Tu Jhoothi Main Makkaar Review: रॉम कॉम के लिफाफे में संस्कारों की सुंदर कहानी, लव रंजन फिर बने चैंपियन

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निर्देशक लव रंजन न्यू मिलेनियल्स का सिनेमा बनाने वाले फिल्मकार हैं। रिपोर्ट कार्ड भी उनका अब तक शानदार रहा है। कॉरपोरेट की दुनिया को वह करीब से समझते हैं। संस्कार उनमें अब भी गाजियाबाद वाले बाकी हैं। उनका सिनेमा सीधा सपाट धरातल पर नहीं चलता है। वह सुंदर से दिखने वाले रनवे से टेकऑफ करता है। ऊंचाई पर पहुंचने से पहले खराब मौसम से गुजरता है। दर्शक किसी मुसाफिर की तरह घबराता है। लेकिन, मंजिल से पहुंचने से पहले लव भरोसेमंद पायलट बनते हैं और कहानी को फिर से उस रनवे पर उतार लाते हैं, जहां अंत भला तो सब भला सोचकर दर्शक खुशी खुशी उनके साथ हो लेते हैं। पोस्ट क्रेडिट सीन वह मजेदार लिखते हैं। फिल्म ‘तू झूठी मैं मक्कार’ ऊपर से एक रूमानी मजेदार फिल्म दिखती है लेकिन ये प्रेम का ऐसा दरिया है जिसमें डूबकर तो जाना ही है, साथ ही जिन झरनों से इसमें पानी आया है, उसका स्रोत भी ये फिल्म दिखाती है। साथ में कार्तिक आर्यन भी हैं और नुसरत भरूचा भी। लेकिन, ये फिल्म सिनेमा के सहारे दर्शकों की समझ बढ़ाने की तरफ लव रंजन का बढ़ा एक ठोस कदम है।

निर्देशक लव रंजन न्यू मिलेनियल्स का सिनेमा बनाने वाले फिल्मकार हैं। रिपोर्ट कार्ड भी उनका अब तक शानदार रहा है। कॉरपोरेट की दुनिया को वह करीब से समझते हैं। संस्कार उनमें अब भी गाजियाबाद वाले बाकी हैं। उनका सिनेमा सीधा सपाट धरातल पर नहीं चलता है। वह सुंदर से दिखने वाले रनवे से टेकऑफ करता है। ऊंचाई पर पहुंचने से पहले खराब मौसम से गुजरता है। दर्शक किसी मुसाफिर की तरह घबराता है। लेकिन, मंजिल से पहुंचने से पहले लव भरोसेमंद पायलट बनते हैं और कहानी को फिर से उस रनवे पर उतार लाते हैं, जहां अंत भला तो सब भला सोचकर दर्शक खुशी खुशी उनके साथ हो लेते हैं। पोस्ट क्रेडिट सीन वह मजेदार लिखते हैं। फिल्म ‘तू झूठी मैं मक्कार’ ऊपर से एक रूमानी मजेदार फिल्म दिखती है लेकिन ये प्रेम का ऐसा दरिया है जिसमें डूबकर तो जाना ही है, साथ ही जिन झरनों से इसमें पानी आया है, उसका स्रोत भी ये फिल्म दिखाती है। साथ में कार्तिक आर्यन भी हैं और नुसरत भरूचा भी। लेकिन, ये फिल्म सिनेमा के सहारे दर्शकों की समझ बढ़ाने की तरफ लव रंजन का बढ़ा एक ठोस कदम है।

लिफाफा कुछ और, मजमून कुछ और…
वैसे फिल्म ‘तू झूठी मैं मक्कार’ का प्रचार, प्रसार जिस तरीके से किया गया है, वह नई पीढ़ी के युवाओं को लुभा नहीं पाया है। हिंदी सिनेमा को इसीलिए अपनी प्रचार तकनीक बदलनी बहुत जरूरी है। एक पारिवारिक फिल्म को एक मक्कार लड़के और एक झूठी लड़की की प्रेम कहानी बताकर प्रचारित करना बिल्कुल जरूरी नहीं था क्योंकि ये फिल्म वह है ही नहीं। शुरुआत फिल्म की जरूर इस बात से होती है कि एक खाते पीते दक्षिण दिल्ली में बसे परिवार का लड़का शौकिया तौर पर लोगों के ब्रेकअप बहुत ही पेशेवर तरीके से कराता है। दोस्त की बैचलर पार्टी में उसकी मुलाकात साथ आई एक लड़की से होती है। दोनों टाइमपास वाला प्यार करने की योजना बनाते हैं। हमबिस्तर भी होते हैं। लेकिन, दिखावे का प्यार करते करते दोनों को असली प्यार हो जाता है। बात शादी तक आती है तो लड़की का मन डोल जाता है और वह अपने ब्रेकअप का ठेका अपने होने वाले पति को ही दे देती है।

