लोकसभा सांसद मनीष तिवारी ने एआईसीसी मुख्यालय में मीडिया को संबोधित किया

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मनीष तिवारी ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि लगभग तीन वर्ष हो गए कि चीन की सेना ने भारत की सरजमीं में घुसपैठ की थी। सबसे पहले तो हम भारतीय सेना की सराहना करना चाहते हैं, जिन्होंने पिछले तीन वर्षों से बहुत ही हिम्मत के साथ, हौसले के साथ चीन की सेना का मुकाबला किया और उनको कई बार खदेड़ा भी, लेकिन कुछ बुनियादी सवाल अभी भी इतने वर्ष बाद एक चिंता का विषय बने हुए हैं और जिसका सरकार की तरफ से पिछले 35 महीनों में कोई जवाब नहीं आया कि आखिर इतने व्यापक स्तर के ऊपर, इतनी जगह पर नियंत्रण रेखा पर यह घुसपैठ क्यों हुई और ये बात मैं इसलिए आपके संज्ञान में लेकर आ रहा हूं कि वर्ष 1993 से शुरू करके वर्ष 2012 तक कि ये जो लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल है, जो नियंत्रण रेखा है, इसको मैनेज करने के लिए एक मूलभूत ढांचा तैयार किया गया है और उसके कुछ जो प्रमुख अंश हैं, वो मैं आपके सामने रखना चाहता हूं।

7 सितंबर, 1993 को एक ‘Agreement of maintenance of peace and tranquility along the line of actual control’, इसके ऊपर हस्ताक्षर किए गए।

29 नवंबर, 1996 को ‘Agreement of confidence building measures in the military field along the LAC’.

11 अप्रैल, 2005 को ‘Protocol on the modalities of confidence building measures in the military field along the LAC’

जनवरी 17, 2012 को ‘Agreement on the establishment of a working mechanism for consultation and coordination on the Indo-China border affairs’ और 23 अक्टूबर, 2013 को ‘Border-defence cooperation agreement’.

तो 1993 से शुरू होकर 2013 तक लगभग 20 साल और इस 20 साल में कांग्रेस की भी सरकारें रही, यूनाइटेड फ्रंट की भी सरकारें रही, एनडीए-भाजपा की भी सरकार रही, पर ये एक मूलभूत ढांचा तैयार किया गया, जिससे कि जो नियंत्रण रेखा है, क्योंकि वो अनडिमार्केटेड है, अनडिलिनियेटेड है, उसके ऊपर किसी भी तरह का कोई तनाव पैदा ना हो और इसके बावजूद आज भी हमारे 50, 60 हजार सैनिक लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल के ऊपर तैनात हैं और ये बुनियादी सवाल इसलिए उत्पन्न होता है, क्योंकि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी 2013 से लेकर अब तक 19 बार राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मिले। 5 बार प्रधानमंत्री चीन गए। शायद कोई भी प्रधानमंत्री 1947 से लेकर 2023 तक इतनी बार चीन नहीं गया होगा और इसके अलावा वुहान में 2018 में मामल्लापुरम में, 2019 में ये इनफॉर्मल समिट हुए और इस सबके बावजूद 2014 में चूमर हुआ, 2017 में डोकलाम हुआ, 2020 में गलवान हुआ और दिसंबर, 2022 में तवांग में जो यांगत्जी दरिया है, वहाँ पर आपस में झड़प हुई।

तो ये जो सारी घटनाएं हैं, ये भारत-चीन रिश्तों का एक नया मील पत्थर बन गई है। तो एक तरफ तो ये घुसपैठ है और दूसरी तरफ आप अगर देखें चीन से जो भारत का व्यापार है, वर्ष 2022 तक ये बहुत तेजी से बढ़ा। वर्ष, 2022 में चीन से हमने 136 बिलियन डॉलर का इम्पोर्ट किया, टोटल ट्रेड थी 136 बिलियन डॉलर, 119 बिलियन डॉलर का हमने इम्पोर्ट किया और 17.5 बिलियन डॉलर का एक्सपोर्ट किया। तो जो भारत का ट्रेड डेफिसिट है, जिसमें चीन को फायदा मिलता है, वो आज 100 बिलियन यूएस डॉलर से ज्यादा है।

