* विजेंद्र गुप्ता ने संसाधनों के प्रबंधन और राज्य के विकास में विधायिका की भूमिका पर साझा किए अनुभव
दिल्ली विधान सभा के माननीय अध्यक्ष विजेंद्र गुप्ता ने आज तपोवन, धर्मशाला में आयोजित राष्ट्रमंडल संसदीय संघ (कॉमनवेल्थ पार्लियामेंट्री एसोसिएशन –सीपीए), भारत क्षेत्र, जोन-2 के वार्षिक सम्मेलन को संबोधित किया। इस अवसर पर दिल्ली, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर और पंजाब के विधानसभाओं के पीठासीन अधिकारियों और सदस्यों के साथ संवाद हुआ।
“राज्य संसाधनों के प्रबंधन बनाम राज्य के विकास में विधायिकाओं की भूमिका” विषय पर बोलते हुए श्री गुप्ता ने कहा कि लोकतंत्र को मजबूत करने और पारदर्शी शासन सुनिश्चित करने में सशक्त विधायिकाओं की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।
उन्होंने कहा कि विधायिका को लोकतंत्र की रीढ़ कहा जाता है, क्योंकि वह प्रत्येक योजना, नीति और कानून को जन भागीदारी से चर्चा और सामूहिक निर्णय के माध्यम से मंजूरी देती है। यह प्रक्रिया सुनिश्चित करती है कि निर्णय संतुलित हों और समाज के सभी वर्गों की आवाज़ उसमें सम्मिलित हो।
माननीय अध्यक्ष ने कहा कि विकास की योजना बनाना एक जटिल कार्य है, जिसमें विधायिका की भूमिका नीतियों के निर्माण, क्रियान्वयन और मूल्यांकन के माध्यम से समावेशी विकास का आधार तैयार करने में निर्णायक होती है।
उन्होंने बताया कि वार्षिक बजट सीधे आम जनता को प्रभावित करते हैं—चाहे वह निर्धनों के लिए कल्याणकारी योजनाएँ हों, अस्पतालों में दवाओं की उपलब्धता या स्कूलों में बेहतर सुविधाएँ—विधायिका यह सुनिश्चित करती है कि संसाधनों का आवंटन न्यायसंगत और विवेकपूर्ण तरीके से हो।
विजेंद्र गुप्ता ने प्रश्नकाल, ध्यानाकर्षण प्रस्ताव और विशेष चर्चाओं जैसे संसदीय उपकरणों के महत्व को रेखांकित किया, जो जनप्रतिनिधियों को स्थानीय मुद्दे उठाने, विकास योजनाओं की निगरानी करने और सरकार से उत्तरदायित्व तय करने में सक्षम बनाते हैं। उन्होंने कहा कि यह सीधा जुड़ाव लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत करता है।
उन्होंने संसदीय समितियों, विशेषकर वित्तीय और विभागीय समितियों की भूमिका को भी महत्वपूर्ण बताया, जो यह सुनिश्चित करती हैं कि सरकारी खर्च नियमों के अनुरूप हो तथा किसी प्रकार की अनियमितता की पारदर्शी जांच हो। ये समितियाँ वित्तीय अनुशासन को बनाए रखती हैं और कल्याणकारी योजनाओं का वास्तविक लाभ लक्षित वर्गों तक पहुँचाती हैं।
माननीय अध्यक्ष ने कहा कि सीमित संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी है, और विधायिका यह सुनिश्चित करती है कि किसी भी प्रकार का अपव्यय, भ्रष्टाचार या कुप्रबंधन न हो।
सहकारी राजनीति की आवश्यकता पर बल देते हुए श्री गुप्ता ने सभी जनप्रतिनिधियों से आग्रह किया कि वे दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सदन की कार्यवाही में सक्रिय भागीदारी करें और जनहित को सर्वोच्च प्राथमिकता दें। उन्होंने कहा कि विधायिकाएँ केवल औपचारिक संस्थान नहीं, बल्कि राज्य की आत्मा होती हैं, जो शासन, न्याय और प्रगति की दिशा तय करती हैं।
अपने संबोधन के समापन पर माननीय अध्यक्ष श्री गुप्ता ने नीति-निर्माण में दूरदृष्टि, समावेशिता, क्षेत्रीय प्रासंगिकता, पर्यावरणीय स्थिरता और राष्ट्र के विकास लक्ष्यों के अनुरूप दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता पर बल दिया।