अडानी समूह पर लगे आरोपों के बीच मोदी सरकार ने रहस्यमयी चुप्पी साध रखी है जिससे किसी सांठ-गांठ का इशारा मिल रहा है। आज से इस मुद्दे पर कांग्रेस पार्टी प्रधानमंत्री से प्रतिदिन तीन प्रश्न पूछेगी।
पनामा पेपर्स के खुलासे के जवाब में, 4 अप्रैल 2016 को वित्त मंत्रालय ने घोषणा की कि आपने व्यक्तिगत रूप से एक बहु-एजेंसी जांच समूह को विदेशी टैक्स हेवन समझे जाने वाले देशों से वित्तीय प्रवाह की निगरानी करने का निर्देश दिया था। इसके बाद 5 सितंबर, 2016 को हांगझोऊ, चीन में जी20 शिखर सम्मेलन के दौरान आपने कहा था: “हमें आर्थिक अपराधियों के लिए सुरक्षित आश्रयों को खत्म करने, धन शोधन करने वालों का पता लगाने और उनका बिना शर्त प्रत्यार्पण करने और जटिल अंतरराष्ट्रीय विनियमों और अत्यधिक बैंकिंग गोपनीयता के उस ताने-बाने को ध्वस्त करने के लिए कार्रवाई करने की आवश्यकता है, जो इन भ्रष्टाचारियों और उनकी गतिविधियों को छिपाती है।” यह परिस्थितियां हमें ऐसे प्रश्नों की ओर ले जाती हैं: जहां पर आप ये कहकर बच नहीं सकते कि ‘हम अडानी के हैं कौन’।
- गौतम अडानी के भाई विनोद अडानी का नाम पनामा पेपर्स और पेंडोरा पेपर्स में बहामास और ब्रिटिश वर्जिन द्वीपसमूहों में ऑफशोर कंपनियों को संचालित करने वाले व्यक्ति के रूप में सामने आया था। उन पर “ऑफशोर शेल कंपनियों के एक विशाल मायाजाल” के माध्यम से “स्टॉक में खुल्लम-खुल्ला हेरफेर करने” और “खातों में धोखाधड़ी” में संलिप्त होने का आरोप लगा है। आप हमेशा भ्रष्टाचार से लड़ने में अपनी निष्ठा और “नीयत” की बातें बढ़-चढ़कर करते हैं; और आपकी इसी प्रवृति के कारण लाई गई नोटबंदी के कारण देश को भारी कीमत चुकानी पड़ी है। आज जबकि यह अकाट्य सत्य हमारे सामने है कि एक ऐसी बिजनेस घराना जिससे आपकी सार्वजनिक नजदीकियां हैं; वह गंभीर आरोपों के घेरे में हैं, तो इस संबंध में आपके द्वारा करवाई जा रही जांच की निष्पक्षता और ईमानदारी पर आप थोड़ा प्रकाश डालिए।
- वर्षों से आपने प्रवर्तन निदेशालय, केंद्रीय जांच ब्यूरो और खुफिया राजस्व निदेशालय जैसी एजेंसियों का दुरुपयोग अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदियों को डराने-धमकाने और उन व्यापारिक घरानों को दंडित करने के लिए किया है जो आपके पूंजीपति मित्रों के वित्तीय हितों के अनुरूप नहीं हैं। अडानी समूह के खिलाफ वर्षों से लगाए जा रहे गए गंभीर आरोपों की जांच के लिए आपके द्वारा क्या कार्रवाई की गई है? क्या आपकी देखरेख में किसी निष्पक्ष और न्यायोचित जांच की उम्मीद की जा सकती है?
- यह कैसे संभव है कि भारत के सबसे बड़े बिजनेस घराना में से एक, जिसे हवाई अड्डों और बंदरगाहों में एकाधिकार स्थापित करने की अनुमति दी गई है, लगातार आरोपों के घेरे में होने के बावजूद इतने लंबे समय से गंभीर जांच से बचता चला आ रहा है? अन्य व्यापारिक समूहों को हल्के आरोपों के लिए एजेंसियों ने परेशान किया है और उन पर छापे मारे गए। क्या अडानी समूह उस व्यवस्था के लिए आवश्यक था जिसने इन सभी वर्षों के दौरान “भ्रष्टाचार-विरोधी” बयानबाजी का भरपूर लाभ उठाया है?