प्राइम वीडियो की ‘ज़िद्दी गर्ल्स’ दो पीढ़ियों के बीच जनरेशन गैप को कम कर रही है

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*प्राइम वीडियो पर ज़िद्दी गर्ल्स: सभी पीढ़ियों के लिए एक शो

*ज़िद्दी गर्ल्स: एक ऐसा शो जो न केवल अपने प्रस्तुति में वास्तविक है बल्कि पीढ़ियों के बीच की खाई को भी पाटता है

आज के समय में युवा दर्शकों के लिए बनी अनगिनत कैंपस ड्रामा वेब सीरीज़ के बीच, अमेज़न प्राइम वीडियो की ‘ज़िद्दी गर्ल्स’ एक ताज़ा और अलग कॉन्सेप्ट के रूप में उभरी है। और इसकी वजह जानना दिलचस्प है! जो सीरीज़ पहली नज़र में सिर्फ एक और कॉलेज लाइफ पर आधारित कहानी लग रही थी, वह दरअसल हर उम्र, हर जेंडर और हर सामाजिक पृष्ठभूमि के लोगों से जुड़ गई। यह शो अनपेक्षित रूप से एक इंटर-जेनरेशनल कनेक्शन बना पाने में सफल रही। हालाँकि ज़िद्दी गर्ल्स में निश्चित रूप से कैंपस ड्रामा के सभी तत्व हैं – दोस्ती, रोमांस और शैक्षणिक चुनौतियाँ – लेकिन इसकी लोकप्रियता सिर्फ युवा दर्शकों तक सीमित नहीं रही इससे कहीं आगे तक फैली हुई है। इस शो ने 20 वर्ष के युवा से लेकर 60 साल के दर्शकों का ध्यान खींचा है, ऐसा कुछ जो आज के समय में बहुत से शो या वेब-सीरीज़ नहीं कर सकते।

इस शो की सबसे खास बात यह रही कि इसने दर्शकों की नॉस्टेल्जिया से जुड़ी भावनाओं को छू लिया। उम्र चाहे कोई भी हो, कॉलेज जीवन की यादें हर किसी के लिए खास होती हैं। ये वो पल होते हैं जो हमें पूरी तरह बदल देते हैं, हमें नए अनुभवों से परिचित कराते हैं और हमारे व्यक्तित्व को आकार देते हैं। ‘ज़िद्दी गर्ल्स’ ने इस भावना को बखूबी पकड़ लिया, जिससे यह कई पीढ़ियों के दर्शकों के साथ गहराई से जुड़ पाया। पुराने दर्शकों के लिए, यह शो एक शक्तिशाली नॉस्टैल्जिया ट्रिप के रूप में काम करता है, क्योंकि उन्हें यादों की गलियों में यात्रा करने और अपने कॉलेज कैंपस में बिताए गए समय की प्यारी और नापसंद यादों को याद करने का मौका मिलता है।

ज़िद्दी गर्ल्स की निर्माता रंगिता प्रीतीश नंदी कहती हैं, “बचपन से वयस्कता की ओर बढ़ने की यात्रा, खुद को ढूंढना, अपनी आवाज़ को पहचानना—ये सब कॉलेज लाइफ और हॉस्टल लाइफ का हिस्सा होते हैं। शायद यही वजह है कि ‘ज़िद्दी गर्ल्स’ इतनी पीढ़ियों के लोगों को पसंद आ रही है। कॉलेज जीवन सबसे व्यक्तिगत और संवेदनशील समय होता है, जहां हम वयस्क होने की ज़िद तो करते हैं, लेकिन असल में जिम्मेदारियां निभाने की चुनौती भी झेलनी पड़ती है। यह वह समय होता है जब हम खुद से, माता-पिता से, और पूरी दुनिया से अपनी छोटी-बड़ी लड़ाइयाँ लड़ते हैं—चाहे वह जीवन के फैसलों से जुड़ी हो या पहली मोहब्बत से।”

