श्री पवन खेड़ा ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा- नमस्कार साथियों। आज एक महत्वपूर्ण दिन है और मनमोहन सिंह जी के बारे में कहा जाता है कि जब वो बोलते हैं तो पूरा विश्व सुनता है। हमारे साथ पी. चिदंबरम साहब हैं और जब पी. चिदंबरम जी बोलते थे, तब मनमोहन सिंह जी भी सुनते थे और हम सब तो सुनते ही थे, पूरा देश, पूरा विश्व सुनता था। आज बजट पर पहले श्री पी. चिदंबरम अपना वक्तव्य अंग्रेजी में रखेंगे और उसे हिंदी में प्रो. गौरव वल्लभ आपके सामने रखेंगे। ज्यादा समय नहीं लेते हुए श्री पी. चिदंबरम अपनी बात कहेंगे।
श्री पी चिदंबरम ने कहा – 2023-24 का बजट और माननीय वित्त मंत्री का बजट भाषण बताता है कि यह सरकार लोगों और जीवन, आजीविका और अमीर और गरीब के बीच बढ़ती असमानता के बारे में उनकी चिंताओं से कितनी दूर है .
मुझे खेद के साथ इस ओर इशारा करते हुए शुरू करना चाहिए कि वित्त मंत्री ने अपने भाषण में कहीं भी बेरोजगारी, गरीबी, असमानता या समानता जैसे शब्दों का उल्लेख नहीं किया है। कृपा करके उन्होंने अपने भाषण में दो बार गरीब शब्द का उल्लेख किया है। मुझे विश्वास है कि भारत की जनता इस बात का ध्यान रखेगी कि कौन सरकार के सरोकार में है और कौन नहीं।
मुझे संख्याओं की ओर मुड़ने दें।
पिछले साल, सरकार ने 2021-22 के लिए 232,14,703 रुपये की जीडीपी का अनुमान लगाया था और 11.1 प्रतिशत की मामूली वृद्धि दर मानते हुए, 2022-23 के लिए जीडीपी का अनुमान लगाया था।
258,00,000 करोड़ रुपये। 2021-22 के लिए जीडीपी तब से ऊपर की ओर संशोधित किया गया है
236,64,637 करोड़ रुपये। आज के बजट पत्रों में, 2022-23 के लिए जीडीपी 273,07,751 करोड़ रुपये रहने का अनुमान लगाया गया है, जो कि पहले के अनुमान से 15.4 प्रतिशत की वृद्धि दर है। इस प्रभावशाली संख्या को देखते हुए, वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद को दो अंकों में बढ़ना चाहिए था। फिर भी वित्त मंत्री (और आर्थिक सर्वेक्षण) ने इस वर्ष सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि को केवल 7 प्रतिशत रखा (पैरा 2)। सरकार बताएगी?
वास्तविक जीडीपी वृद्धि का दावा कम पूंजीगत व्यय के सामने है। कृपया निम्नलिखित संख्याएँ देखें:
2022-23
बीई आरई
पूंजीगत व्यय 7,50,246 7,28,274
बनाने के लिए अनुदान
पूंजीगत संपत्ति 3,17,643 3,25,588
————————————————————————————————————
प्रभावी पूंजीगत व्यय 10,67,889 10,53,862
कृपया ध्यान दें कि केंद्र सरकार का पूंजीगत व्यय और प्रभावी पूंजीगत व्यय दोनों बजट अनुमानों से कम हैं। तो, 2022-23 में किस वजह से विकास हुआ? हम जानते हैं कि निजी निवेश नीचे है, निर्यात नीचे है और निजी खपत स्थिर है। तो, सरकार चालू वर्ष में 7 प्रतिशत की वृद्धि की व्याख्या कैसे करती है?
