फिल्म समीक्षा: कालिधर लापता
रेटिंग: ★★★½ (3.5/5)
📼 अभिषेक बच्चन स्टारर कालिधर लापता अपने खूबसूरत ट्रेलर के चलते पहले से ही सुर्खियों में थी। ट्रेलर की सूक्ष्म लेकिन प्रभावशाली भावनाओं ने दर्शकों की उम्मीदें बढ़ा दी थीं—अब सवाल ये है कि क्या फिल्म इन उम्मीदों पर खरी उतरती है?
2019 की तमिल फिल्म KD (करुप्पु दुरई) का यह हिंदी रीमेक है, जिसे मूल फिल्म की निर्देशक मधुमिता ने ही निर्देशित किया है। फिल्म की शुरुआत बेहद प्रभावशाली है। कहानी 42 वर्षीय कालिधर (अभिषेक बच्चन) से शुरू होती है, जिसे एक दिन सड़क पर चलते समय अचानक भ्रम होने लगता है। उसके छोटे भाई मनोहर (विश्वनाथ चटर्जी) और सुंदर (प्रियांक तिवारी) उसे नज़दीकी सरकारी अस्पताल ले जाते हैं, जहाँ पता चलता है कि कालिधर डिमेंशिया से पीड़ित है।

इलाज में बढ़ते खर्च और पहले से मौजूद कर्ज़ के चलते, मनोहर की पत्नी नीतू (मधुलिका जातोलिया) एक खौफनाक सुझाव देती है—कालिधर को अस्पताल में मारकर उसकी संपत्ति हथिया ली जाए। वे उसका अंगूठा ज़बरदस्ती संपत्ति के कागज़ों पर लगवाते हैं, लेकिन हत्या की कोशिश नाकाम हो जाती है। इसके बाद कंपाउंडर उन्हें सलाह देता है कि कालिधर को कुंभ मेले में छोड़ आएं, क्योंकि उसे याददाश्त की बीमारी है और वह वापस नहीं लौट पाएगा।
कुंभ पहुँचने के बाद, मनोहर, सुंदर और नीतू उसे जानबूझकर वहां छोड़ देते हैं और दिखावे के लिए ‘लापता व्यक्ति’ की रिपोर्ट भी दर्ज करवा देते हैं ताकि उन पर कोई शक न हो। लेकिन कालिधर त्रासदी तब महसूस करता है जब वह अपने टेंट में उन तीनों की बातचीत सुन लेता है और सच्चाई जान जाता है।
आहत और टूटा हुआ कालिधर एक बस पकड़ता है जो इटारसी जा रही होती है, लेकिन किराए की कमी के कारण कंडक्टर उसे भोजपुर के पास शिव मंदिर पर उतार देता है। वहीं उसकी मुलाकात होती है बल्लू (दैविक भगेला) से—एक अनाथ और सड़कछाप बच्चा, जो पहले कालिधर को तंग करता है लेकिन धीरे-धीरे उसका सबसे अच्छा दोस्त बन जाता है।
इधर, घर में बिजली के शॉर्ट सर्किट से संपत्ति के कागज़ जल जाते हैं और रही-सही कसर पड़ोसी और कालिधर के दोस्त द्वारा संपत्ति अपने नाम करवाने के दावे से पूरी हो जाती है। अब सच्चाई सामने लाने के लिए मनोहर, सुंदर और नीतू को उसी कालिधर को ढूंढना पड़ता है, जिसे उन्होंने त्याग दिया था।

कालिधर लापता सिर्फ परिवार की जटिलताओं और बुजुर्गों को बोझ समझने वाले सोच को ही नहीं दिखाती—जैसा कि हमने बागबान और वनवास जैसी फिल्मों में देखा है—बल्कि यह फिल्म एक गहरी बात कहती है: खुद के लिए जीना, सपने पूरे करना और ज़िंदगी के छोटे-छोटे लम्हों में खुशी ढूंढना।
निर्देशक मधुमिता ने मूल कहानी की आत्मा को बरकरार रखते हुए इसे संवेदनशीलता और सादगी के साथ पेश किया है। खूबसूरत लोकेशंस, इमोशनल मोमेंट्स और संतुलित नैरेशन फिल्म को खास बनाते हैं।
अभिनय की बात करें तो:
- अभिषेक बच्चन ने बेहद संयमित और गहराई से भरा प्रदर्शन दिया है—जहाँ शब्द कम और भावनाएँ अधिक बोलती हैं।
- दैविक भगेला (बल्लू) फिल्म की जान हैं—उनकी मासूमियत और स्वाभाविक अभिनय दिल जीत लेता है।
- मोहम्मद ज़ीशान अय्यूब का छोटा लेकिन अहम किरदार प्रभाव छोड़ता है।
- विश्वनाथ चटर्जी, प्रियांक तिवारी और मधुलिका जातोलिया ने अपने किरदारों के मुताबिक अच्छा काम किया है।
- और खास तौर पर निमरत कौर, जो मीरा के किरदार में स्क्रीन पर चमक बिखेरती हैं।
अंतिम निष्कर्ष:
कालिधर लापता एक दिल को छू लेने वाली फिल्म है जो आपको मुस्कराहटों के साथ आँखों में आंसू भी दे जाती है। ये फिल्म सादगी में ही अपनी खूबसूरती ढूंढती है और दर्शकों के दिल में उतर जाती है।