पवन खेड़ा ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि नमस्कार साथियों। ये बात शाह और शहंशाह दोनों जानते हैं कि राहुल गांधी जी माफी तो मांगेंगे नहीं। लेकिन मुझे व्यक्तिगत रूप से बड़ा खेद होता है, जब भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता सुबह-सुबह नींद भरी आंखों में बिना नहाए, बिना तैयारी किए आप लोगों को परेशान करने आ जाते हैं। क्योंकि जो परंपरा रही है भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ताओं की, वो तो ये रही है कि दिन में व्हाट्सऐप को रिचार्ज करते हैं और शाम को अपना अधकचरा ज्ञान टीवी पर आकर बांट देते हैं। चलिए कुछ भी करते हों बेचारे, मेहनत तो करते हैं, अपने बॉस की तरह प्रेस वार्ता से बचकर भागते तो नहीं हैं, प्रेस वार्ता तो करते हैं कम से कम।
लंदन के वफादार, हमारे स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ़ मुखबिरी करने वाले, 9 बार नाक रगड़ कर इंग्लैंड से माफी मांगने वाले, वाइसरॉय से पेंशन लेने वाले हमें देशभक्ति का ज्ञान देते हैं… वो भी सुबह-सुबह आकर तो हंसी आती है, रोना भी आता है, दुख भी होता है कि इस लोकतंत्र के क्या हाल कर दिए हैं। अब मैं ये लोकतंत्र के हाल पर यहाँ कुछ बोल रहा हूं तो ये लंदन में भी जा रही होगी बात, अमेरिका में भी जा रही होगी बात। लेकिन हमारे व्हाट्सऐप नर्सरी के छात्रों को शायद इसका ज्ञान नहीं है। सरकार के कामों की आलोचना करना देश की आलोचना करना नहीं होता। सरकार देश से बनती है, देश सरकार से नहीं बनता… यह बात शाह और शहंशाह और उनके तमाम वजीरों को अच्छी तरह से समझ लेनी चाहिए और उनके जो भोंपू मित्र हैं, उनको भी समझ लेनी चाहिए।
लोकतंत्र पर, देश की स्थिति पर अगर ये तमाम चर्चाएं यहाँ हिंदुस्तान में खुली हवा में होती रहें, यूट्यूब व ट्विटर के माध्यम से प्रसारित होती रहें, उससे लोकतंत्र मज़बूत ही होगा, कमजोर नहीं होगा। जैसा कि मैंने पिछले हफ्ते आपसे कहा था… चर्चा से लोकतंत्र कमजोर नहीं होता, चर्चा बंद कर देने से लोकतंत्र कमजोर होता है और हम चर्चा करना चाहते हैं। शाह और शहंशाह, दोनों को मैं एक सलाह दे दूं कि आप लोकतंत्र के किराएदार हैं, मकान मालिक नहीं है। मकान मालिक देश की जनता होती है तो आप अपने आपको किराएदार मानकर चलिए। आपसे बड़े-बड़े लोगों को, आपसे कहीं बड़े… कद में कहीं बड़े लोगों को इस पद पर बैठाया है जनता ने और पद से उतारा भी है जनता ने। तो हाथ जोड़कर आपसे नम्र निवेदन है कि किराएदार की तरह रहिए, मकान मालिक बनने की कोशिश मत कीजिए।
वैसे ये ड्रामा क्यों हो रहा है भारतीय जनता पार्टी का… आप तो जानते ही हैं क्यों हो रहा है, लेकिन आपके माध्यम से लोगों को भी हम बता दें कि ये ड्रामा हो रहा है क्योंकि राहुल गांधी जी प्रधानमंत्री के दोस्त के कारनामों पर प्रधानमंत्री से जवाब मांग रहे हैं और घबराई हुई भाजपा रोज़ नया-नया शिगूफा छोड़ रही है, रोज़ आपका ध्यान भटकाने की कोशिश कर रही है, रोज़ सवालों से बचने की कोशिश कर रही है और ऐसी स्थिति ना पैदा हो जाए कि संसद में प्रधानमंत्री बैठे हों और राहुल गांधी जी खड़े होकर फिर से अडानी जी का नाम ले लें… ये घबराहट है। असली ड्रामा जो हो रहा है, वो इस वजह से हो रहा है।
हम फिर जानना चाहते हैं आप जेपीसी का गठन क्यों नहीं करते? हम फिर जानना चाह रहे हैं कि जब राहुल गांधी जी गौतम अडानी का नाम लेते हैं संसद में, हमारे मल्लिकार्जुन खरगे जी जब नाम लेते हैं तब आप वो शब्द एक्सपंज क्यों कर देते हैं, तब आप कार्यवाही से वो शब्द क्यों निकाल देते हैं?