इसके अलावा, 2022-23 में, Q1 और Q2 में विकास दर क्रमशः 13.5 प्रतिशत और 6.3 प्रतिशत अनुमानित की गई है। इसलिए, वर्ष की पहली छमाही में हमारे पास पहले से ही 9.9 प्रतिशत की वृद्धि है। यदि पूरे वर्ष में केवल 7 प्रतिशत उपज होगी, तो क्या इसका मतलब यह है कि तीसरी और चौथी तिमाही में केवल 4 से 4.5 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्ज होगी। इसलिए, पूरे वर्ष के लिए तिमाही जीडीपी विकास दर गिर रही है: 13.5, 6.3, 4.2 और 4.0 प्रतिशत।
ऐसे और भी आंकड़े हैं जो परेशान करने वाले हैं: सबक यह है कि सरकार प्रमुख योजनाओं पर वह खर्च नहीं कर रही है जिसका वादा किया गया था:
2022-23
बीई आरई
(करोड़ रुपए में)
कृषि और संबद्ध गतिविधियां 83,521 76,279
पीएम किसान 68,000 60,000
शिक्षा 104,278 99,881
स्वास्थ्य 86,606 76,351
समाज कल्याण 51,780 46,502
शहरी विकास 76,549 74,546
छाता योजना के लिए
एससी का विकास 8,710 7,722
एसटी का विकास 4,111 3,874
अल्पसंख्यकों का विकास 1,810 530
अन्य का विकास
कमजोर समूह 1,931 1,921
राज्यों को स्थानांतरण 334,339 270,936
नई कर व्यवस्था का विकल्प चुनने वालों की छोटी संख्या को छोड़कर कोई कर कम नहीं किया गया है। कोई अप्रत्यक्ष कर कम नहीं किया गया है। क्रूर और अतार्किक जीएसटी दरों में कोई कटौती नहीं की गई है। पेट्रोल, डीजल, सीमेंट, उर्वरक आदि की कीमतों में कोई कमी नहीं हुई है। कई अधिभार और उपकरों में कोई कटौती नहीं की गई है, जो किसी भी तरह से राज्य सरकारों के साथ साझा नहीं किए जाते हैं।
इस बजट से किसे फायदा हुआ है? निश्चित रूप से, गरीब नहीं। नौकरी की तलाश में बेताब युवा नहीं। न कि जिन्हें नौकरी से निकाला गया है। करदाताओं का बड़ा हिस्सा नहीं। गृहिणी नहीं। सोच रखने वाले भारतीय नहीं जो बढ़ती असमानता, अरबपतियों की बढ़ती संख्या और 1 प्रतिशत आबादी के हाथों में जमा होने वाली संपत्ति से हैरान हैं। निश्चित रूप से, आप नहीं,
यह बहुत स्पष्ट है: सरकार अन्य वाणिज्यिक और वित्तीय केंद्रों की कीमत पर गिफ्ट सिटी, अहमदाबाद के भाग्य को आगे बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्पित है। सरकार ‘नई’ कर व्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए भी दृढ़ संकल्पित है, जिसके लिए कई कारणों से बहुत कम लोग हैं। इसके अलावा, नई कर व्यवस्था को डिफॉल्ट विकल्प बनाना घोर अनुचित है और साधारण करदाता को उस अल्प सामाजिक सुरक्षा से वंचित कर देगा जो उसे पुरानी कर व्यवस्था के तहत मिल सकती है।
आर्थिक सर्वेक्षण ने दुनिया और भारत के सामने आने वाली सभी बाधाओं को सूचीबद्ध किया, लेकिन इन बाधाओं का सामना करने के लिए कोई समाधान पेश नहीं किया। बजट भाषण में विपरीत परिस्थितियों को भी स्वीकार नहीं किया गया। सरकार अपनी ही काल्पनिक दुनिया में जी रही है।
दुनिया भर में तीन प्रमुख तथ्यों को स्वीकार किया जाता है:
- विश्व विकास और विश्व व्यापार 2023 में काफी धीमा हो जाएगा (भारत के लिए,
2023-24)।
