- केंद्र और राज्य के मुद्दे अलग-अलग होते हैं और जनता अलग-अलग पार्टी को वोट देती है, अगर दोनों चुनाव एक साथ होगे तो जनता के लिए निर्णय ले पाना मुश्किल होगा- आतिशी
- लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होने से बड़ी व पैसे वाली पार्टी अपने पैसे और प्रचार के बल पर राज्य के मुद्दे को दबा देंगी और मतदाता का निर्णय प्रभावित होगा- आतिशी
- केंद्र या राज्य में गठबंधन से बनी कोई सरकार दो साल में ही गिर जाती है तो ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के प्रस्ताव के अनुसार अगले तीन साल तक चुनाव नहीं हो सकता- आतिशी
- अभी की स्थिति यह है कि अगर कोई सरकार सदन में विश्वास मत खो देती है तो दुबारा चुनाव होता है और जनता को दोबारा फैसला लेने का अधिकार होता है- आतिशी
- 2013 में दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने 28 सीट के साथ अल्पमत की सरकार बनाई थी, जो 49 दिन ही चली और 2015 के चुनाव में जनता ने “आप“ को एकतरफा जनादेश दिया- आतिशी
- अगर 2013 में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ लागू होता तो दिसंबर 2018 में ही चुनाव हो सकता था और दिल्ली की जनता का जनादेश देने का अधिकार छीन जाता- आतिशी
- वन नेशन वन इलेक्शन लागू होने के बाद सदन में विश्वास मत खोने के बाद भी सरकारें कई साल तक चल सकती हैं, क्योंकि चुनाव पांच साल बाद ही हो सकता है- आतिशी
- सबसे खतरनाक प्रस्ताव यह है कि अगर किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिलता है, तो एंटी डिफेक्शन लॉ को रद्द करते हुए किसी विधायक-सांसद को सीएम-पीएम चुना जाएगा- आतिशी
- अलग – अलग चुनाव कराने को पैसे की बर्बादी कहा जा रहा है, अगर सभी चुनाव एक साथ कराने पर 15 हजार करोड़ खर्चा आता है, तो क्या सिर्फ एक हजार करोड़ सालाना बचाने के लिए हमारे देश के लोकतंत्र को खतरे में डाला जा रहा है?- आतिशी
- भाजपा जो गैर संवैधानिक तरीक से ‘ऑपरेशन लोटस’ कर विधायकों को खरीदती है, वो ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ में कानूनी और संवैधानिक तरीका हो जाएगा- आतिशी
- दल-बदल विरोधी कानून खत्म होने पर किसी भी पार्टी का विधायक या सांसद, किसी दूसरी पार्टी के मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री के लिए मतदान कर सकता है- आतिशी
- वन नेशन, वन इलेक्शन के जरिए भाजपा का अब ऑपरेशन लोटस को संविधान में कार्यान्वित करने का प्लान है- जस्मीन शाह
- डॉ. अंबेडकर ने कहा था कि हम जो ‘सरकार का संसदीय रूप’ लाना चाह रहे हैं, उसका मूल सिद्धांत है कि सरकार पांच साल में एक बार जनता के प्रति जवाबदेह नहीं होगी, बल्कि प्रत्येक दिन जवाबदेह होगी- जस्मीन शाह
- सभी पार्टियों को मिलने वाले कुल चंदे में से तीन चौथाई चंदा भाजपा को मिलता है, ईडी-सीबीआई के दुरुपयोग से भाजपा एमएलए ख़रीदती है, इससे केवल भाजपा को फायदा है- जस्मीन शाह
- आम आदमी पार्टी ने वन नेशन वन इलेक्शन के प्रस्ताव का विरोध करते हुए लॉ कमीशन को 12 पेज में अपनी सौंपी है- जस्मीन शाह
