शेखर कपूर ने बुद्ध पूर्णिमा पर एक किस्सा साझा किया, बताया कैसे ‘उनकी यात्रा की शुरुआत हुई’ – यह आपको जीवन के गहरे अर्थों पर सोचने को मजबूर कर देगा

Listen to this article

*शेखर कपूर ने बुद्ध पूर्णिमा पर साझा की जीवनदर्शी सीख — हिमालय में एक साधु ने कहा ‘अपने हृदय को प्रेम के लिए खोलो’, और वहीं से ‘उनकी यात्रा शुरू हुई’

*शेखर कपूर ने बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर बताया कि कैसे हिमालय के एक साधु की सलाह ने उनके जीवन की दिशा बदल दी

प्रसिद्ध फ़िल्म निर्देशक शेखर कपूर की ज्ञान की खोज और उनके विचारशील दृष्टिकोण के बारे में सभी जानते हैं। वे अक्सर अपने अनुयायियों के साथ ऐसे विचार साझा करते हैं जो मन को छू जाते हैं और सोचने पर मजबूर करते हैं। बुद्ध पूर्णिमा के शुभ अवसर पर उन्होंने अपने सोशल मीडिया पर ऐसा ही एक गहरा अनुभव साझा किया, जो न केवल प्रेरणादायक है बल्कि आत्ममंथन को भी प्रेरित करता है। शेखर ने हिमालय में ट्रैकिंग के दौरान एक साधु से हुई अपनी मुलाकात को याद किया और बताया कि कैसे उस एक बातचीत ने उनके जीवन को बदल दिया और ‘उनकी यात्रा शुरू हुई।’

शेखर कपूर ने लिखा, “आज बुद्ध जयंती है। संस्कृत में बुद्ध का अर्थ है ‘ज्ञानी’… ‘जो जागरूक है’।
मैं हिमालय में अकेला ट्रेकिंग कर रहा था, जब मैं एक साधु से मिला जो अपनी गुफा में ध्यानमग्न थे। ठंडी बहुत थी, लेकिन उन्होंने बहुत ही कम वस्त्र पहने थे। उनकी आंखें बंद थीं। जैसे कोई स्पष्ट ‘डिस्टर्ब न करें’ संकेत हो।
‘क्या आपको ठंड नहीं लग रही?’ मैंने आखिर हिम्मत कर पूछा।
मेरे मन में कई गहरे सवाल थे, लेकिन मैंने यह ‘सबसे मूर्खतापूर्ण’ सवाल कर डाला, यह सोचकर खुद को कोसा।
वो मुस्कराए और बोले – ‘मैं ठंड से अनभिज्ञ था, लेकिन अब जब तुमने पूछ लिया है, हां, ठंड तो है’
फिर उन्होंने आंखें बंद कर ली, चेहरे पर उस तरह की मुस्कान थी जो बच्चे के सवाल पर आती है, जैसे अगला सवाल पहले से जान चुके हों।

नीचे उनकी पोस्ट देखें:

https://www.instagram.com/p/DJivbHixd7B


अपनी कहानी जारी रखते हुए उन्होंने आगे लिखा, “क्या आप जाग्रत हैं?” मैंने पूछा। उन्होंने मेरी ओर गहरी निगाह से देखा। उनकी आँखों का रंग बदलता हुआ प्रतीत हुआ। मुझे नहीं पता कि उनकी निगाहें कितनी देर तक टिकी रहीं। लेकिन मुझे अचानक एहसास हुआ कि सूरज डूब चुका है। और तारे निकल आए हैं.. या मैं यह सब सिर्फ़ कल्पना कर रहा था? ‘शेखर’, मैंने खुद से पूछा, ‘क्या तुम्हें ठंड नहीं लग रही?’
मैं कितनी देर तक उस साधु की दृष्टि के नीचे बैठा रहा?
‘क्या तुम जाग्रत हो?’ साधु ने मुझसे पूछा।
मैं हकलाया – मैं हकलाया। ‘मैं तो … यह भी नहीं जानता कि इसका क्या मतलब है?’ मैंने किसी तरह कहा।
उन्होंने कहा – ‘जहाँ से आए हो, वहीं लौट जाओ। अपने हृदय को प्रेम के लिए खोलो। जब तुम हर ओर प्रेम देखोगे, तो समझ लेना कि वह प्रेम तुम्हारे भीतर से निकला है। उसे बाहर की ओर बहने दो। जब प्रेम भीतर की ओर लौटने लगे, तभी पीड़ा, इच्छा और स्वार्थ जन्म लेते हैं। इसलिए अपने प्रेम को बाहर बहने दो।’
फिर साधु ने आंखें बंद कर लीं।
अचानक मुझे ठंड का अहसास हुआ। अहसास हुआ कि सचमुच रात हो चुकी थी।
मैं सोचने लगा, अब वापसी का रास्ता कैसे मिलेगा?
वहीं से मेरी यात्रा शुरू हुई…”

शेखर कपूर के इस अनुभव से न केवल शांति और आत्मबोध की झलक मिलती है, बल्कि जीवन की सच्ची राह का संकेत भी मिलता है। कला और सिनेमा में उनके अतुलनीय योगदान के लिए हाल ही में उन्हें महाराष्ट्र सरकार द्वारा प्रतिष्ठित पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। फिल्म निर्माता वर्तमान में अपने कल्ट डायरेक्टोरियल डेब्यू मासूम 2 के सीक्वल पर काम कर रहे हैं, जिसमें न केवल ओजी स्टार शबाना आज़मी और नसीरुद्दीन शाह एक बार फिर सिल्वर स्क्रीन पर साथ वापस आएंगे, बल्कि उनकी बेटी कावेरी कपूर भी एक महत्वपूर्ण भूमिका में होंगी।

Print Friendly, PDF & Email

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *