डीयू के राजनीति विज्ञान विभाग द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस में हुआ भारत की विदेश नीति पर मंथन

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*भारत-जापान संबंधों का एक अच्छा उदाहरण है दिल्ली मेट्रो: ओनो कीची

*नए उभरते राष्ट्रवाद एवं वोकिज्म के बीच भारत को अपना अलग “ब्रांड भारत” बनाने की जरूरत: राम माधव  

*विकसित भारत के लिए हमें चाहिए 9% का ग्रोथ रेट: कुलपति प्रो. योगेश सिंह

भारत में जापान के राजदूत ओनो कीची ने कहा कि दिल्ली मेट्रो भारत-जापान संबंधों का एक अच्छा उदाहरण है। अब समय आ गया है कि इस संबंध को और आगे बढ़ाया जाए क्योंकि जापान की टेक्नोलोजी भारत के लिए जरूरी है। ओनो कीची दिल्ली विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस में बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे। “इंडियन फ़ोरन पॉलिसी अंडर मोदी 3.0: चैलेंजेज़ एंड अपॉर्चुनिटी” विषय पर आयोजित इस कॉन्फ्रेंस का आयोजन दिल्ली स्कूल ऑफ ट्रांसनेशनल अफेयर्स के सहयोग से किया गया था। इस अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए इंडिया फ़ाउंडेशन के अध्यक्ष राम माधव ने कहा कि नए उभरते राष्ट्रवाद एवं वोकिज्म के तर्क-वितर्क के मध्य भारत को अपनी एक अलग ब्रांड भारत (नई पहचान) बनाने की आवश्यकता है। कॉन्फ्रेंस के पहले दिन विभिन विद्वानों द्वारा भारत की विदेश नीति पर गहन मंथन हुआ।

जापान के राजदूत ओनो कीची ने अपने भाषण की शुरुआत हिंदी में धन्यवाद से करते हुए कहा कि वह भारत की विविधता और अतिथि देवो भव के दर्शन से काफी प्रभावित हुए हैं। कीची ने कहा कि कॉन्फ्रेंस का शीर्षक न सिर्फ भारत बल्कि पूरे विश्व के लिए काफी महत्वपूर्ण है। उन्होंने अमेरिका के साथ संबंधों को मजबूत करने पर बल देते हुए कहा कि जिन देशों के साथ हमारे हित साझा होते है उन देशों के साथ संबंध और सुदृढ़ करने की आवश्यकता है। भारत और जापान का सम्बन्ध प्राचीन समय से चला आ रहा है। भारत और जापान एक दूसरे पर निर्भर है। उन्होंने कहा कि जापान की भारत के साथ 60% व्यापारिक हिस्सेदारी “मेक इन इंडिया” पॉलिसी के तहत निर्माण क्षेत्र में है। कीची ने कहा कि 2025 में हमारे पास इस संबंध को आगे बढ़ाने का मौका है क्योंकि भारत और जापानी प्रधानमंत्री एक दूसरे के देशों का दौरा करेंगे।

मुख्य वक्ता राम माधव ने अपने संबोधन में कहा कि मोदी 3.0 केवल 5 वर्षों का कार्यकाल नहीं दर्शाता बल्कि अगले 20-25 वर्षों तक की विदेश नीति के लिए एक दिशा दृष्टि प्रदान करता है। नए उभरते राष्ट्रवाद एवं वोकिज्म के तर्क-वितर्क के मध्य भारत को अपनी एक अलग ब्रांड भारत (नई पहचान) बनाने की आवश्यकता है। जिसके लिए उन्होंने भारत की विदेश नीति के लक्ष्यों की 10 मुख्य बिंदुओं में व्याख्या की।

कॉन्फ्रेंस के उद्घाटन स्तर की अध्यक्षता करते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने कहा कि 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने के लिए भारत को लगातार 9% ग्रोथ रेट की जरूरत है। ऐसे में कॉन्फ्रेंस का यह विषय बहुत ही उपयुक्त है। कुलपति ने कहा कि 20 जनवरी 2025 से एक नए प्रभावशाली विश्व का आरंभ होने जा रहा है। इस दिन अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प राष्ट्रपति का पदभार ग्रहण करेंगे। ऐसे में इन नई चुनौतियां एवं परिवर्तन के प्रति भारत अति उत्सुक है।

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद इंस्टीट्यूट ऑफ एशियन स्टडीज़ के कार्यकारी परिषद सदस्य डॉ राजीव नयन ने अपने विशेष व्याख्यान में कहा कि विश्व व्यवस्था आज के युग में स्थिर होने के बजाय इसमें  निरंतर गतिशीलता बनी हुई है। उसके बाद हमारी वर्तमान काल में भारत पश्चिमी साहित्य पर पूर्णता निर्भर न होकर अपनी पूर्ण प्रतिष्ठित इतिहास को पुनर्जीवित कर रहा है। भारत के विदेश नीति का मार्गदर्शन करने के लिए राजीव नयन ने भारतीय स्रोतों पर बल देते हुए कहा कि “विश्वजीत बनने के लिए विश्वकर्मा बनना पड़ेगा”।

राजनीति विज्ञान विभाग की अध्यक्ष प्रो. रेखा सक्सेना द्वारा कार्यक्रम के आरंभ में अतिथियों का स्वागत किया गया। प्रो. रेखा सक्सेना ने कहा कि भारत की विदेश नीति के प्रतिमानो में परिवर्तन की एक झलक दिखाई दे रही है साथ ही इस क्षेत्र में रणनीतिक व्यावहारिकता देखी गई है। मोदी सरकार ने भारत को एक महत्वपूर्ण कर्ता के रूप में स्थापित करने के लिए साहसिक कदम उठाए है। परंतु चुनौतियाँ समान रूप से बनी हुई हैं। साथ ही हिंद महासागर और दक्षिण एशिया में चीन की भूमिका, भूटान जैसे देशों के साथ संबंध मजबूत होते जा रहे हैं, लेकिन बांग्लादेश, श्रीलंका और पाकिस्तान में स्थिति पर निगरानी की आवश्यकता है।

प्रो. संजीव कुमार एच.एम ने अपने संबोधन में कहा कि इस कॉन्फ्रेंस के पीछे  का उद्देश्य मोदी के नेतृत्व का भारत की विदेश नीति  पर हुए प्रभाव को समझना है, जिसके माध्यम से भारत ने  लुटियनवाद से राष्ट्रवाद का सफर तय किया है।  मोदी सरकार ने विदेश नीति के सिद्धांत एवं उसकी भावना  को जमीनी स्तर तक पहुंचाने में सहयोग किया है। इस अवसर पर दक्षिणी परिसर के निदेशक प्रो. श्री प्रकाश सिंह, प्रो. डॉ. सुमित कुमार, अनेकों विशेषज्ञ, शिक्षाविद, राजनयिक और शोध विद्वान उपस्थित रहे।

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