- मुख्यमंत्री ने एलजी को संवैधानिक पीठ का फैसला दिखाकर कहा कि आप सुप्रीम कोर्ट का उल्लंघन कर रहे हैं तो उपराज्यपाल कहते हैं यह सुप्रीम कोर्ट की सलाह है- सौरभ भारद्वाज
- अगर उपराज्यपाल को कानून नहीं पता तो ये कोई बचाव नहीं है, सुप्रीम कोर्ट का लिखा हुआ ऑर्डर होता है सलाह नहीं- सौरभ भारद्वाज
- सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने 4 जुलाई 2018 को फैसला दिया था कि उपराज्यपाल के पास सिर्फ पब्लिक ऑर्डर, पुलिस और जमीन के ऊपर राय रखने का हक है- सौरभ भारद्वाज
- उनके पास अपनी कोई स्वयं की शक्ति नहीं है कि वह किसी काम को रोक सकें, वह सिर्फ वही करेंगे जो कैबिनेट और चुनी हुई सरकार कहेगी- सौरभ भारद्वाज
- उपराज्यपाल को चुना हुआ मुख्यमंत्री और चुनी हुई सरकार ही सलाह दे सकती है, उपराज्यपाल के पास यह भी हक नहीं है कि वह सलाह को ना मानें- सौरभ भारद्वाज
आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता सौरभ भारद्वाज ने कहा कि उपराज्यपाल कह रहे हैं कि वह संवैधानिक पीठ के फैसले को नहीं मानेंगे। क्या ऐसा व्यक्ति संवैधानिक पद पर हो सकता है जो खुद संविधान को मानने के लिए तैयार नहीं है? मुख्यमंत्री ने एलजी को संवैधानिक पीठ का फैसला दिखाकर कहा कि आप सुप्रीम कोर्ट का उल्लंघन कर रहे हैं तो उपराज्यपाल कहते हैं यह सुप्रीम कोर्ट की सलाह है। अगर उपराज्यपाल को कानून नहीं पता तो ये कोई बचाव नहीं है। सुप्रीम कोर्ट का लिखा हुआ ऑर्डर होता है सलाह नहीं। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने 4 जुलाई 2018 को फैसला दिया था कि उपराज्यपाल के पास सिर्फ पब्लिक ऑर्डर, पुलिस और जमीन के ऊपर राय रखने का हक है। उनके पास अपनी कोई स्वयं की शक्ति नहीं है कि वह किसी काम को रोक सकें। वह सिर्फ वही करेंगे जो कैबिनेट और चुनी हुई सरकार कहेगी। उपराज्यपाल को चुना हुआ मुख्यमंत्री और चुनी हुई सरकार ही सलाह दे सकती है। उपराज्यपाल के पास यह भी हक नहीं है कि वह सलाह को ना मानें।
आम आदमी पार्टी के मुख्य प्रवक्ता और विधायक सौरभ भारद्वाज ने पार्टी मुख्यालय में आज महत्वपूर्ण प्रेस वार्ता को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उपराज्यपाल विनय सक्सेना की शुक्रवार को मुलाकात हुई। उस मुलाकात में मुख्यमंत्री ने उपराज्यपाल को बताया कि आप फाइलों को सीधे मंगवा रहे हैं, विकास कार्यों में अड़ंगा लगा रहे हैं। जबकि दिल्ली के अंदर लंबी कानूनी लड़ाई के बाद सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने 4 जुलाई 2018 को फैसला दिया था कि उपराज्यपाल के पास सिर्फ तीन चीजें पब्लिक ऑर्डर, पुलिस और जमीन के ऊपर राय रखने का हक है। इसके अलावा सभी मामले शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, पानी, बिजली, पर्यटन सहित अन्य मामलों में उपराज्यपाल की शक्तियां बहुत सीमित हैं। वह इतनी सीमित है कि उनके पास अपनी कोई स्वयं की शक्ति नहीं है कि वह किसी काम को रोक सकें और निरस्त कर सकें। वह सिर्फ वही करेंगे जो कैबिनेट और चुनी हुई सरकार कहेगी। अगर उससे ऐतराज है तो वह निरस्त नहीं कर सकते हैं। वह सिर्फ राष्ट्रपति को भेज सकते हैं। उनके पास इतनी शक्ति भी नहीं है कि वह कहें कि यह मुझे पसंद नहीं है। उनके पास पसंद और नापसंद करने की शक्ति नहीं है। वह फाइल को राष्ट्रपति के पास भेजेंगे। वह तय करेंगे कि मैं उन्हें पसंद है या नहीं है।
विधायक सौरभ भारद्वाज ने कहा कि इसके बावजूद उपराज्यपाल लगातार यह काम करते आ रहे हैं। मुख्यमंत्री ने उन्हें सभी कानूनों की प्रतियां दिखाई, संवैधानिक पीठ का फैसला दिखाया है कि आप खुल्लम-खुल्ला कोर्ट के फैसले का उल्लंघन कर रहे हैं। हालांकि अगर कोई व्यक्ति उल्लंघन कर रहा है तो उसको कानून दिखाने की जरूरत नहीं है। क्योंकि अगर आपको कानून नहीं पता तो यह कोई डिफेंस नहीं है। लेकिन उपराज्यपाल को मुख्यमंत्री ने स्वयं वह कानून दिखा दिए कि इन कानूनों का आप उल्लंघन लगातार कर रहे हैं। आप सुप्रीम कोर्ट और संविधान की भी नहीं मान रहें। उपराज्यपाल कह रहे हैं कि मैं सुप्रीम हूं। सुप्रीम कोर्ट का जो फैसला है उनके लिए वह सिर्फ सलाह है।
उन्होंने कहा कि मुझे नहीं पता कि सुप्रीम कोर्ट कब से सलाह देने लगा है। सुप्रीम कोर्ट का लिखा एक-एक शब्द का फैसला ही निर्देश होता है। अगर उपराज्यपाल को कोई सलाह दे सकता है तो चुना हुआ मुख्यमंत्री और चुनी हुई सरकार ही दे सकती है। उपराज्यपाल के पास यह भी हक नहीं है कि वह सलाह को ना मानें। उनके लिए सलाह बाध्यता होती है। उपराज्यपाल कह रहे हैं कि अब वह संविधान और संविधान पीठ के फैसले को भी नहीं मानूंगा। तो क्या दिल्ली के अंदर एक ऐसे व्यक्ति संवैधानिक पद पर हो सकते हैं जोकि खुद संविधान को मानने के लिए तैयार नहीं हैं। वह कह रहे हैं कि मैं संविधान को नहीं मानूंगा। सुप्रीम कोर्ट के फैसले को नहीं मानूंगा। मुख्यमंत्री ने दोनों बातें बताई हैं। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है और गले उतरने वाली बात नहीं है कि संवैधानिक पद पर बैठे हुए व्यक्ति उपराज्यपाल, संविधान को मानने के लिए तैयार नहीं हैं। संवैधानिक पीठ के फैसले को मानने को तैयार नहीं है।