‘लकी’ का चार्म: ‘मैं हूं ना’ के 21 साल पूरे होने पर ज़ायद ख़ान के 6 यादगार लम्हे

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*मैं हूं ना के 21 साल हुए पूरे : 6 आइकोनिक पल जिन्होंने हमें ज़ायद ख़ान के लकी से प्यार करा दिया

*मैं हूं ना के 21 साल: जायद खान के शानदार अभिनय का जश्न

मैं हूं ना अपनी 21वीं वर्षगांठ मना रहा है, लेकिन इसका आकर्षण, संगीत और आइकॉनिक पल पहले की तरह ही दमदार बने हुए हैं। जहां शाहरुख़ ख़ान ने अपनी करिश्माई मौजूदगी से दर्शकों का दिल जीता, वहीं ज़ायद ख़ान ने एक सरप्राइज़ पैकेज के रूप में सबको चौंका दिया। विद्रोही लेकिन प्यारे लकी के किरदार में ज़ायद ने यंग एनर्जी और इमोशनल डेप्थ का ऐसा मेल दिखाया कि दर्शक उनके दीवाने हो गए।

तो आइए, इस कॉलेज ड्रामा को एक बार फिर याद करते हैं ज़ायद ख़ान के उन 6 लकी पलों के साथ, जिन्होंने उन्हें मैं हूं ना का असली स्टार बना दिया।

वह बाइक एंट्री जिसने कहा ‘स्टार आ गया!’
चाहे लकी की कहानी से सीधा न जुड़ा हो, पर इस एंट्री के बिना कोई लिस्ट अधूरी है। जायद की स्टाइलिश बाइक एंट्री, स्लो मोशन में अपने बालों और चश्मे को झटकते हुए, _तुरंत एक युवा आइकन के रूप में उनकी स्थिति को मजबूत करती है। यह एक ऐसी एंट्री है जिसने एक युग को परिभाषित किया – और लकी को पहले फ्रेम से ही अविस्मरणीय बना दिया।

पहला राम-लक्ष्मण मिलाप
फिल्म के सबसे इमोशनल पलों में से एक—जब राम गिरते हुए लकी को थामते हैं और कहते हैं, “लक्ष्मण, मैं हूं ना।” जो आलिंगन उसके बाद होता है, वो सिर्फ़ एक सीन नहीं, बल्कि दो बिछड़े भाइयों के दिलों का मिलन है। ज़ायद के लिए यह एक बेहद दिल छू लेने वाला लम्हा था।

लकी बना लक्ष्मण
यह लकी की परिपक्वता की यात्रा का आरंभ था। जब वह राम और अपनी मां को साथ रहने के लिए बुलाता है, तो उसकी सोच और व्यवहार में बदलाव आता है। कॉलेज का शरारती लड़का धीरे-धीरे ज़िम्मेदार लक्ष्मण में बदलता है। ज़ायद ने इस ट्रांसफॉर्मेशन को बड़ी खूबसूरती और नजाकत से दिखाया।

मुँह तो बंद करो, अंकल!
आह, वह पल जब लकी संजना को बिल्कुल नई रोशनी में देखना शुरू करता है! उसका मेकओवर उसे अवाक कर देता है, और जब राम उसे चिढ़ाते हुए कहता है, “मुँह तो बंद करो, अंकल!” तो वह पल भाईयों की मजेदार नोकझोंक में बदल जाता है। ज़ायद की एक्सप्रेशंस और कॉमिक टाइमिंग इस सीन को यादगार बना देते हैं।

जब सच सामने आता है
जब लकी को पता चलता है कि राम ही उसका भाई है, तो उसका टूटना बेहद प्रभावशाली होता है। ज़ायद ने लकी की ठेस, उलझन और दर्द को जिस तरह से निभाया, वह सीधा दिल को छूता है। यह सीन उनके किरदार को केवल मज़ेदार नहीं, बल्कि भावनात्मक गहराई देने वाला बनाता है।

लकी मदद के लिए आता है: “हाथ मत छोड़ना राम!
चरमोत्कर्ष भाईचारे का एक बेहतरीन पल पेश करता है। मेजर राम द्वारा राघवन को हराने के बाद, लकी ही उसे भागने में मदद करता है, और वह यह लाइन कहता है जो आज भी प्रशंसकों के दिलों में गूंजती है: “हाथ मत छोड़ना राम, डरना मत… मैं हूँ ना।” हर बार रोंगटे खड़े हो जाते हैं। इस दृश्य में जायद की भावनात्मक सच्चाई ने लकी को फिल्म के भावनात्मक केंद्र के रूप में स्थापित कर दिया।

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