*सिंघवी बोले- केंद्र सरकार जिसे सुधार बता रही है, दरअसल वह अधिकारों पर प्रहार
*प्रतापगढ़ी बोले-अगली सुनवाई में और राहत मिलेगी, क्योंकि ये संविधान के मूल पर हमला था
वक्फ संशोधन अधिनियम से जुड़े सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश का कांग्रेस ने स्वागत किया है। पार्टी ने कहा कि वक्फ संशोधन अधिनियम प्रशासनिक कदम नहीं है, बल्कि वैचारिक हमला है। केंद्र सरकार जिसे सुधार बता रही है, दरअसल वह अधिकारों पर प्रहार है।
वक्फ को लेकर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई के बाद राज्यसभा सांसद डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी और इमरान प्रतापगढ़ी कांग्रेस कार्यालय में पत्रकार वार्ता को संबोधित कर रहे थे।
सिंघवी ने कहा कि हमारे संविधान के अनुच्छेद 26 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि हर व्यक्ति को पूरा अधिकार है कि वह अपने धर्म का अभ्यास, निर्वहन और उसका प्रचार-प्रसार कर सकता है। वह धर्म से जुड़ी संस्थाओं का संचालन व प्रबंधन कर सकता है और उनके चुनावों में नामित हो सकता है। उन्होंने उच्चतम न्यायालय की पांच खंडपीठों के पूर्व के निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि किसी भी धार्मिक वर्ग की संस्थाओं की स्वायत्तता को इस हद तक कम करना कि वह समाप्त हो जाए, असंवैधानिक है। उन्होंने कहा कि वक्फ अधिनियम की धारा 11 में चुनावित श्रेणी को हटाकर 100 प्रतिशत नामांकन का प्रावधान स्वायत्तता के सिद्धांत के विरुद्ध है।
वक्फ संशोधन अधिनियम के प्रावधान 9 और 14 पर सुप्रीम कोर्ट के प्रतिबंध का हवाला देते हुए सिंघवी ने कहा कि वक्फ अधिनियम का प्रावधान 9 कहता है कि केंद्रीय वक्फ परिषद के 22 सदस्यों में से 12 लोग गैर मुस्लिम हो सकते हैं। प्रावधान 14 कहता है कि वक्फ बोर्ड के 11 सदस्यों में से सात गैर मुस्लिम हो सकते हैं। उन्होंने आगे कहा कि अधिनियम में एक अजीब प्रावधान है जिसके तहत यदि बोर्ड के 100 प्रतिशत सदस्य भी अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित करते हैं, तो भी उसे तब तक नहीं हटाया जा सकता जब तक कि सरकार ऐसा न करे। यह प्रावधान लोकतांत्रिक सिद्धांतों और स्वायत्तता के खिलाफ है। अधिनियम में यह भी प्रावधान है कि वक्फ बोर्ड का सीईओ गैर-मुस्लिम भी हो सकता है, जो कि एक हास्यास्पद है।
सिंघवी ने कहा, नए कानून के हिसाब से वक्फ बाय यूजर का कोई कानूनी अस्तित्व ही नहीं है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अभी तक जो घोषित या पंजीकृत वक्फ संपत्ति हैं, उनकी यथास्थिति बनी रहेगी। सिंघवी ने आगे कहा कि अधिनियम में एक अजीबोगरीब प्रावधान है कि अगर कोई वक्फ संपत्ति के बारे में आरोप लगाकर विस्तार से एक चिट्ठी लिख के कलेक्टर को भेज देता है तो कलेक्टर उसे विवादित करार कर सकता है। इसमें कोई कारण देने की जरूरत नहीं है। जब तक कलेक्टर उस विवाद का निर्णय न करे, तब तक उसे वक्फ संपत्ति नहीं माना जाएगा। इसमें कलेक्टर द्वारा निर्णय लेने के लिए कोई समय सीमा तय नहीं की गई है। उन्होंने कहा कि हम इन प्रावधानों के बारे में अपनी बात कोर्ट के सामने मजबूती से रखने वाले हैं। इस मामले को सिर्फ मुसलमान या अल्पसंख्यक की नजर से देखना सही नहीं होगा। ये संविधान की आत्मा का सवाल है। अगर आज एक समुदाय के धार्मिक संस्थानों पर कब्जा हो सकता है तो कल हर अल्पसंख्यक संस्था खतरे में होगी। यह विधेयक संविधान की बराबरी की भावना पर हमला करता है।
वहीं प्रतापगढ़ी ने कहा कि वक्फ कानून में जो संविधान विरोधी संशोधन किए गए थे, सुप्रीम कोर्ट ने उसके कई बिंदुओं पर अगले आदेश तक रोक लगा दी है। जेपीसी और संसद में विपक्ष के सांसदों द्वारा दिए गए सुझाव नकार दिए गए थे। उनके समेत कुछ याचिकाकर्ता वक्फ संशोधन कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गए थे। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश को संविधान की जीत बताया और उम्मीद जताई कि अगली सुनवाई में और राहत मिलेगी। उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी ने संविधान को बनाने और बचाने की पूरी जिम्मेदारी हमेशा उठाई है व हमेशा उठाएगी।