डीयू के डीएसडबल्यू द्वारा “आचारशाला” आयोजित

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*शिक्षा का उद्देश्य केवल रोजगारपरक नहीं बल्कि नैतिक नेतृत्व और समाज सेवा को बढ़ावा देना होना चाहिए: प्रो. बलराम पाणी

दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र कल्याण अधिष्ठाता कार्यालय (डीएसडबल्यू) द्वारा “आचारशाला” का आयोजन किया गया। इस आचारशाला का उद्घाटन उत्तरी परिसर के सम्मेलन केंद्र में हुआ जिसमें बतौर मुख्य अतिथि डीन ऑफ कॉलेज, प्रो. बलराम पाणी उपस्थित रहे। इस अवसर पर श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. राजेश कुमार पांडेय मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित रहे जबकि उनके साथ बतौर विशिष्ट अतिथि दक्षिण परिसर के निदेशक प्रो. श्री प्रकाश सिंह, आईओई के सीईओ प्रो. राजीव गुप्ता तथा छात्र कल्याण अधिष्ठाता प्रो. रंजन कुमार त्रिपाठी उपस्थित रहे।

इस अवसर पर मुख्य अतिथि प्रो. बलराम पाणी  ने भारतीय शिक्षा प्रणाली के अतीत और वर्तमान पर प्रकाश डालते हुए कहा कि प्राचीन काल में गुरुकुल प्रणाली ने नैतिकता और चरित्र निर्माण को केंद्र में रखा था। वर्तमान में, शिक्षा का उद्देश्य केवल रोजगारपरक नहीं होना चाहिए, बल्कि नैतिक नेतृत्व और समाज सेवा को बढ़ावा देना चाहिए। उन्होंने युवाओं को राष्ट्र निर्माण में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रेरित करते हुए कहा कि भविष्य के भारत को शिक्षित, जागरूक और जिम्मेदार नागरिकों की आवश्यकता है। विशिष्ट अतिथि प्रो. श्री प्रकाश सिंह ने भारत की संस्कृति और सभ्यता की निरंतरता को रेखांकित करते हुए कहा कि भारतीय समाज ने सदियों से विविधता में एकता को बनाए रखा है। उन्होंने भारत की सहिष्णुता और समावेशिता को भारतबोध का आधार बताया, जो हमारे राष्ट्रीय चरित्र की पहचान है। प्रो. सिंह ने कहा कि भारत का भविष्य तभी उज्जवल होगा जब हम आधुनिकता के साथ अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़े रहेंगे।

इस अवसर पर स्वागत उद्बोधन में छात्र कल्याण अधिष्ठाता प्रो. रंजन कुमार त्रिपाठी ने आचारशाला कार्यक्रम की रूपरेखा साझा करते हुए बताया की आचारशाला में व्याख्यानों की श्रृंखला शामिल होगी जो छात्रों को उनके कार्यों और विचारों के माध्यम से एक बेहतर परिप्रेक्ष्य में दिल्ली विश्वविद्यालय तथा राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करने में मदद करेगी।उन्होंने बताया कि आज का कार्यक्रम इस श्रृंखला की कड़ी में पहला व्याख्यान हैं जिसका विषय “भारतबोध: अतीत, वर्तमान एवं भविष्य” है। प्रो. त्रिपाठी ने कहा कि भारतबोध का अर्थ केवल भौगोलिक सीमाओं का ज्ञान नहीं है, बल्कि भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत को आत्मसात करना है। उन्होंने वर्तमान पीढ़ी को अपनी सांस्कृतिक पहचान और परंपराओं से जुड़ने की आवश्यकता पर बल दिया, ताकि वे आधुनिक चुनौतियों का सामना आत्मविश्वास के साथ कर सकें। प्रो. त्रिपाठी ने भविष्य में भारत को वैश्विक नैतिक नेतृत्व के रूप में स्थापित करने की दिशा में शिक्षा के महत्व को रेखांकित किया। तत्पश्चात् विशिष्ट अतिथि प्रो राजीव गुप्ता ने वैश्विक संदर्भ में भारत की भूमिका पर जोर देते हुए कहा की शिक्षा संस्थानों को केवल ज्ञान का केंद्र नहीं, बल्कि नैतिकता और सामाजिक मूल्यों का संवाहक बनना चाहिए।भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए उन्होंने छात्रों में सतत सीखने की प्रवृत्ति और आत्मनिर्भरता विकसित करने पर बल दिया।

इस अवसर पर मुख्य वक्ता प्रोफेसर रमेश कुमार पांडे ने “भारतबोध:अतीत,वर्तमान एवं भविष्य” विषय पर अपने व्याख्यान में भारतीय सभ्यता और संस्कृति के गहरे मूल्यों, उनके ऐतिहासिक संदर्भ, वर्तमान प्रासंगिकता, और भविष्य की दिशा पर गहन विचार प्रस्तुत किए। उन्होंने  कहा कि भारत की सभ्यता की नींव प्राचीन संस्कृत साहित्य और वैदिक परंपराओं में निहित है, जिनमें धर्म, न्याय, अहिंसा और सत्य के मूल सिद्धांत शामिल हैं।सांस्कृतिक विविधता के बावजूद, भारत ने सह-अस्तित्व और एकता का मार्ग प्रशस्त किया।गुरुकुल और शास्त्रार्थ परंपराएं शिक्षा और ज्ञान के आदान-प्रदान का महत्वपूर्ण माध्यम थीं। वर्तमान भारत को वैश्विक संदर्भ में अपने सांस्कृतिक मूल्यों को फिर से पहचानने और उन्हें आधुनिक समाज में आत्मसात करने की आवश्यकता है। उपभोक्तावाद और भौतिकवाद के दौर में नैतिकता और आत्मबोध को बनाए रखना अत्यंत जरूरी है।विश्वविद्यालयों की भूमिका केवल डिग्री प्रदान करने तक सीमित नहीं है; उन्हें राष्ट्र निर्माण और नैतिक नेतृत्व के केंद्र के रूप में कार्य करना चाहिए। भविष्य में भारतीय संस्कृति के पुनर्जागरण के लिए युवाओं में स्वाभिमान और सांस्कृतिक चेतना का जागरण भी आवश्यक है। प्रो. पांडेय ने भारत की “वसुधैव कुटुंबकम्” की भावना पर बल देते हुए कहा कि भविष्य में भारत को केवल आर्थिक महाशक्ति नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और नैतिक नेतृत्व के केंद्र के रूप में उभरना चाहिए।उन्होंने शिक्षा प्रणाली में भारतीय दृष्टिकोण और मूल्य-आधारित पाठ्यक्रम को समाहित करने की आवश्यकता की सराहना की।  

इस कार्यक्रम के दौरान विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों के विभागाध्यक्ष एवं महाविद्यालय के प्राचार्य तथा भारी संख्या में छात्र छात्राओं की भागीदारी रही तथा सभी इस श्रृंखला को लेकर उत्साहित तथा सकारात्मक सोच से परिपूर्ण नजर आए। कार्यक्रम का संचालन ज्वाइंट डीन प्रोफेसर हेना सिंह तथा धन्यवाद ज्ञापन ज्वाइंट डीन प्रोफेसर संगीता गदरे द्वारा किया गया।

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