तो कहीं ऐसा प्रतीत होता है कि जो चीन से घुसपैठ हो रही है, इसको किसी तरह हम सब्सिडाइज तो नहीं कर रहे। क्योंकि ये कहना कि हमने कन्फलिक्ट और कॉमर्स को डिहाइफनेटेड (dehyphenated) कर दिया है, ये किसी भी तरीके से उचित नहीं है। जब इतनी भारी संख्या में भारत के सैनिक उन बर्फीले इलाकों में पिछले तीन वर्षों से तैनात हैं।

अब आपको याद होगा जून, 2020 में गलवान की दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई और हमारे कई जवान और ऑफिसर वीरगति को प्राप्त हो गए, तो प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने कहा कि भारत की सरजमीं में किसी भी तरह की कोई घुसपैठ नहीं हुई।

अब दिसंबर, 2022 में जब डीजीपी और आईजीपी की कॉन्फ्रेंस होती है तो वहाँ पर एक पेपर प्रस्तुत किया जाता है। जो एसएसपी लद्दाख है, उनकी तरफ से उस डीजीपी-आईजीपी की कॉन्फ्रेंस में आपके बॉर्डर मैनेजमेंट को लेकर ‘Security issues pertaining to unfenced border’ उस पेपर का नाम है। वो प्रस्तुत किया जाता है और मैं उसका एक पैरा सिर्फ आपको पढ़कर सुनाना चाहता हूं, क्योंकि ये अधिकृत तौर से जो उस इलाके के एसएसपी हैं, ये उनकी तरफ से औपचारिक तौर पर जो शीर्ष स्तर की पुलिस कॉन्फ्रेंस है, उसमें ये पेपर रखा गया। उसमें ये लिखा गया है कि Presently there are 65 patrolling points, starting from Karakoram Pass to Chumur, which are to be patrolled regularly by the Indian security forces, out of the 65 patrolling points, our presence is lost in 26 patrolling points, that is patrolling points number 5-17, 24-32, 37, 51, 52 and 62 due to restrictive or no patrolling by the Indian security forces.

Later on, Chinese forces are to accept the fact, that as such areas have not seen the presence of the ISF or civilians since long, the Chinese were present in these areas. This leads to a shift in the border under control of the Indian security forces towards the Indian side and a buffer zone is created in all such pockets, which ultimately leads to a loss of control over these areas by India.

This tactic of PLA to grab land inch-by-inch is known a salami slicing.

अब ये किसी विपक्ष के सांसद या नेता का आरोप नहीं है, ये एक जिम्मेदार पुलिस अधिकारी हैं, जो उस इलाके में तैनात हैं, वहाँ के सुरक्षा की जिम्मेदारी उनके पास है। उन्होंने अधिकृत तौर पर ये बात एक लिखित रूप में डीजीपी और आईजीपी के कॉन्फ्रेंस के सामने रखी। तो ये बात एक विरोधाभास या तो जो प्रधानमंत्री जी कह रहे हैं, वो सही है कि भारत की सरजमीं में कोई घुसपैठ नहीं हुई या ये जो कागज, ये जो पेपर अधिकृत तौर से, औपचारिक तौर से पेश किया गया है, ये पेपर सही है। क्योंकि यही वो 2,000 किलोमीटर हैं, जिसके बारे में निरंतर और लगातार ये बात उठती आई है कि ये 2,000 किलोमीटर जो भारत की सरजमीं है, we have lost to China.

सितंबर, 2020 से जब घुसपैठ के बाद पहली बार संसद का सत्र या संसद समवेत हुई, तबसे लेकर 2023 तक निरंतर और लगातार हर सेशन में लगभग हर दिन हम ये मांग करते आए हैं कि नियंत्रण रेखा पर वास्तविक परिस्थिति क्या है, उसके ऊपर संसद में एक विस्तृत चर्चा की जरूरत है। विस्तृत चर्चा तो छोड़ो अगर आप चीन पर सवाल भी लगाओ, तो वो राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर एडमिट नहीं किए जाते। 56 सवाल तो मेरे ही हैं सितंबर, 2020 से लेकर ये फरवरी- मार्च, 2023 तक, जिनको एक वो रूल है 41 something, उसके तहत सिरे से ही खारिज कर दिया गया और ये सिर्फ मेरा हाल नहीं है, जितने भी सांसद हैं, कई सत्तापक्ष से भी संबंधित हैं, चीन के ऊपर किसी भी सवाल को एडमिट करने के लिए, जवाब देने के लिए ये सरकार तैयार नहीं है।

