- बजट जनता की उम्मीदों को नई उड़ान देता है, मगर केंद्र सरकार ने दिल्ली की जनता के उम्मीदों के पंख कतर दिए- दिलीप पांडे
- केंद्र सरकार को 10 दिन पहले दिल्ली का बजट मिल गया था, केंद्र ने 21 मार्च को बजट पेश होने से रोकने के लिए साजिश की- दिलीप पांडे
- केंद्रीय गृह मंत्रालय ने बजट में बेतुकी क्वैरी डालकर इसे सीएम और वित्त मंत्री के बजाय मुख्य सचिव को भेज दिया- दिलीप पांडे
- अगर गृह मंत्रालय में बैठा बाबू बजट को रोक सकता है तो यह लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाने जैसा है- दिलीप पांडे
- अहंकार में डूबी भाजपा की केंद्र सरकार लोकतांत्रिक परंपराओं को दरकिनार कर दिल्ली की जनता से बदला ले रही है- दिलीप पांडे
आम आदमी पार्टी ने केंद्र सरकार द्वारा दिल्ली की चुनी हुई सरकार को विधानसभा में बजट पेश नहीं करने देने को दिल्ली और देश के लिए काला दिन बताया। ‘‘आप’’ विधायक दिलीप पांडे ने विधानसभा में प्रेसवार्ता कर कहा कि किसी राज्य का बजट वहां की जनता की उम्मीदों को नई उड़ान देता है, मगर केंद्र सरकार ने दिल्ली की जनता के उम्मीदों के पंख ही कतर दिए। दिल्ली सरकार ने 10 दिन पहले ही बजट केंद्र सरकार को भेज दिया था। केंद्र को अच्छे से पता था कि 21 मार्च को सदन में दिल्ली का बजट पेश होना है। केंद्र को बजट पेश होने से रोकना था, इसलिए केंद्रीय गृह मंत्रालय ने बेतुके क्वैरी डालकर इसे मुख्यमंत्री और वित्त मंत्री को भेजने के बजाय मुख्य सचिव को भेज दिया। उन्होंने कहा कि अगर गृह मंत्रालय में बैठा एक बाबू बजट को रोक सकता है तो यह लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाने जैसा है। भाजपा की केंद्र सरकार अहंकार में डूबी है और लोकतांत्रिक परंपराओं को दरकिनार कर दिल्ली की जनता से बदला ले रही है।
विधायक दिलीप पांडे ने कहा कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। हमारे यहां लोकतांत्रिक मूल्य की जड़े बहुत गहरी और मजबूत है, लेकिन दिल्ली ने आज काला दिन देखा। दिल्ली की चुनी हुई सरकार को विधानसभा के पटल पर अपना बजट प्रस्तुत नहीं करने दिया गया। लोकतंत्र में सबकी जवाबदेही और जिम्मेदारी तय है। यही हमारे लोकतंत्र की खूबसूरती है। दिल्ली की शासन व्यवस्था, स्कूल, अस्पताल, जनकल्याण से जुड़े विभाग, पीडब्ल्यूडी, यूडी और लाखों स्थाई व अस्थाई कर्मचारियों के साथ-साथ जनता की आकांक्षाएं व अपेक्षाएं दिल्ली की चुनी हुई सरकार से हैं। इसे पूरा करने के लिए दिल्ली सरकार बजट बनाती रही है और इसे पेश कर पास करती रही है। दिल्ली सरकार अपने वादों पर डिलीवर करती रही है। लेकिन आज भाजपा की केंद्र सरकार ने लोकतांत्रिक मूल्य की गहरी और मजबूत जड़ों को खोद डाला है। एलजी हाउस के जरिए खबरें प्लांट कर केंद्र सरकार अपने कुकृत्य को छुपाने का प्रयास कर रही है।
