जैसा कि वादा था, आपके लिए तीन सवालों का आज का सेट प्रस्तुत है, ‘हम अडानी के हैं कौन’ श्रृंखला का सातवां सेट। ये बंदरगाह क्षेत्र में अडानी समूह के तेज़ी से बढ़ते एकाधिकार से संबंधित हैं।
(1) आज अडानी समूह 13 बंदरगाहों और टर्मिनल्स को नियंत्रित करता है, जो भारत की बंदरगाह क्षमता का 30% और कुल कंटेनर आवाजाही का 40% है। यह कोई हैरानी की बात नहीं है कि 2014 के बाद से विकास पथ ने बहुत तेजी पकड़ी है। गुजरात के मुंद्रा पोर्ट के अलावा हाल में अडानी समूह द्वारा जिन बंदरगाहों का अधिग्रहण किया गया है, वे हैं:
2015: धामरा बंदरगाह, ओडिशा
2018: कट्टूपल्ली बंदरगाह, तमिलनाडु
2020: कृष्णपट्टनम बंदरगाह, आंध्र प्रदेश
2021: गंगावरम बंदरगाह, आंध्र प्रदेश
2021: दिघी बंदरगाह, महाराष्ट्र
यहां एक स्पष्ट रणनीति काम कर रही है: भारत के ‘ग़ैर-प्रमुख बंदरगाहों’ से माल लेकर विदेश जाने वाले जहाज़ों में से 93% गुजरात, आंध्र प्रदेश और ओडिशा से जाते हैं। कृष्णपट्टनम और गंगावरम दक्षिण में सबसे बड़े निजी बंदरगाह हैं। अडानी समूह ने अपना लक्ष्य घोषित कर दिया है – 2025 तक इस क्षेत्र में अपनी हिस्सेदारी 40% तक बढ़ाना, और वह अन्य बंदरगाहों का भी अधिग्रहण करने की कोशिश कर रहा है। क्या आप हर महत्वपूर्ण निजी बंदरगाह पर अपने प्रिय व्यवसायी समूह के नियंत्रण का प्रबंध करने का इरादा रखते हैं या निवेश करना चाह रही अन्य निजी कंपनियों के लिए भी कोई गुंजाइश है? क्या यह राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से विवेकपूर्ण है कि धनशोधन और विदेश की शेल कंपनियों द्वारा राउंड-ट्रिपिंग के गंभीर आरोपों का सामना करने वाली एक कंपनी को बंदरगाहों जैसे सामरिक क्षेत्र में भी प्रभुत्व रखने की अनुमति दे दी जाए?
(2) हवाई अड्डों की तरह ही आपकी सरकार ने अपने पास उपलब्ध सभी साधनों का इस्तेमाल करके बंदरगाहों के क्षेत्र में भी अडानी का आधिपत्य स्थापित करने में मदद की। सरकारी रियायत वाले बंदरगाह बिनी किसी बोली के अडानी समूह को बेच दिए गए हैं। और जहां बोली की अनुमति दी गई है, वहाँ प्रतिस्पर्धी चमत्कारिक रूप से बोली से ग़ायब हो गए हैं। लगता है कि आयकर छापों ने कृष्णपट्टनम बंदरगाह के पूर्व मालिक को उसे अडानी समूह को बेचने के लिए ‘राज़ी करने’ में मदद की। क्या यह सच है कि 2021 में सार्वजनिक क्षेत्र का जवाहर लाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट महाराष्ट्र में दिघी बंदरगाह के लिए अडानी की प्रतिस्पर्धा में बोली लगा रहा था, लेकिन उसे जिताने वाली अपनी बोली वापस लेने को मजबूर होना पड़ा, क्योंकि जहाजरानी और वित्त मंत्रालयों ने उसकी बोली का समर्थन करने का इरादा बदल दिया?
(3) खतरों को विभाजित करने और संपत्तियों की रक्षा के लिए आम तौर पर हर पोर्ट के लिए विशेष प्रयोजन वाहनों (SPVs) से बातचीत कर बंदरगाह रियायतें तय की जाती हैं। फिर भी इनमें से कई बंदरगाह अब एक ही सूचीबद्ध कंपनी का हिस्सा हैं, अडानी पोर्ट्स एंड एसईज़ेड। क्या संपत्तियों का यह हस्तांतरण बंदरगाहों के लिए आदर्श रियायत समझौते (मॉडल कन्सेशन एग्रीमेंट) का उल्लंघन करके किया गया? क्या अडानी के व्यावसायिक हितों को स्थान देने के लिए रियायत समझौतों में बदलाव किया गया है?