होली के मौसम की रंग बिरंगी
‘हैप्पी न्यू ईयर’, ‘बागी 3’ और ‘कबीर सिंह’ वाले सिनेमैटोग्राफर संथाना कृष्णन रविचंद्रन को निर्देशक रवि रंजन ने पहले फ्रेम से ही समझा रखा है कि गुरुग्राम हो या स्पेन, हर फ्रेम बहुत ही भव्य और शानदार दिखना चाहिए। वह कहानी की आत्मा को पकड़े रखते हुए ऐसा करते भी हैं। कैमरा यहां पहले फ्रेम से ही कहानी और दर्शक का सामंजस्य बनाने में लगा रहता है। लव रंजन के निर्देशन की खूबी यही है कि वह दर्शक को अपने साथ जोड़कर कहानी को आगे बढ़ाना चाहते हैं। हालांकि, फिल्म ‘तू झूठी मैं मक्कार’ में इंटरवल तक फिल्म के साथ खुद को जोड़े रखने में दर्शक को काफी मशक्कत करनी पड़ सकती है। रणबीर कपूर और श्रद्धा कपूर अपनी पिछली फिल्मों के भावों और भावनाओं को ही दोहराते दिखते हैं लेकिन फिल्म इंटरवल के बाद एकदम से पलटी मारती है। अपनी अपनी दुनिया को ही सही मानने वाले दो प्रेमियों की दुनिया जब बाकी किरदारों की दुनिया की तरफ से दिखनी शुरू होती है तो फिल्म के तेवर, कलेवर सब बदल जाते हैं। बीच बीच में हंसी का पंचनामा भी आता रहता है, जैसे एयरपोर्ट पर जब मिकी की मां इमिग्रेशन ऑफिसर से कहती है, ‘हम साथ साथ हैं’ तो जवाब मिलता है, ‘हम आपके हैं कौन?’

रणबीर और श्रद्धा के अभिनय की शोरील
फिल्म ‘तू झूठी मैं मक्कार’ एक तरह से रणबीर कपूर और श्रद्धा कपूर की अभिनय क्षमता की नई शोरील भी है। पिछली कुछ फिल्मों में रणबीर जो दिखाने से चूक गए, उसकी कमी वह इस फिल्म में पूरी करते दिखते हैं। इस हीरो के भीतर अपनी माता नीतू कपूर और पिता ऋषि कपूर के अभिनय के रंगों का खजाना है। इसे बस सही कहानियों का मॉनसून चाहिए, इन रंगों का इंद्रधनुष बनाते उसे देर नहीं लगती है। तारीफ की ही बात है कि रणबीर कपूर फिल्म के दृश्यों के हिसाब से नकली और असली दोनों आंसू निकालने का अभिनय करते हैं और दोनों मौकों पर उनके अभिनय के लिए दाद ही निकलती है। श्रद्धा कपूर को अपनी कलाकारी दिखाने का मौका ‘स्त्री’ और ‘छिछोरे’ के काफी अरसे बाद मिला है और उन्होंने क्लाइमेक्स के ठीक पहले अपने प्यार को जताने वाले दृश्य में दर्शकों का दिल जीतने में कामयाबी भी पाई। खूबसूरत तो वह दिखती ही हैं। किरदार उन्हें इस बार पल पल रंग बदलने वाला मिला और उसे जीकर दिखाने में वह सफल रहीं।

डिंपल और बोनी कपूर का अच्छा साथ
लव रंजन ने फिल्म ‘तू झूठी मैं मक्कार’ को इंटरवल के बाद जिस तरह से एक पारिवारिक फिल्म में बदला है, उसके लिए वह सारे किरदार कहानी के साथ साथ ही शुरू से बुनते रहे। आयशा रजा मिश्रा और अनुभव सिंह बस्सी थोड़े नाटकीय तो लगते हैं लेकिन दिल्ली के पंजाबी परिवार होते ही ऐसे हैं। बस्सी को हालांकि अभी अभिनय की बारीकियां सीखनी बाकी हैं। लेकिन, हसलीन कौर और मोनिका चौधरी ने फिल्म को अच्छा सहारा दिया है। मां के किरदार में डिंपल कपाड़िया अब वहीदा रहमान को मात देने लगी हैं। बोनी कपूर को अभिनय करते देखे सुखद लगता है। इस फिल्म के बाद उन्हें अभिनय के प्रस्ताव और आते हैं तो उन्हें इसके लिए मना नहीं करना चाहिए। अच्छे सहायक कलाकारों की हिंदी सिनेमा में इन दिनों भारी कमी जो है।

प्रीतम और अमिताभ ने जमाया रंग
अकीव अली का संपादन और हितेश सोनिक का बैकग्राउंड म्यूजिक फिल्म ‘तू झूठी मैं मक्कार’ की कमजोर कड़ियां हैं। फिल्म कम से कम 20 मिनट छोटी हो सकती है। इंटरवल से पहले और बाद में 10-10 मिनट कम करके। एक चुस्त फिल्म के तौर पर ये फिल्म बेहतरीन फिल्म लगती। फिल्म के गाने अच्छे हैं। प्रीतम ने अरसे बाद ताजगी का एहसास देने वाले गाने रचे हैं और इसमें उन्हें गीतकार अमिताभ भट्टाचार्य का अच्छा साथ मिला है। ‘प्यार होता कई बार है’ फिल्म का सबसे अच्छा गाना है। रणबीर कपूर की ऊर्जा का इसमें सही इस्तेमाल भी लव रंजन करने में सफल रहे। ‘तेरे प्यार में’ सफर में हमसफर के साथ गुनगुनाने वाला गाना है। इन दोनों के अलावा अरिजीत सिंह अपनी खास रंगत दिखाते हैं विरह गीत ‘ओ बेदर्देया’ में। होली की रंगत वाली इस फिल्म को देखने का असली मजा परिवार के साथ ही है। खासतौर से उन परिवारों को ये फिल्म जरूर अच्छी लगेगी जहां दकियानूसी विचार टूट रहे हैं और बच्चों को खुलकर उनकी जिंदगी जीने देने में वह बाधा नहीं बनना चाहते।

अगर फिल्म की रेटिंग की बात करें तो हम इसे 5 में से 4 स्टार देंगे। ब्यूरो रिपोर्ट एंटरटेनमेंट डेस्क टोटल खबरे दिल्ली

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