डीयू में आयोजित कवि सम्मेलन में कवियों ने जमाए देश भक्ति के रंग

Listen to this article

*मैं भारत का संविधान हूँ, लाल किले से बोल रहा हूँ……

*भारत में अब तक नहीं हुआ अंबेडकर जैसा दूसरा नेता: प्रो. योगेश सिंह

‘सेलिब्रेशन ऑफ संविधान अमृत महोत्सव: सेलिब्रेटिंग 75 इयर्स ऑफ रिपब्लिक ऑफ भारत’ के तत्वावधन में दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा संविधान: विकसित भारत की राह करे आसान ध्येय वाक्य पर एक कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस अवसर पर विख्यात कवियों ने अपनी अपनी कविताओं के माध्यम से खूब देशभक्ति के रंग जमाए। जाने माने कवि डॉ हरिओम पँवार ने अपनी औजस्वी कविता “मैं भारत का संविधान हूँ, लाल किले से बोल रहा हूं, मेरा अंतर्मन घायल है, दुःख की गांठें खोल रहा हूं…” के माध्यम से संविधान की पीड़ा को बहुत ही संजीदा रंग में पेश किया। सोमवार को देर साँय आयोजित इस कवि सम्मेलन के आरंभ में दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने बतौर मुख्य अतिथि संबोधित करते हुए संविधान और डॉ बीआर अंबेडकर पर अपने विचार प्रस्तुत किए। उन्होंने कहा कि भारत में अब तक बीआर अंबेडकर जैसा दूसरा नेता पैदा नहीं हुआ है।

विख्यात कवयित्री डॉ कीर्ति काले ने अपनी शृंगार रस की कविताओं से खूब तालियां बटोरी। उन्होंने माता-पिता के सम्मान को लेकर अपनी कविता कुछ यूं प्रस्तुत की, “अयोध्या में अगर ढूंगोगे तो श्री राम मिलते हैं, जो वृन्दावन में ढूंढोगे तो घनश्याम मिलते हैं, अगर काशी में ढूंढोगे तो भोले नाथ मिलते हैं, मगर माँ-बाप के चरणों में चारों धाम मिलते हैं… ”। कवि सम्मेलन का संचालन करते हुए कवि डॉ अशोक बत्रा ने भी अपनी कविता और हास्य से खूब गुदगुदाया। उत्तर प्रदेश से आए कवि डॉ अर्जुन सीसोदिया ने बेटियों पर अपनी कविता में कुछ यूं अपने उद्गार प्रकट किए, “चढ़ती हैं शीश पिता के तो मन की पीड़ा हर लेती हैं, बेटियाँ खुद गंगा होती हैं, घर को पावन कर देती हैं…. ”। राजस्थान से आए हास्य कवि केशरदेव मारवाड़ी ने अपने हास्य से श्रोताओं को खूब गुदगुदाया। कवि विकास यशकीर्ति ने अपनी कविता “विदा होते हुए मुझको बड़ी लगने लगी बिटिया, कहा पापा जब पोंछ कर आँसू के पापा यूं नहीं रोते… ”।    

समारोह के आरंभ में कुलपति ने संबोधित करते हुए कहा कि जब भी देश पर कठिन प्रश्न आया तो संविधान ने उसका रास्ता निकाला। कुलपति ने संविधान निर्माता डॉ बीआर अंबेडकर पर अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि अंबेडकर अपने समय से बहुत आगे के व्यक्ति थे। जब आजादी से पहले देश में केंद्र सरकार के होने या न होने पर चर्चा चल रही थी, तब अंबेडकर ने अपनी बात रखी कि भारत में केंद्र सरकार होनी चाहिए और मजबूत होनी चाहिए। उन्होंने विधायिकाओं के चुनावों के लिए ग्राम आधारित प्रतिनिधि चुनाव व्यवस्था का विरोध किया और जनता द्वारा सांसदों के सीधे चुनाव की व्यवस्था को लागू करवाया। कुलपति ने अंबेडकर की आर्थिक नीतियों का जिक्र करते हुए कहा कि अगर अंबेडकर देश के पहले वित्त मंत्री होते तो ये गरीबी देश से बहुत पहले दूर हो गई होती।

समारोह की अध्यक्षता करते हुए राष्ट्रीय कवि संगम के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगदीश मित्तल ने कहा कि भारत विश्व गुरु बनने जा रहा है। आज भारत जिन हाथों में है, उन पर हमें गर्व है। समारोह के विशिष्ट अतिथि डॉ नन्द किशोर गर्ग ने अपने संबोधन में कहा कि अंबेडकर को लोगों ने समझा ही नहीं। कार्यक्रम के आरंभ में गांधी भवन के निदेशक प्रो. केपी सिंह ने अतिथियों का स्वागत किया। इस अवसर पर दक्षिणी परिसर के निदेशक प्रो. श्री प्रकाश सिंह, डीन ऑफ कॉलेजेज़ प्रो. बलराम पाणी और रजिस्ट्रार डॉ विकास गुप्ता सहित अनेकों शिक्षक, अधिकारी और विद्यार्थी उपस्थित रहे।

Print Friendly, PDF & Email

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *