जयराम रमेश, संसद सदस्य, महासचिव (संचार), भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा जारी वक्तव्य

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आपने जी 20 बैठक के दौरान में कड़े शब्दों का इस्तेमाल करते हुए, “आर्थिक अपराधियों के लिए सुरक्षित पनाहगाहों को खत्म करने”, ” धन शोधन में संलिप्‍त लोगों का पता लगाने और उनका बिना शर्त प्रत्‍यार्पण करने” और “जटिल अंतरराष्ट्रीय विनियमों और अत्यधिक बैंकिंग गोप‍नीयता के मायाजाल को तोड़ने के लिए विश्‍व के नेताओं से आह्वान किया था, जो भ्रष्टाचारियों और उनके कार्यों को छिपाता है।” फिर भी आपके अपने पूंजीपति मित्रों द्वारा ऐसी गतिविधियों के लिए आपकी उच्‍च स्‍तर की सहनशीलता इन्‍हीं विश्व नेताओं के सामने है।

इसके अलावा, भारतीय पूंजी बाजारों की सुरक्षा के लिए भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) जैसे बाजार नियामकों की विफलता ने उनकी छवि को धूमिल किया है और भारत के वित्तीय बाजारों की पवित्रता पर प्रश्न चिह्न लगाया है।

HAHK (हम अदानी के हैं कौन) श्रंखला के तहत आपके लिए यहां तीन और प्रश्‍न प्रस्‍तुत हैं:

(1) अडानी समूह के खिलाफ” खुल्‍लम-खुल्‍ला स्टॉक में हेरफेर” के गंभीर आरोप हैं। इन आरोपों के सार्वजनिक रूप से उजागर होने के बाद सूचीबद्ध शेयरों की कीमतों में गिरावट ने उन लाखों खुदरा निवेशकों को वित्तीय रूप से नुकसान पहुंचाया है, जिन्होंने कृत्रिम रूप से बढ़ी हुई कीमतों पर अदानी समूह के शेयरों में निवेश किया था। 24 जनवरी और 6 फरवरी 2023 के बीच अडानी समूह के शेयरों के मूल्य में ₹9,50,000 करोड़ तक की गिरावट आई। 19 जुलाई 2021 को, वित्त मंत्रालय ने संसद में स्वीकार किया था कि अडानी समूह सेबी के नियमों का उल्लंघन करने के लिए जांच के दायरे में है। फिर भी उसके बाद अडानी समूह के शेयरों की कीमतों में उछाल आने दिया गया। कब सेबी को इस गंभीर चूक और खुदरा बचत को नष्ट करने की अनुमति देने के लिए जवाबदेह ठहराया जाएगा? क्या मोदी सरकार ने सेबी पर जांच धीमी करने के लिए दबाव डाला था?

(2) काले धन के अवैध प्रवाह पर नकेल कसने की आपकी सभी बातों के बावजूद, आपके पसंदीदा व्यवसाय समूह पर सेबी के नियमों को दरकिनार करते हुए विदेशी शेल कंपनियों और संबंधित पार्टियों को निवेश निधि के रूप में प्रस्तुत करके स्टॉक की कीमतों में हेरफेर करने का आरोप है। इनमें से एक गंभीर मामला मॉन्टेरोसा समूह का है, जिसके पास अडानी समूह के स्टॉक के $4.5 बिलियन (₹37,000 करोड़) तक का स्वामित्व है। इस स्वतंत्र फर्म के सीईओ कथित रूप से एक भगोड़े हीरा व्यापारी से जुड़े हुए हैं, जिसके बेटे की शादी विनोद अडानी की बेटी से हुई है। अन्य बड़े फंड लगभग अनन्य रूप से अडानी समूह की कंपनियों में निवेश करने के लिए जाने जाते हैं, जो एक निवेश फंड के लिए असामान्य बात है। इलारा कैपिटल को ही लें, जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के भाई और पूर्व कंजर्वेटिव मंत्री जो जॉनसन हाल तक इसके निदेशक थे। इलारा के पास लगभग विशिष्‍ट रूप से अदानी समूह का $3 बिलियन (₹24,300 करोड़) का स्टॉक था। वित्त मंत्रालय ने संसद को बताया कि सेबी ने 2016 में मॉन्टेरोसा समूह द्वारा संचालित कुछ फंडों के खातों को फ्रीज कर दिया था, लेकिन आगे कोई कार्रवाई होने के संबंध में स्थिति स्‍पष्‍ट नहीं है। सेबी ने इन संदिग्ध बेनामी कंपनियों की समुचित जांच करने के लिए क्या किया है? यदि नहीं, तो अडानी समूह में ऐसा क्या है जिसने भारत के नियामकों और जांच एजेंसियों को पूरी ताकत से सच्चाई को उजागर करने से रोक रखा है? अक्टूबर 2022 में गौतम अडानी ने सेबी चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच के साथ व्यक्तिगत रूप से क्या चर्चा की?

(3) सितंबर 2022 में व्यापक रूप से इस्तेमाल किए जाने वाले नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) के निफ्टी 50 इंडेक्स में अडानी एंटरप्राइजेज का शामिल होना विवादास्पद साबित हुआ। इसमें संदेहास्पद बुनियादी सिद्धांत थे, अत्यधिक कीमत-से-कमाई अनुपात और एक छोटा फ्री फ्लोट। अडानी एंटरप्राइजेज ने सजग निफ्टी इंडेक्स फंड्स को इस जोखिम भरे स्टॉक की खरीदारी करने के लिए मजबूर किया, जिसमें कर्मचारी भविष्य निधि संगठन, भारत का सबसे बड़ा पेंशन फंड शामिल है। हाल के दिनों में वैश्विक शेयर सूचकांकों ने मामले की जांच के दौरान अडानी समूह की कंपनियों को निलंबित कर दिया है, लेकिन एनएसई निवेशकों की सुरक्षा के लिए ऐसी कोई कार्रवाई करने में विफल रहा है। क्या सख्त कार्रवाई करके निवेशकों की सुरक्षा करना सेबी की जिम्मेदारी नहीं है? क्या एनएसई और सेबी पर अडानी को उबारने के प्रयास में नरमी बरतने का प्रधानमंत्री कार्यालय का दबाव है?

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