*वाग्देवी, वाग्धारा, वागमाता सरस्वती पूजन के साथ हुआ यज्ञ का आयोजन
बसन्त पंचमी के अवसर पर दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दू अध्ययन केन्द्र में वसंतोत्सव कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के आरंभ में वाग्देवी, वाग्धारा, वागमाता सरस्वती के पूजन और तत्पश्चात यज्ञ का आयोजन हुआ। इस अवसर पर डीयू दक्षिणी परिसर के निदेशक प्रो. श्री प्रकाश सिंह बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित रहे। उनके साथ विशिष्ट अतिथि के तौर पर डीएसडबल्यू प्रो. रंजन कुमार त्रिपाठी और गांधी भवन के निदेशक प्रो. के.पी सिंह उपस्थित रहे। इनके साथ ही हिन्दू अध्ययन केन्द्र के निदेशक प्रो. ओमनाथ बिमली, कार्यक्रम संयोजिका एवं सह निदेशक डॉ प्रेरणा मल्होत्रा, प्रो. भारतेंदु पांडे और प्रो. अरुण कुमार मिश्र सहित अनेकों गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।
कार्यक्रम निदेशक प्रो. ओम नाथ बिमली ने अपने स्वागत उद्बोधन में सभी अतिथियों का अभिवादन करते हुए भारतीय ज्ञान पद्धति में सरस्वती तत्व की महिमा की व्याख्या की। उन्होंने ज्ञान एवं शिक्षा के विभिन्न आयामों से भी परिचित कराया। तदुपरान्त प्रो. रंजन त्रिपाठी ने अपने वक्तव्य में विद्यार्थियों की चिति को जागृत करते हुए भारत भूमि में जन्म पाकर इस जन्म को सार्थक करने हेतु सभी को प्रेरित किया। हिंदू अध्ययन केंद्र के मुख्य उद्देश्यों को रेखांकित करते हुए उन्होंने छात्रों एवं गुरुजनों के दायित्वों को भी उजागर किया। उन्होंने कहा “दिल्ली विश्वविद्यालय में आना सौभाग्य की बात है और दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदू अध्ययन केंद्र में आना परम सौभाग्य की बात है। गुरुजनों के मार्गदर्शन से ही एक शिष्य श्रेष्ठ बन सकता है ठीक उसी प्रकार से जैसे गुरु वशिष्ठ एवं विश्वामित्र के सान्निध्य में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम व संदीपनी ऋषि के सान्निध्य में योगीश्वर श्री कृष्ण आदि”।
तत्पश्चात् कार्यक्रम संयोजिका एवं सह निदेशक डॉ. प्रेरणा मल्होत्रा ने भारतीय संस्कृति में अंतर्निहित ज्ञान और धर्म की सार्थकता को सिद्ध करते हुए कहा कि “हिंदू अध्ययन केंद्र सनातन परंपरा में विद्यमान धार्मिक मूल्यों की पुनर्स्थापना एवं छात्रों के अंदर राष्ट्र के प्रति जागृति को उत्पन्न करने के सार्थक प्रयास में लगा हुआ है जिसके फलस्वरूप सभी छात्र समाज में एक अच्छे एवं आदर्श नागरिक के रूप में स्वयं को स्थापित करने में समर्थ होंगे।” उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति सदैव ज्ञानमूलक और धर्ममूलक रही है जिसके फलस्वरूप मां सरस्वती को सभी विद्याओं एवं जान का आधार माना गया है।