ये बात और गंभीर इसलिए हो जाती है, क्योंकि हाल ही में चर्चा है कि चीन और भूटान के बीच जो सरहद को लेकर वार्तालाप है, वो एक बहुत एडवांस्ड स्टेज पर है। भूटान के जो राजा हैं, वो हाल ही में भारत आए हुए थे, शायद अभी भी भारत में हैं और उन्होंने अपनी तरफ से आश्वासन तो दिया है, पर ये चिंता सभी को है कि डोकलाम घाटी को लेकर ऐसा कोई समझौता ना हो जाए जिससे भारत की जो सामरिक सुरक्षा है, उसके ऊपर सीधा-सीधा असर पड़े और इसलिए हम आपके माध्यम से सरकार से मांग करना चाहते हैं कि 18 राउंड जून, 2020 से लेकर अब तक मिलिट्री टू मिलिट्री टॉक हुई हैं। अभी फरवरी, 2023 में चीन में भारत के जो डिप्लोमेट्स हैं और चीन के डिप्लोमेट्स हैं, उनके बीच वार्ता हुई हैं, वर्किंग मैकेनिज्म फॉर कॉर्डिनेशन ऑफ इंडिया – चाइना बॉर्डर अफेयर। पर इस सारी बातचीत में क्या निचोड़ निकला है, ये जो चीन में बातचीत हो रही है, उसका क्या ब्यौरा है?

सरकार की तरफ से इसके ऊपर ना कभी वक्तव्य आता है, ना कोई प्रतिक्रिया आती है और संसद में बहस की बात तो आप छोड़ ही दो, जिसे अंग्रेजी में कहते हैं there is an opacity about what has happened.

इसलिए एक जिम्मेदार विपक्ष होने के नाते हम सरकार से ये मांग करते हैं कि एक ऑल पार्टी मीटिंग बुलाई जाए। लीडर के स्तर पर मीटिंग बुलाई जाए और भारत और चीन… क्योंकि संसद चल नहीं रही है, नहीं तो बेहतर ये रहता कि संसद में इसके ऊपर चर्चा होती। उसकी परंपरा है, जब 1962 का युद्ध चल रहा था, तो 7 नवंबर से लेकर 15 नवंबर के बीच 165 सांसद लोकसभा और राज्यसभा में एक व्यापक बहस जो भारत-चीन रिश्तों के ऊपर हुई, जो सरहद के ऊपर परिस्थिति थी, तनाव था, उसको लेकर एक व्यापक बातचीत, एक व्यापक बहस संसद में हुई।

तो इसलिए आज हम ये मांग करना चाहते हैं, क्योंकि तीन वर्ष हो गए जब से ये स्टैंड ऑफ शुरू हुआ है कि एक ऑल पार्टी मीटिंग बुलाकर सारे विपक्ष को भरोसे में लेकर, कॉन्फिडेंस में लेकर विस्तारपूर्वक सरकार को ये बताना चाहिए कि पिछले तीन वर्ष का घटनाक्रम है, उसका ब्यौरा क्या है और ये जो ऑन गोइंग नेगोसिएशन हैं, इसका एक सार, एक समरी सरकार को विपक्ष का जो शीर्ष नेतृत्व हैं, उसके समक्ष रखनी चाहिए।