- कई उन्नत अर्थव्यवस्थाएँ मंदी की चपेट में आ जाएँगी।
- वैश्विक सुरक्षा स्थिति, यूक्रेन युद्ध और अन्य बढ़ते संघर्षों के लिए धन्यवाद, बिगड़ जाएगी।
अगर तीनों बन गए तो सरकार क्या करेगी? महंगाई और बेरोजगारी से पीड़ित लोगों पर यह किस तरह का बोझ पड़ेगा? न तो आर्थिक सर्वेक्षण में और न ही बजट भाषण में कोई जवाब दिया गया।
यह एक कठोर बजट है जिसने अधिकांश लोगों की आशाओं के साथ विश्वासघात किया है।
प्रो. गौरव वल्लभ ने कहा कि 2023-24 का जो आम बजट वित्त मंत्री जी ने प्रस्तुत किया, वो ऐसा बजट था, जो भारत की आर्थिक समस्याएं हैं, इस बजट में उन समस्याओं का कोई निवारण या उन समस्याओं को इंगित तक नहीं किया गया। आप सब लोगों को जानकर ताज्जुब होगा कि पूरे बजट में बेरोजगारी, गरीबी, आर्थिक असमानता शब्द का प्रयोग तक नहीं किया गया। गरीब शब्द का प्रयोग भी मात्र दो दफा पूरे बजट भाषण में वित्त मंत्री जी ने किया। इससे ये समझ में आ जाता है कि ये आम बजट किसके लिए बनाया गया था और इसका फोकस कौन था।
सबसे पहले हम कुछ नंबर की बात करेंगे। 2021-22 में देश की जीडीपी 2,32,14,703 करोड़ रुपए वित्त मंत्री जी ने बताई और ये भी बताया कि नॉमिनल ग्रोथ 11.1 प्रतिशत रहने की उम्मीद है। उसके अनुसार 2022-23 की जीडीपी 258 लाख करोड़ रुपए होनी चाहिए थी, पर 2021-22 की जीडीपी को फिर रिवाइज किया गया, जो पहले 232.14 लाख करोड़ बताई गई, उसको 236.64 लाख करोड़ रुपए, उसको रिवाइज किया गया। आज के बजट भाषण में जो मौजूदा वित्तीय वर्ष है 2022-23 इसकी जीडीपी 273 लाख करोड़ बताई। अर्थात अगर हम इसका विश्लेषण करें तो नॉमिनल जीडीपी में ग्रोथ होता है, 15.4 प्रतिशत। नॉमिनल जीडीपी में अगर 15.4 प्रतिशत की ग्रोथ है, तो रियल जीडीपी कम से कम डबल डिजिट में होनी चाहिए। वित्त मंत्री जी और आर्थिक सर्वेक्षण में इसको 7 प्रतिशत तक बताया गया है। क्या सरकार बताएगी कि ये 7 प्रतिशत ही क्यों है, क्योंकि जो आपके बजट के रियल नॉमिनल जीडीपी के नंबर हैं, वो तो कुछ और ही व्याख्या कर रहे हैं।
दूसरी बात, सरकार का जो कैपिटल एक्सपेंडिचर है, वो जो एस्टिमेट किया था मौजूदा वित्तीय वर्ष में 10,67,889 करोड़। जबकि रिवाइजड एस्टिमेट में वो 10,53,862 करोड़ हुआ। मतलब, जो पूंजीगत खर्चा सरकार करना चाहती थी, वो भी पूरा नहीं कर पाई। अब सवाल ये उठता है कि जब प्राइवेट इन्वेस्टमेंट गिर रहा है, एक्सपोर्ट गिर रहे हैं, प्राइवेट कंजम्पशन मोर और लैस स्थिर बना हुआ है, जो कैपिटल एक्सपेंडिचर है, पूंजीगत खर्चा है, वो गिर रहा है, तो ये 7 प्रतिशत जीडीपी अचीव हुई, तो हुई कैसे? इसकी कोई व्याख्या इस बजट में नहीं दी गई।
उसके अलावा जो मौजूदा वित्तीय वर्ष के 2 पहले क्वार्टर के रिजल्ट आए, साढ़े तेरह प्रतिशत की ग्रोथ और 6.3 प्रतिशत की ग्रोथ तो पहले हाफ ईयर में देश की जीडीपी ग्रोथ हुई 9.9 प्रतिशत। अगर हम मान भी लें कि 7 प्रतिशत की जीडीपी ग्रोथ होगी, तो आने वाले, जो क्वार्टर थ्री और क्वार्टर फोर है, उसकी ग्रोथ 4 से साढ़े चार प्रतिशत रहेगी। अर्थात मौजूदा वित्तीय वर्ष में क्वार्टर दर क्वार्टर देश की जीडीपी ग्रोथ रेट गिरी है। मौजूदा वित्तीय वर्ष के पहले क्वार्टर में साढ़े तेरह प्रतिशत, दूसरे क्वार्टर में 6.3 प्रतिशत, तीसरे क्वार्टर में 4 से साढ़े चार प्रतिशत के बीच और चौथ में भी ये है। तो देश में क्वार्टर दर क्वार्टर जीडीपी ग्रोथ गिरी है।