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार के पास दिल्ली का बजट पहुंचे 10 दिन हो गए हैं। उन्हें मालूम था कि 21 मार्च को बजट प्रस्तुत होने से रोकने के लिए कुछ करना पड़ेगा। बजट में केंद्रीय गृह मंत्रालय (एमएचए) ने कुछ बेतुके क्वैरी डालकर इसे मुख्यमंत्री और वित्त मंत्री को न भेजकर मुख्य सचिव को भेज दिया। दिल्ली सरकार के कैबिनेट द्वारा पास किए गए बजट को अगर गृह मंत्रालय में बैठा कोई बाबू रोक सकता है, तो यह लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाने के बराबर है। दिल्ली सरकार अपने विभिन्न विभागों में काम करने वाले लाखों कर्मचारियों से क्या ये कहे कि केंद्र सरकार तुमसे इतनी नफरत करती है कि तुम्हारे घर चूल्हा जले, उन्हें मंजूर नहीं है।
विधायक दिलीप पांडे ने कहा कि एक चपरासी 100 फीसद अपनी सैलरी पर निर्भर है। किसी के घर में कोई बच्चा-बुजुर्ग बीमार है, किसी के बच्चे की महीने की फीस जानी है, किसी को राशन का पैसा चुकाना है। केंद्र सरकार को बताना चाहिए कि इन लोगों ने उसका क्या बिगाड़ा है? जबकि राजनीतिक भिन्नताएं अपनी जगह हैं। बीजेपी ने भी व्यक्तिगत लेना शुरू कर दिया है। सभी को उठाकर जेल में डाल रहे हैं। आम आदमी पार्टी के विधायक-मंत्री सभी को जेल में डाल दीजिए, लेकिन दिल्ली की दो करोड़ जनता ने आपका क्या बिगाड़ा है? राजनीति पराजय का बदला ऐसे लेंगे कि बजट पास होने से रोककर दिल्ली को ठप कर देंगे। दिल्ली सरकार और इनसे जुड़े हुए विभागों के कर्मचारियों की तनख्वाह रोकेंगे। दिल्ली की जनता के हितों के लिए होने वाले कार्यों को रोकेंगे। फिर सूत्रों के जरिए खबरें प्लांट कराकर कमजोर तर्क देंगे। यह तानाशाही और गुंडागर्दी है।
उन्होंने कहा कि दिल्ली के मुख्य सचिव और वित्त सचिव केंद्रीय गृह मंत्रालय (एमएचए) की क्वैरी पर 3 दिन तक कुंडली मारकर बैठे हुए थे। क्वैरी को आगे नहीं बढ़ाए। आज विधानसभा में वित्त मंत्री कैलाश गहलोत ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि दिल्ली के मुख्य सचिव और वित्त सचिव ने जो किया है उसे आपराधिक लापरवाही कहा जाएगा। यह दिल्ली की 2 करोड़ जनता और उनके द्वारा चुनी हुई लोकप्रिय सरकार के खिलाफ साजिश है। इनके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। राज्य का बजट बनाना, कैबिनेट में पास कराना, फिर विधानसभा में टेबल करना और वहां से पास करवाने की पूरी प्रक्रिया एक लोकतंत्र के उत्सव के रूप में देखी जाती है। यह उम्मीद होती है कि पिछली बार जो काम संभवतः नहीं हो पाए होंगे उन्हें इस बार के बजट में पूरा किया जाएगा। दिल्ली की जनता की इन उम्मीदों को पूरा करने के लिए यह उत्सव के रूप में मनाया जाता है। बजट जनता की उम्मीदों को नई उड़ान देता है, मगर केंद्र सरकार ने दिल्ली की जनता के उम्मीदों के पंख कतर दिए। चुनी हुई सरकार से बदला लेते-लेते भाजपा शासित केंद्र सरकार अहंकार में इतनी डूब गई है कि 75 साल की लोकतांत्रिक परंपराओं को दरकिनार करके दिल्ली की जनता से बदला ले रही है।
“आप” वरिष्ठ नेता दिलीप पांडे ने कहा कि मैं केंद्र की मोदी सरकार से हाथ जोड़कर कहता हूं कि अगर हमसे दुश्मनी है तो हमें टांग दीजिए। मगर दिल्ली की जनता से आपकी क्या नाराजगी है? भाजपा को अगर दिल्ली विधानसभा और नगर निगम के चुनावों में हार का बदला लेना है तो आम आदमी पार्टी से लीजिए, दिल्ली की जनता क्यों ले रहे हैं? भाजपा का अहंकार इतना बढ़ गया कि उसमें जनता के हितों को भी झोंक दिया जा रहा है। बीजेपी की इस तरह की प्रवृत्ति निश्चित तौर पर लोकतांत्रिक मूल्यों की हत्या है।