एक प्रश्‍न पर कि सरकार ये मानने को तैयार नहीं कि घुसपैठ हुई है, इस बात का एहसास आप कैसे कराएंगे उन लोगों कि वहां घुसपैठ हुई? श्री मनीष तिवारी ने कहा कि हमको प्रमाण देने की जरूरत नहीं है। जब सरकार के अपने अधिकारी जो उस इलाके से संबंध रखते हैं, जो उस इलाके की सिविलियन सुरक्षा है, जिनकी जिम्‍मेदारी है, जिम्‍मेदार अफसर हैं उन्‍होंने एक बकायदा पेपर लिखा है और उस पेपर में उन्‍होंने साफ तौर पर जो परिस्थितियां हैं उनका जिक्र किया है। तो अब तो कोई विपक्ष आरोप थोड़े ही लगा रहा है और भारत की सरहद कोई आरोप-प्रत्यारोप का मुद्दा नहीं है, पर अगर जिम्‍मेदार अफसर सरकार के संज्ञान में कोई बात लेकर आते हैं तो उसमें कहीं न कहीं कोई तथ्‍य होगा और इसीलिए हमारी ये बराबर मांग रही है कि संसद में इसके ऊपर चर्चा होनी चाहिए, विस्‍तारपूर्वक चर्चा होनी चाहिए, संसद की परंपरा रही है।

मैंने 1962 का जिक्र किया, 1971 में जब बांग्‍लादेश की संरचना भूतपूर्व प्रधानमंत्री स्‍वर्गीय श्रीमती इंदिरा गांधी जी ने की तो संसद का शीतकालीन सत्र चल रहा था और उस शीतकालीन सत्र में एक तरफ युद्ध चल रहा था, एक तरफ शीतकालीन सत्र चल रहा था और प्रधानमंत्री और उस समय के रक्षा मंत्री बाबू जगजीवन राम जी लगातार संसद को अवगत कराते थे कि सरहद के ऊपर क्या स्थिति है, क्‍योंकि दोनों पश्चिमी फ्रंट और जो पूर्वी फ्रंट है, वो खुले हुए थे, उसके ऊपर क्‍या कार्रवाई हो रही है। तो इसलिए this opacity and paranoia is completely unnecessary.

एक अन्‍य प्रश्‍न पर कि आप ही की यूपीए की सरकार में जिस विभाग से आप मंत्री थे, आप से पहले एक मंत्री थी उन्‍होंने ये कहा कि उस वक्‍त भी चीन ने ये किया था और एज ए प्रोटेस्‍ट मैंने अपना चीन विजिट कैंसिल कर दिया था, लेकिन अभी विदेश मंत्रालय ने जो जवाब दिया कि कोई नई बात नहीं है तीन बार पहले भी चीन कर चुका है तो ये जो सरकार का एटीट्यूड है किस तरह से देखते हैं? श्री तिवारी ने कहा कि सबसे पहले आपको याद होगा कि 2013 में जब मई 2013 की बात है जब चीन के प्रधानमंत्री को भारत आना था और उनका पहला विदेश दौरा था तो डेपसांग में इसी तरह से घुसपैठ हुई थी और उस समय की यूपीए की सरकार ने बहुत ही दृढ़ता से और कूटनीति का इस्‍तेमाल करते हुए चीन को साफ-साफ ये संदेश दिया था कि जब तक ये घुसपैठ रोलबैक नहीं होगी तो चीजें आगे नहीं चल सकती और अगर आप उस समय का जाकर घटनाक्रम देखिए डेपसांग की जो घुसपैठ थी, वहां से जो पीएलए के सैनिक थे वो वापस गए थे।

तो मेरे कहने का तात्‍पर्य ये है कि ये पहली बार नहीं है कि घुसपैठ हुई थी, पर यूपीए की सरकार ने उसको जिस तरह से हैंडल किया था, उस हैंडलिंग की वजह से उन लोगों को वापस जाना पड़ा। जहां तक अरुणाचल प्रदेश का सवाल है अब इस तरह का जवाब देना कि ये तो पहले भी हुआ है ये बहुत ही गैर जिम्‍मेदाराना रवैया है। पहले जब चीन ने अरुणाचल प्रदेश में कई जगहों को रीनेम करने की कोशिश की, तो उस समय की यूपीए की सरकार की तरफ से बहुत तीखी प्रतिक्रिया और बहुत प्रोफाउंड प्रोटेस्‍ट हुआ था और इसलिए हम उम्‍मीद करते थे कि सरकार की तरफ से चाहे वो विदेश मंत्रालय हो, चाहे वो रक्षा मंत्रालय हो, चाहे प्रधानमंत्री का कार्यालय हो एक तीव्र प्रतिक्रिया आनी चाहिए थी कि इस तरह की भारत की प्रभुसत्ता के ऊपर प्रश्‍न लगाने की कोशिश की हम कड़े शब्‍दों में निंदा करते हैं और इसकी जितनी भर्त्‍सना हो सके, उतनी कम है That action in words is even missing from this government.

एक अन्‍य प्रश्‍न पर कि नेशनल सिक्‍योरिटी की आड़ में क्‍या सरकार कुछ छुपा रही है? श्री तिवारी ने कहा कि हमारा ये मानना है कि भारत की संसद के लिए, भारत की रक्षा और सुरक्षा से सर्वोच्‍च और कोई मुद्दा नहीं हो सकता और भारत की रक्षा और सुरक्षा के ऊपर अगर भारत की संसद में बहस नहीं होगी या भारत की संसद में चर्चा नहीं होगी तो और कहां पर चर्चा होगी? The government is answerable and accountable to Parliament और मैंने कई उदाहरण दिए कि जब-जब भारत की राष्‍ट्रीय सुरक्षा के ऊपर चुनौती आई तो उस समय की जो सरकारें थीं, उस समय की सरकारों ने कोई उससे बचने की कोशिश नहीं की, उन्‍होंने साफ तौर पर जो परिस्थितियां थीं, वो संसद के समक्ष रखीं और संसद ने एक स्‍वर में चाहे सत्ता पक्ष के सांसद हों, चाहे विपक्ष के सांसद हों, सभी ने एक स्वर में ये कहा कि भारत की जो एकता और अखंडता है, भारत की प्रभुसत्ता है, उसके साथ कभी हम कोई समझौता न करेंगे और न होने देंगे।

मेरे कहने का मतलब ये है This is not about the government and the opposition अगर सरकार इसके ऊपर चर्चा कराती है, तो इससे सरकार के ही हाथ मजबूत होंगे। आपको याद होगा कि 1994 में भारत की संसद ने एक सर्वसम्‍मति से रेजोल्‍यूशन पारित किया था कि The only unfinished business of partition is the reclaim of those territories illegally  occupied by Pakistan. उस रेजोल्‍यूशन को 2012 में फिर से सर्वसम्‍मति से भारत की संसद ने दोहराया ।

तो ये भारत की संसद की परंपराएं हैं, भारत की राष्‍ट्रीय सुरक्षा को लेकर तो इसीलिए ये बड़े आश्‍चर्य की बात है कि ये सरकार चर्चा से, मैं बहस भी नहीं कहूंगा, चर्चा से इतना बचना क्‍यों चाहती है?

एनसीईआरटी सिलेबस में बदलाव को लेकर पूछे एक अन्‍य प्रश्‍न के उत्तर पर श्री तिवारी ने कहा कि ये पहली बार ऐसी कोशिश नहीं हुई है, जब एनडीए भाजपा की पहली और दूसरी बार 1998, 1999 में सरकार बनी थी, तो इसी तरह से एनसीईआरटी का सिलेबस रिवाइज करने की कोशिश की गई थी, पर इतिहास इस बात का गवाह है कि जो इतिहास को तोड़ने-मरोड़ने की कोशिश करते  हैं, वो खुद इतिहास के कूड़ेदान में पहुंच जाते हैं।

बीजेपी नेता श्री ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया द्वारा दिए बयान को लेकर पूछे एक अन्‍य प्रश्‍न के उत्तर में श्री तिवारी ने कहा कि जहां तक श्री ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया का संबंध है, ये बयान बहुत ही दुर्भाग्‍यपूर्ण है, निंदनीय है और इसकी जितनी भर्त्‍सना की जाए वो कम है। जिस व्‍यक्ति ने एक चुनी हुई सरकार, मध्‍य प्रदेश में एक लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार को अवैध तरीके से गिराया, उसको किसी और के ऊपर लांछन लगाने का कोई हक नहीं है और आज मैं यहीं छोड़ देता हूं, इतिहास के पन्‍ने नहीं खोलूंगा, वो किसी और दिन खोलूंगा।

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