ये भी बड़े ताज्जुब की बात है कि देश की सरकार देश की प्रमुख स्कीम में जितना खर्चा करने का सोचती है, उतना खर्च भी नहीं कर पाती है। कुछ उदाहरण आपके सामने रखता हूं – कृषि पर सोचा था सरकार ने कि 83 हजार 521 करोड़ रुपए खर्च करेगी, जबकि इसको रिवाइज कर दिया गया 76,279 करोड़। पीएम किसान पर 68 हजार करोड़ रुपए खर्च करने का बजटरी एस्टिमेट था, जबकि वास्तविक खर्च हुआ 60 हजार करोड़। एजुकेशन पर, 1,04,278 हजार करोड़ रुपए खर्च करने का बजटरी एस्टिमेट था, खर्च किया मात्र 99,881 करोड़। हेल्थ पर 86,606 करोड़ की जगह 76,351 करोड़। सामाजिक वेलफेयर पर 51,780 की जगह 46,502 करोड़। शहरी विकास पर 76,550 करोड़ की जगह 74,546 करोड़। डेवलपमेंट फॉर दी एससी कम्युनिटी में 8,710 करोड़ खर्च करने का सोचा था और खर्च किय़ा मात्र 7,722 करोड़। शेड्यूल ट्राईब के विकास पर सोचा था 4,111 करोड़ रुपए खर्च करेगी सरकार, खर्च किया मात्र 3,874, माइन्योरिटी के डेवलपमेंट पर बजटरी एलोकेशन किया गया था 1,810 और खर्च किया मात्र 530 करोड़ रुपए और जो वलनेरेबल ग्रुप (Vulnerable Groups) हैं, सोचा 1,929 करोड रुपए खर्च करने का बजटरी एस्टिमेट था, इसको रिवाइज करके कर दिया 1,821 करोड़ और तो और आप सब लोगों को जानकर ताज्जुब होगा कि राज्यों को जो केन्द्र सरकार की ओर से जो डेवोल्यूशन का पैसा मिलता है, उसमें 3,34,339 करोड़ रुपए देना था और दिया मात्र 2,70,936 करोड़, अर्थात् ये 64 हजार करोड़ रुपए राज्यों का जो हक था, वो नहीं मिला।
अब करों की बात करते हैं। कोई मेजर करों में कटौती नहीं की गई, सिवाय जो न्यू टैक्स रिजीम में जो लोग ऑप्ट करते हैं, उनमें छोटा सा मार्जिनल फेरबदल किया गया। जो इनडायरेक्ट टैक्स हैं, उनमें कोई कटौती नहीं की गई। जो पेट्रोल है, डीजल है, सीमेंट है, फर्टिलाइजर हैं, इनके दाम यथावत बने हुए हैं। जो जीएसटी की इरेशनल दरें हैं, उनमें कोई रेशनालिटी नहीं लाई गई और तो और जो केन्द्र सरकार बहुत सारे सेस इकट्ठा करती है और ध्यान रहे, सेस का पैसा राज्यों को नहीं मिलता है, वो सीधा केन्द्र सरकार के पास जाता है। उन सेस में भी, सरचार्ज में किसी तरह की कोई कटौती नहीं की गई।
तो सवाल ये उठता है कि इस बजट से किसका फायदा हुआ। एक बात तो सत्य है कि इससे गरीब लोगों का कोई फायदा नहीं हुआ। जो युवा पीढ़ी है, जो रोजगार की तलाश कर रही है, उनका भी कोई फायदा नहीं हुआ। जो लोगों को नौकरी से निकाला गया है पिछले दो साल, एक साल में, उनको भी कुछ नहीं मिला। जो टैक्स पेयर हैं, जो समय पर कर देते हैं, उनको भी कोई बड़ा रिलीफ नहीं मिला। जो माताएं, बहनें, गृहणियां हैं, उनको भी किसी तरह का फायदा नहीं हुआ, और तो और वह हर एक व्यक्ति जो भारत के बारे में सोचता है, उनको भी आज के बजट से सिर्फ और सिर्फ निराशा और हताशा हाथ में लगी है।
