, संस्कृति परिषद) इस कार्यक्रम की पर्यवेक्षक रहीं। कार्यक्रम के आयोजन में प्रो. बाशोबी गुप्ता, डॉ. निशा नाग, एवं डॉ. कविता भाटिया ने सक्रिय योगदान दिया।