‘सिर्फ किसी को भाई-बहन कह देने से रिश्ता नहीं बनता, उस बंधन का सम्मान भी ज़रूरी है’: ईशा कोप्पिकर ने रक्षा बंधन के असली मायने बताए

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‘रक्षाबंधन उपहारों का नहीं, बल्कि उपस्थिति का प्रतीक है’: परिवार, समर्पण और चुने हुए रिश्तों पर ईशा कोप्पिकर के विचार

अभिनेत्री ईशा कोप्पिकर के लिए, रक्षाबंधन किसी दिखावे या भव्य सार्वजनिक प्रदर्शन का नहीं है – बल्कि साथ होने, जुड़ाव और भावनात्मक सच्चाई का पर्व है। बचपन में, कोप्पिकर परिवार में यह त्यौहार हमेशा एक निजी उत्सव होता था, जिसे वे अपने माता-पिता और भाई अनोश सहित अपने परिवार के साथ घर पर सादगी से मनाया जाता था।

ईशा बताती हैं, “हमेशा से यह छोटे-छोटे पलों के बारे में रहा है। यह अब एक परंपरा बन गई है, जबसे मैं बच्ची थी। मम्मी वही खास पकवान बनाती हैं जो सिर्फ वही बना सकती हैं, हम सब अपने फोन और गैजेट्स को एक तरफ रख देते हैं और बस साथ में समय बिताते हैं। वह समय, वह हँसी, वह रिश्ता – यही सब मेरे लिए राखी को इतना खास बनाता है।”

वह हँसते हुए यह भी कहती हैं कि वह हर साल अपने भाई से वही आम तोहफे मांगती हैं जो ज़्यादातर बहनें मांगती हैं, लेकिन वह तुरंत यह भी स्पष्ट कर देती हैं कि उनके लिए यह त्योहार कभी भौतिक उपहारों के बारे में नहीं रहा।

“वो तो बस मज़ेदार पल होते हैं, लेकिन जो सच में मायने रखता है वो ये है कि आपका भाई हर हाल में आपके साथ खड़ा हो।” ईशा कहती हैं। उनके भाई ने हमेशा उन्हें ताकत दी है, एक ऐसा रिश्ता जिसे वह हल्के में नहीं लेतीं।

वह बताती हैं, “चाहे बचपन की शरारतें हों या बड़े होने की चुनौतियाँ, वह हमेशा मेरे साथ खड़े रहे है। रक्षा बंधन तोहफों का नहीं, साथ होने का त्योहार है — और मेरे भाई ने हर अच्छे-बुरे वक़्त में मुझे अपनी मौजूदगी दी है।”

क्या चुने हुए रिश्ते भी उतने ही अहम होते हैं?

परिवार से आगे बढ़ते हुए, ईशा उन रिश्तों की बात करती हैं जिन्हें उन्होंने खुद चुना है — दोस्तियाँ जो भाई-बहनों जैसे मजबूत रिश्तों में बदल गईं।

“मेरी कुछ बहुत प्यारी सहेलियाँ हैं जो बहनों जैसी हैं, और कुछ करीबी दोस्त जो भाइयों जैसे हैं। लेकिन मेरा मानना है कि किसी को भाई या बहन कह देने से वो रिश्ता नहीं बन जाता, जब तक आप उस रिश्ते की सच्ची जिम्मेदारी निभाने को तैयार नहीं हों। इन रिश्तों में जिम्मेदारी, भरोसा और वफादारी होती है। ये सिर्फ राखी बाँधने या गिफ्ट देने की बात नहीं है — यह हर साल, हर हाल में साथ देने की बात है,” वह अंत में कहती हैं।

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