आम आदमी पार्टी ने केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के प्रस्ताव का पुरजोर विरोध करते हुए लॉ कमीशन को 12 पेज में अपनी राय रखी है। पार्टी की वरिष्ठ नेता आतिशी ने कहा कि आम आदमी पार्टी ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के प्रस्ताव का विरोध करती है। यह गैर संवैधानिक और लोकतंत्र के सिद्धांत के खिलाफ है। इसे लागू होने से हमारे देश के लोकतंत्र को भारी नुकसान होगा। केंद्र और राज्य के मुद्दे अलग-अलग होते हैं और जनता अलग-अलग पार्टी को वोट देती है। लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होने से बड़ी व पैसे वाली पार्टी अपने पैसे और प्रचार के बल पर राज्य के मुद्दे को दबा देंगी और मतदाता का निर्णय प्रभावित होगा। अगर केंद्र या राज्य में गठबंधन से बनी कोई सरकार दो साल में ही गिर जाती है तो अगले तीन साल तक चुनाव नहीं हो सकता। उन्होंने दिल्ली का उदाहरण देते हुए कहा कि 2013 में दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने 28 सीट के साथ अल्पमत की सरकार बनाई थी, जो 49 दिन ही चली और 2015 के चुनाव में जनता ने “आप“ को एकतरफा जनादेश दिया। अगर 2013 में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ लागू होता तो दिसंबर 2018 में ही चुनाव हो सकता था और दिल्ली की जनता का जनादेश देने का अधिकार छीन जाता। वहीं, वन नेशन वन इलेक्शन लागू होने पर सदन में विश्वास मत खोने के बाद भी सरकारें कई साल तक चल सकती हैं, क्योंकि चुनाव पांच साल बाद ही हो सकता है। अगर किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिलता है, तो एंटी डिफेक्शन लॉ को रद्द करते हुए किसी विधायक-सांसद को सीएम- पीएम चुना जाएगा।
वहीं, ‘‘आप’’ के वरिष्ठ नेता जस्मीन शाह ने कहा कि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के जरिए भाजपा का अब ऑपरेशन लोटस को संविधान में कार्यान्वित करने का प्लान है। सभी पार्टियों को मिलने वाले कुल चंदे में से तीन चौथाई चंदा भाजपा को मिलता है। ईडी-सीबीआई के दुरुपयोग से भाजपा एमएलए ख़रीदती है। इसे लागू होने से केवल भाजपा को फायदा है।
आम आदमी पार्टी ने केंद्र सरकार के लॉ कमीशन द्वारा लाए गए ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के प्रस्ताव का विरोध किया है और इसं संबंध में आज अपना पक्ष रखा है। इस संबंध में पार्टी मुख्यालय में आम आदमी पार्टी की विधायक आतिशी और वरिष्ठ नेता जस्मीन शाह ने प्रेस वार्ता की। विधायक आतिशी ने कहा कि भाजपा ने पहली बार 2017 में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का प्रस्ताव देश के सामने रखा। ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ यानी केंद्र सरकार व राज्य सरकारों का चुनाव एक साथ होना चाहिए और पांच साल के अंतर के बाद ही अगला चुनाव होने चाहिए। इस प्रस्ताव को लॉ कमीशन के सामने रखा गया। साल 2018 में लॉ कमीशन ने अपनी एक रिपोर्ट देश के सामने प्रस्तुत की, जिसमें लॉ कमीशन ने ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के प्रस्ताव को अपना समर्थन दिया। दिसंबर 2022 में लॉ कमीशन ने सभी राजनीतिक दलों को अपनी रिपोर्ट भेजी और उसपर अपनी राय मांगी। आम आदमी पार्टी ने भी ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ के प्रस्ताव पर अपनी राय रखी है। ‘आप’ की वरिष्ठ नेता आतिशी ने नकहा कि जब ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ की बात होती है और जब सबसे पहले कोई भी यह बात सुनता है, तो उसे लगता है, यह ठीक बात है, तार्किक भी है। इसमें क्या हर्ज है। जब हमारे देश में हर कुछ महीने में कहीं न कहीं चुनाव होते रहते हैं, तो इसमें क्या हर्ज है कि अगर सारे चुनाव एक साथ हो जाएं। मगर जब ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के प्रस्ताव को हम गहराई से जांचते हैं, तो कई बहुत चिंताजनक तथ्य और सैद्धांतिक मुद्दे सामने आते हैं कि किस तरह से अगर ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ लागू हो जाए तो इस देश के लोकतंत्र को बहुत भारी झटका लगेगा। इसलिए आम आदमी पार्टी ने ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का सख्त विरोध करते हुए लॉ कमीशन को लिखित में अपनी राय सौंपी है।
विधायक आतिशी ने कहा कि भारत के संविधान में मूल संरचना, एक ऐसा संवैधानिक सिद्धांत है, जिसको सुप्रीम कोर्ट की 13 सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने केशवानंद भारती केस में स्थापित किया था। इसमें लिखा है कि केंद्र सरकार ऐसी कोई भी कानून या पॉलिसी नहीं ला सकती है, जो इस देश के संविधान की मूल संरचना का हनन करे। हमारे देश में संविधान का जो मूल ढांचा है, वो सरकार का संसदीय रूप है। सरकार के संसदीय रूप में कई तरह के जवाबदेही शामिल होती है। मगर जब आप ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ की बात करते हैं और कहते हैं कि केंद्र और राज्य की सरकार की चुनाव एक समय पर होगा। ऐसे में जो लोग केंद्र में अलग और राज्य में अलग पार्टी को वोट देते हैं, तो जब चुनाव एक साथ होता है और प्रचार एक साथ होता है, तो चुनाव में अलग-अलग मुद्दों की बात करना, उठाना और जनता के लिए सही निर्णय लेना मुश्किल हो जाता है। ऐसे बहुत सारे लोग हैं, जो केंद्र के चुनाव में एक पार्टी को वोट देते हैं और राज्य में दूसरी पार्टी को वोट देते हैं। क्योंकि केंद्र की सरकार के मुद्दे अलग हैं और राज्य की सरकारों के गवर्नेंस के मुद्दे अलग हैं। यह लोगों का एक लोकतांत्रिक अधिकार है कि हम राज्य के मुद्दों पर एक राय रखें और केंद्र के मुद्दे पर एक दूसरी राय रखें। लेकिन जब दोनों चुनाव एकसाथ होते हैं, तो जो बड़ी राजनीतिक पार्टियां होंगी या राष्ट्रीय पार्टियां होंगी, जिनके पास ज्यादा पैसे होंगे औऱ जो राष्ट्र स्तर पर ज्यादा प्रचार कर पाएंगी, वो राज्य के मुद्दों को अपने प्रचार और पैसे से दबा देंगी। ऐसे में जो एक मतदाता सोचता है कि वो अलग-अलग चुनाव में अलग मुद्दों के आधार पर अलग-अलग पार्टी को वोट देंगा, ऐसे में जब एक समय पर चुनाव होगा तो पैसे, प्रचार और पार्टी के आकार की ताकत उस मतदाता के निर्णय पर असर डालेगी। इसलिए आम आदमी पार्टी का यह मानना है कि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ से सरकार के संसदीय रूप के सिद्धांत का हनन होता है।
विधायक आतिशी ने एक अन्य महत्वपूर्ण को उठाते हुए कहा कि मान लीजिए कि 2025 में चुनाव होना है उसके बाद 2030 में चुनाव होना है। मान लीजिए कि अगर किसी भी राज्य या केंद्र में कोई सरकार सदन में विश्वास मत खो देती है। मान लीजिए कि कोई गठबंधन की सरकार बनती है और वह सदन में अपना विश्वास मत खो देती है। या फिर दो साल के अंदर कोई सरकार गिर जाती है, तब भी तीन साल तक चुनाव नहीं हो सकता। इसका मतलब यह हुआ कि जो जनता ने फैसला लिया, यानि हो सकता है कि जनता ने हंग असेंबली या हंग पार्लियामेंट का फैसला लिया हो। यह भी हो सकता है कि जो पार्टियों ने एक साथ गठबंधन कर सरकार बनाई और वो अपने कॉमन मिनिमम प्रोग्राम को चला नहीं पाए। तो आज की स्थिति में फिर से चुनाव होता है और जनता को फिर से अपना फैसला लेने का अधिकार होता है। और जनता फिर से मतदान कर एक नई सरकार को चुन सकती है। हमने दिल्ली में भी ऐसा होते हुए देखा है। साल 2013 में आम आदमी पार्टी की 28 सीटें आई थी और एक अल्पमत की सरकार बनी और वो सरकार केवल 49 दिन चली। इसके बाद फरवरी 2015 में जब चुनाव हुआ, तो उस 49 दिन की सरकार को देखते हुए दिल्ली की जनता ने एकतरफा जनादेश आम आदमी पार्टी को दिया। मगर अगा उस समय ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ लागू होगा तो दिसंबर 2013 के बाद चुनाव सिर्फ दिसंबर 2018 में हो सकता था और दिल्ली की जनता का जनादेश देने का अधिकार छिन जाता। इस प्रस्ताव में एक और बहुत खतरनाक चीज है जिसे कहते हैं ‘कंस्ट्रक्टिव वोट ऑफ नो कॉन्फिडेंस’ यानि अगर अविश्वास प्रस्ताव के बाद कोई सरकार गिर जाती है, तो तब तक वही मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री अपने पद बने रहेंगे, जबतक कोई और अपनी सरकार नहीं बना लेता। तो अविश्वास प्रस्ताव तभी माना जाएगा और सरकार तभी गिरेगी, जब किसी और को बहुमत मिल जाती है। इसका यह मतलब है कि सदन में बहुमत नहीं होने के बावजूद सरकारें कई साल तक चल सकती हैं, क्योंकि चुनाव तो सिर्फ पांच साल के बाद ही हो सकते हैं।
विधायक आतिशी ने कहा कि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के प्रस्ताव का तीसरा और सबसे खतरनाक पहलू यह है कि ‘अगर मान लीजिए कि किसी की सरकार नहीं बनती है या किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिलता है तो प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री कैसे चुना जाएगा। क्योंकि क्योंकि चुनाव तो केवल 5 साल के बाद ही सकते हैं। ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ में प्रस्ताव दिया गया है कि ऐसी स्थिति में जिस तरह से स्पीकर का चुनाव होता है, जिसमें कोई दल-बदल विरोधी कानून लागू नहीं होता, उसी तरह से दल-बदल विरोधी कानून को रद्द करते हुए राज्य या केंद्र में किसी भी विधायक या सांसद को सीधे मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री चुनने का अधिकार होगा। इसका मतलब यह हुआ कि जो भारतीय जनता पार्टी आज गैरकानूनी और गैरसंवैधानिक तरीक से ‘ऑपरेशन लोटस’ करती है। विधायकों को खरीददती और बेचती है, वो ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ में एक कानूनी और संवैधानिक तरीका हो जाएगा। क्योंकि दल-बदल विरोधी कानून खत्म होने पर किसी भी पार्टी का विधायक या सांसद, किसी दूसरी पार्टी के मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री के लिए मतदान कर सकता है। यह हमारे देश के लोकतंत्र के लिए बहुत ही खतरनाक बात है और हम इन्हीं कारणों से ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के प्रस्ताव का पुरजोर विरोध करते हैं। हमारा यह भी सवाल है कि आखिर यह प्रस्ताव क्यों लाया जा रहा है? बार-बार यही चीज बोली जाती है कि चुनाव में बहुत खर्चा होता है। चुनाव एक बहुत महंगी प्रक्रिया है। जिसकी वजह से ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ को ला रहे हैं। 2019 के आम चुनाव में 9 हजार करोड़ रुपए खर्च हुए। अगर हम यह माने कि राज्यों के चुनाव कराने में भी लगभग उनका ही पैसा खर्च होता है। अगर दोनों चुनाव एक साथ कराएंगे तो स्वभावित है कि इसमें ज्यादा संसाधन, ज्यादा ईवीएम मशीन और ज्यादा फोर्स लगेगी। ऐसे में हम यह मान लें कि 9 हजार करोड़ रुपए का 50 फीसद तो खर्च हो ही जाएगा। कुल मिलाकर 5 साल में 5 हजार करोड़ रुपया बचाने के लिए यानी एक साल में एक हजार करोड़ रुपए का खर्च बचाने के लिए हमारे देश के लोकतंत्र को, जनता के शासन को आज खतरे में डाला जा रहा है। आम आदमी पार्टी इस ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के प्रस्ताव का पुरजोर विरोध करती है। यह गैरसंवैधानिक है और यह लोकतंत्र के सिद्धांत के खिलाफ है।
वहीं, आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता जैस्मीन शाह ने ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के प्रस्ताव के ऊपर कई वर्षों से चर्चा हो रही है। हर एक-दो साल में प्रधानमंत्री जी या भाजपा इसका जिक्र करती है। साल 2018 में लॉ कमीशन ने जब 175 पेज की रिपोर्ट बाहर निकाली तो काफी अध्ययन करके उन्होंने इस प्रस्ताव पर अपनी राय रखी और कहा कि हम इस प्रस्ताव का समर्थन करते हैं। जब आम आदमी पार्टी ने इस पूरे प्रस्ताव का गहन अध्ययन किया। हमने खुले मन से इसका अध्ययन किया और यह सवाल पूछा कि क्या देश का इस प्रस्ताव से फायदा होगा, तो हम जरूर इस प्रस्ताव का समर्थन करते। मगर जब बारीकी से आप इस प्रस्ताव की रिपोर्ट को पढ़ते हैं कि इस विचार को आप कैसे अमल में लाएंगे तो सरकार के संसदीय रूप में जितनी भी दिक्कतें आती हैं, सरकारें गिरती और बनती हैं। हम 75 सालों से यह देखते आए हैं कि भारत की लोकतंत्र को अभी तक कोई चुनौती नहीं दे पाया है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोग कहते रहे हैं कि भारत में लोकतंत्र कैसे चलेगा? यह तो सरकारें ही नहीं बना सकते हैं, लेकिन जो शक्ति और ताकत हमारे संविधान में है, उसने हमको 75 साल तक मजबूत रखा है। हमने यह अध्ययन किया कि इस प्रस्ताव की क्या-क्या अच्छी या खराब चीजें है। इसमें सबसे पहली चीज यह है कि ‘सरकार का संसदीय रूप’ हमारे संविधान का एक मूल ढांचा है। किसी भी सरकार को यह पूरी तरह से अधिकार है कि वह संविधान में संशोधन कर सकते हैं। मगर वह इसके मूल ढांचे को संशोधित नहीं कर सकती। हमारे संविधान के मूल ढांचे का एक सिद्धांत ‘सरकार का संसदीय रूप’ है। ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के प्रस्ताव के जरिए यह कवायद की जा रही है कि ‘सरकार के संसदीय रूप’ को बदलकर इसे ‘सरकार का राष्ट्रपति रूप’ लाना चाह रहे हैं। यह एक बहुत बड़ी और खतरनाक चीज है, जिसे देश के लोगों को भी समझना होगा। हमें याद होगा कि जब भारत का संविधान लिखा जा रहा था तो भारतीय संविधान सभा ने वर्षों तक विचार-विमर्श किया। वाद-विवाद किया। यह सभी चीजें रिकॉर्ड में हैं। उस वक्त बाबा आंबेडकर साहब अंबेडकर ने संविधान सभा की डिबेट 17 सिंतबर 1949 को एक बात कही थी। उन्होंने दावे के साथ कहा था कि हम जो सरकार का संसदीय रूप लाना चाह रहे हैं, उसका एक मूल सिद्धांत है कि सरकार पांच साल में एक बार जनता के प्रति जवाबदेह नहीं होगी, बल्कि पांच साल में प्रत्येक दिन जनता के प्रति जवाबदेह होगी। यह जवाबदेही कैसे होती है। यानि केंद्र में लोकसभा और राज्य में विधानसभा में बहुमत मिलने पर ही आपकी सरकार चलेगी। इसलिए हमारे संविधान के जनक ने कहा था कि सरकार को केवल स्थायी होने के बजाय, जनता के प्रति जवाबदेह होना बेहद जरूरी है। केवल यह कहना कि सरकार का स्थाई होना बहुत जरूरी है, लेकिन जनता के प्रति जवाबदेही नहीं है, तो फिर लोकतंत्र का कोई मतलब नहीं रहता है। इसलिए ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का जो विचार है, यह कहीं न कहीं हमारे सरकार के संसदीय रूप के सिद्धांत को कमजोर करता है।