लोकतंत्र का जयचंद बनना है… बनिए, फिर ये मत कहिएगा बाद में कि इतिहास में हमें जयचंद क्यों कहा जा रहा है। इतिहास में आपको जयचंद ही कहा जाएगा अगर आप इस तरह से अपने दोस्त को ज्यादा तवज्जो देंगे और देश को नहीं देंगे। हम फिर से आपसे निवेदन करते हैं, आग्रह करते हैं और उम्मीद करते हैं कि अब आप देश की सोचेंगे, दोस्त की नहीं।
एक प्रश्न पर कि संबित पात्रा ने राहुल गांधी की तुलना मीर जाफ़र से की है, इतिहास के संदर्भ में कितनी फिट होती है, ये बात? श्री पवन खेड़ा ने कहा कि उसका जवाब उन्हें बहुत जल्दी मिलेगा और ऐसा करारा जबाव मिलेगा, हम भी इनसे कुछ-कुछ सीख रहे हैं कि कैसे जवाब दिया जाता है। बहुत जल्दी कार्रवाई की जाएगी।
तृणमूल कांग्रेस को लेकर पूछे एक अन्य प्रश्न के उत्तर में श्री खेड़ा ने कहा कि देखा हमने, हमने देखा गोवा में उनकी कितनी सीटें आई, हमने देखा नॉर्थ-ईस्ट में कितना भारी उनको बहुमत मिला, हम देख रहे हैं वो जहां-जहां लड़ते हैं, झंडे गाड़ देते हैं। मजाक करने की एक सीमा होती है। ठीक है, आप दबाव में होंगे, ठीक है एजेंसीज़ का आप पर दबाव है हम मानते हैं, हम पर भी कोशिश की गई थी एजेंसीज़ का दबाव डालने की, हम दबाव में नहीं आए, आप दबाव में आ गए। स्पष्ट तौर पर कहिए कि हां हम दबाव में आ गए। लोग आपको सम्मान की दृष्टि से देखेंगे कि आप, कम से कम और कुछ नहीं हो, हिम्मत नहीं जुटा पा रहे शाह और शहंशाह से लड़ने की, तो कम से कम ये बताने की हिम्मत जुटा पा रहे हो कि साहब, हम डर गए।
एक अन्य प्रश्न पर कि दिल्ली में बजट वाला विवाद है उस पर आप क्या कहना चाहेंगे, आरोप लगाया जा रहा है दिल्ली सरकार की ओर से कि केन्द्र सरकार ने बजट पेश नहीं होने दिया? श्री खेड़ा ने कहा कि जो आज स्थिति दिल्ली की हो गई है, 15 साल आपने दिल्ली में कांग्रेस का शासन देखा, श्रीमती शीला दीक्षित मुख्यमंत्री थीं, उन 15 सालों में, 5 साल एनडीए का शासन था, अटल जी प्रधानमंत्री थे, आडवाणी जी गृहमंत्री थे सीधा-सीधा दिल्ली को देखते थे, लेकिन ऐसी स्थिति हमने कभी नहीं उत्पन्न होने दी। ताली दो हाथ से बजती है ये मैं मानता हूं। न उस वक्त केंद्र के नेतृत्व ने ऐसी कोई स्थिति इस स्तर तक ले जाने की चेष्टा की और राज्य की सरकार तो परिपक्व सरकार थी ही, शीला दीक्षित जी जानती थीं कि कैसे दिल्ली के हितों से बढ़कर कोई ईगो नहीं, कोई अहंकार नहीं होता, वन अपमैनशिप नहीं होती।