ये बजट मुख्य रुप से उन लोगों के लिए इंगित किया गया था, जिनके पास देश की अधिकांश वेल्थ है और जो रिपोर्टें आई हैं, ऑक्सफेम की रिपोर्ट या और जो इनइक्वैलिटी रिपोर्ट है, आपको पता होगा कि 1 प्रतिशत भारतीयों के पास देश की कितनी कुल संपत्तियां हैं। हाँ, एक चीज बड़ी स्पष्टता से इस बजट में बाहर निकल कर आई है कि ये बजट अहमदाबाद की गिफ्ट सिटी को जरूर फोकस करना चाहता है और उसको एक मेजर बिजनेस हब के रुप में डेवलप करना चाहता है, फाइनेंशियल सेंटर के रुप में डेवलप करना चाहता है, वाणिज्यिक सेंटर के रुप में डेवलप करना चाहता है। हाँ, नए टैक्स रिजीम में जो करदाता कर देते हैं, उनको कुछ फायदा मिला, पर ये करके सरकार ये कहना चाह रही है कि जो लोग पुराने कर टैक्स रिजीम के तहत टैक्स दे रहे हैं, क्योंकि वहाँ पर उनको एग्जम्प्शन का फायदा मिलता है, तो सरकार इनडायरेक्टली ये कहना चाहती है कि आप एग्जम्पशन में इन्वेस्टमेंट मत करो, अपने आने वाले समय के लिए पैसा मत लगाओ।
आर्थिक सर्वे ने साथियों बहुत सी देश के सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में बताया था, हमें उम्मीद थी कि वित्त मंत्री उन चुनौतियों का किस तरह सामना करेंगे, उसके बारे में विस्तार से अपने बजट भाषण में उल्लेख करेंगी। मैं तीन मुद्दे आपके सामने रखना चाहता हूं –
पहला जो 2023 का वर्ष है, इसमें दुनिया की ग्रोथ और दुनिया की ट्रेड स्लो डाउन होगी। उसका भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या फर्क पड़ेगा, क्या इम्पैक्ट पड़ेगा, वित्त मंत्री जी इसके बारे में बिल्कुल खामोश थीं।
दूसरा, दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाएं रिसेशन में जाएगी, उसके कारण देश की अर्थव्यवस्था पर क्या फर्क पड़ेगा, इसके बारे में इस बजट में किसी भी तरह का उल्लेख नहीं किया गया और अंतिम जो वैश्विक सिक्योरिटी सिचुएशन है, उसके बाद जो और आने वाले समय में और ज्यादा deteriorate करेगी, उसके बारे में भी इस बजट में किसी तरह का कोई उल्लेख नहीं है।
हमारा सवाल है कि जो तीन चुनौतियां देश के सामने हैं, अगर ये सही साबित हो जाती हैं, तो इन चुनौतियों से निपटने की सरकार की क्या तैयारी है? सरकार इनका किस तरह सामना करेगी, क्या फिर से इन चुनौतियों के पीछे छुपकर हमें कहेगी कि बेरोजगारी इसलिए है क्योंकि ये वैश्विक चुनौतियां हमारे सामने हैं और जो देश के लोग भारी बेरोजगारी और भयंकर महंगाई से त्रस्त हैं, उससे निदान दिलाने के लिए सरकार की क्या रणनीति है, क्या नीति है? ये भी हम सवाल करना चाहते हैं।
ये सारे सवाल ना तो जो कल आर्थिक सर्वे प्रस्तुत हुआ, उसमें इन सवालों का उत्तर दिया गया, ना वित्त मंत्री के आज के बजट भाषण में इनका उत्तर दिया गया। तो हम यही कहेंगे कि देश के अधिकांश लोगों के लिए ये बजट उनकी आकांक्षाओं, इच्छाओं और उनकी उम्मीदों पर बिल्कुल भी खरा नहीं उतरा है।