उन्होंने कहा कि यह है कि न केवल संविधान बल्कि हमारे लोकतंत्र की जो मौलिक विचार है, जिसमें लोगों के हाथ में ताकत होनी चाहिए कि अगर आपका चुनी हुई सरकार में विश्वास खत्म हो जाता है तो आप अपने प्रतिनिधियों के जरिए सरकार को गिरा सकते हो। लेकिन ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ के पूरे प्रस्ताव में कंस्ट्रक्टिव वोट ऑफ नो कॉन्फिडेंस का जो आइडिया रखा गया है, यह बेहद चिंताजनक है। इसमें लिखा है कि अगर आपकी सरकार बन गई, तब तो सही है लेकिन गठबंधन की सरकार बनने पर अगर पार्टी के विधायक या सांसद आपको समर्थन नहीं देते हैं, फिर भी वही मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री बना रहेगा। इसकी एक प्रशासनिक कठिनाई यह है कि जनता द्वारा चुना हुआ मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री शासन कर रहा है, लेकिन सरकार जो भी प्रस्ताव लाएगी, उसको सांसद और विधायक का बहुमत नहीं मिलेगा। ऐसे में सरकार का बजट कैसे पास होगा, जितने भी प्रमुख बिल होंगे या कानून लाए जाएंगे, उनके बिल कैसे पास होंगे। ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ के प्रस्ताव में इन मुद्दे पर कोई चर्चा नहीं है। इसलिए यह एक हिसाब से लग रहा है कि इस प्रस्ताव का इतना गहन अध्ययन नहीं किया गया है, जितना करना चाहिए था। इसमें एक और चिंताजनक बात है। हम पूरे देश में पिछले 5-7 सालों से एक चीज देख रहे हैं। जब से भाजपा की सरकार केंद्र में आई है, तब से ऑपरेशन लोटस के जरिए देश में खुलेआम विधायकों को खरीदने-बेचने के तरीके को वैधता दे दी गई है। अब आप कह रहे हैं कि इसे हम संवैधानिक अनुमोदन देंगे। अब हम संविधान में लिखकर इसकी अनुमति देंगे और इसको प्रोत्साहित करेंगे कि जिस दिन आपको मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री चुनना हो वो सदन के स्पीकर के फॉर्मूले पर चुना जाएगा। इसमें कोई भी किसी भी पक्ष के लिए वोट कर सकता है। हम सभी जानते हैं कि इस देश की सबसे अमीर राजनीतिक पार्टी कौन सी है। अगर हम चुनाव आयोग के पिछले दो साल के आंकड़े देखें कि जो पार्टी चुनाव आयोग को जानकारी देती है कि उनके पास कितना चंदा इकट्ठा होता है। इसमें देखा जाए तो देश की सभी राजनीतिक पार्टियों को मिलाकर भी तीन चौथाई चंदा सिर्फ भारतीय जनता पार्टी के पास आता है। हमें पता है कि ईडी और सीबीआई सहित देश की तमाम जांच एजेंसियों को विरोधियों पर डाली जाती हैं। कई सारे विधायक और सांसद तो सिर्फ इसलिए ही भाजपा का समर्थन करते है कि उनके पीछे ईडी-सीबीआई को ये लोग छोड़ देंगे। अगर वह इस फॉर्मूला पर ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ को लाते हैं, तो यह साफ पता चलता है कि किस राजनीतिक पार्टी को इसका फायदा मिलने वाला है। हमने अपने जवाब में कई सारे तर्क रखे हैं। आम आदमी पार्टी ने 12 पन्ने में इस प्रस्ताव पर अपनी पूरी राय रखी है, जिसमें और भी कई तर्क दिए गए हैं।