तो उन्होंने उसी तरीके से दिल्ली को बनाया, संवारा, बसाया। मेट्रो उसी वक्त चालू हुई। तब एनडीए का शासन ऊपर था और दिल्ली में कांग्रेस की सरकार थी। उस वक्त बड़े-बड़े अप्रूवल आए, जिसमें आश्रम फ्लाईओवर हो, धौला कुंआ फ्लाईओवर हो, तमाम जो 150 के लगभग फ्लाईओवर्स बने, उसमें कई-कई फ्लाईओवर्स में निर्माण के कार्यों में केन्द्र सरकार की अनुमति की आवश्यकता होती थी, वो हमने ली। पानी, जल-वितरण को लेकर, सोनिया विहार ट्रीटमेंट प्लांट… तो ऐसे कई मैं आपको उदाहरण गिना सकता हूं, क्योंकि उस वक्त मैं सरकार का हिस्सा था।
ऐसा होता था, विवाद भी होता था, लेकिन संवाद कभी खत्म नहीं होता था और संवाद करके दिल्ली के लोगों के हितों की रक्षा शीला दीक्षित करने को हमेशा तत्पर रहती थीं। ये पहली बार हो रहा है कि जो दिल्ली सरकार के हाथ में अधिकार थे वो तक अरविंद केजरीवाल जी ने कोर्ट में जाकर एक ऐसा काम किया है जिससे वो अधिकार भी कम हो गए।
तो अगर आपकी प्राथमिकता दिल्ली के लोगों के हितों की रक्षा करना है तब आप राजनीतिक अहंकार से हटकर सिर्फ और सिर्फ दिल्ली के लोगों की, अपने वोटर्स के हितों की आप रक्षा करें, ये होते हुए हमने देखा नहीं है।
एक अन्य प्रश्न पर कि क्या ये नूरा कुश्ती लगती है या कोई बहुत गंभीर मामला है कि बजट पेश नहीं कर पाई दिल्ली सरकार? श्री खेड़ा ने कहा कि गंभीर तो है, भले ही नूरा कुश्ती भी हो तो भी गंभीर है क्योंकि लोगों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है, दिल्ली की जनता को इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है। तो आप नूरा कुश्ती करते हैं। कभी आप ‘पति-पत्नी और वो’ बनाकर उनको पेश करते हैं कि चलिए साहब, कांग्रेस को अगर नीचा दिखाना हो, नीचा करना हो तो आम आदमी को इस्तेमाल कर लो, ये चलता रहेगा, ये करते रहें, लेकिन दिल्ली के लोगों ने आपका क्या बिगाड़ा है कि आप उनको सजा देते हैं, ये दोनों से सवाल है मेरा।
एक अन्य प्रश्न पर कि दिल्ली के मुख्यमंत्री ने गैर-कांग्रेसी, गैर-भाजपा शासित जो राज्य हैं, उनके मुख्यमंत्रियों को चिट्ठी लिखी है और कहा है कि फ्रंट बनाने की बात वो कर रहे हैं माइनस कांग्रेस, क्या कहेंगे? श्री खेड़ा ने कहा कि पहले दिल्ली तो संभाल लीजिए, आप दिल्ली का बजट तो पेश कर नहीं पा रहे, चले हैं पूरे देश पर झंडा फहराने। यही हैरानी की बात होती है, हंसी भी आती है। आपको दिल्ली के लोगों ने दो बार चुना, ढाई बार चुना, चलिए। पहली बार आप भाग गए, दूसरी बार आपने क्या किया- क्या नहीं किया? चलिए वो भी छोड़ दीजिए हमने उस पर कई बार चर्चा की है, तीसरी बार ये स्थिति आ गई कि अब आप बजट तक पेश नहीं कर पा रहे और चले हैं साहब कि मैं अब तो लाल किले पर ही झण्डा फहराऊंगा। फहरा लीजिएगा वक्त आने पर, लेकिन पहले दिल्ली का तो कुछ करिए।