निर्देशक शोनाली बोस ने कहा, “किसी भी इंसान के व्यक्तित्व को गढ़ने वाला सबसे अहम समय उसका कॉलेज जीवन होता है, खासकर अगर वह हॉस्टल में हो। यह वो समय होता है जब हम असल में खुद को पहचानने लगते हैं, और यह ऐसा अनुभव है जिसे कोई भी नहीं भूलता। ‘ज़िद्दी गर्ल्स’ ने इस दौर को इतनी प्रामाणिकता से प्रस्तुत किया है कि हर पीढ़ी के लोग इससे जुड़ा महसूस कर रहे हैं। उन्हें लग रहा है कि यह उनकी खुद की कहानी है—चाहे वह महिला हो या पुरुष, युवा हो या वृद्ध।”

शो की लेखिका और सह-निर्देशक नेहा वीणा वर्मा कहती हैं,
“हमने जब ‘ज़िद्दी गर्ल्स’ की स्क्रिप्ट लिखनी शुरू की, तो संवाद (डायलॉग) ही हमारी सबसे बड़ी प्रेरणा थी—संवाद जो पीढ़ियों के बीच, विचारधाराओं के बीच हो; दोस्तों, शिक्षकों और माता-पिता के बीच हो। यह शो उन लोगों से भी जुड़ने की कोशिश करता है जो आपसे अलग सोचते हैं, अलग भाषा बोलते हैं। आज के राजनीतिक रूप से विभाजित समय में, यह एक प्रयास है कि हम उन लोगों से बातचीत करें जिनसे हम असहमत हैं, बजाय उन्हें पूरी तरह खारिज करने के।”

लेखक और सह-निर्देशक वसंत नाथ इस बात से सहमत थे कि उनके शो को जो प्रतिक्रिया मिली वह वास्तव में ‘पूरी तरह से अप्रत्याशित’ थी। वे कहते हैं, “जबकि ज़िद्दी गर्ल्स का फ़ोकस जेन जेड था, लेकिन इसकी कहानी उन लेखकों, क्रिएटर्स और निर्देशकों से निकली जो अलग-अलग पीढ़ियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। हमारे व्यक्तिगत अनुभवों और रिसर्च के मिश्रण ने इस शो को वह गहराई दी, जिससे हर उम्र और जेंडर के दर्शकों ने इसे अपनाया।”

‘ज़िद्दी गर्ल्स’ में सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों को भी छुआ गया है। जब लड़कियां अपने हॉस्टल की रात 7 बजे की कर्फ्यू को तोड़ने और प्रशासन के खिलाफ आवाज़ उठाने का फैसला करती हैं, तो यह कहानी सिर्फ एक कॉलेज कैंपस की नहीं रहती, बल्कि एक बड़ी सामाजिक सच्चाई को दर्शाती है। यह मुद्दा न केवल आज की युवा लड़कियों के संघर्ष को दिखाता है, बल्कि पुरानी पीढ़ी के दर्शकों को भी अपने कॉलेज के दिनों की उन लड़ाइयों की याद दिलाती है, जब उन्होंने खुद किसी अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाई होगी। भले ही लड़ाइयाँ अलग हों, लेकिन अन्याय के खिलाफ खड़े होने का महत्व हर दौर में प्रासंगिक रहेगा।

यह शो न सिर्फ युवा महिलाओं के अपने हक़ के लिए खड़े होने की कहानी कहता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि कैसे कुछ मुद्दे और संघर्ष हर दौर में समान रूप से महत्वपूर्ण रहते हैं। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि ‘ज़िद्दी गर्ल्स’ ने एक ऐसी उपलब्धि हासिल की है जो कई अन्य युवा-केंद्रित वेब सीरीज़ नहीं कर पाईं। यह शो एक इंटर-जेनरेशनल ब्रिज बन गया है, जिसने दर्शकों को यह एहसास दिलाया कि असली, ईमानदार और जुड़ाव पैदा करने वाली कहानियाँ ही सबसे ज्यादा असर करती हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि “शो का संदेश सफलतापूर्वक पहुँच चुका है!”

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