- इंडियन स्पाइनल इंजरीज सेंटर (आई.एस.आई.सी) द्वारा किए गए एक रिपोर्ट के अनुसार स्पाइनल कॉर्ड इंजरी वाले कुल रोगियों में से सड़क दुर्घटनाओं के कारण 44%, गिरने के कारण 38.3% लोग थे
- आई.एस.आई.सी ने एस.सी.आई दिवस 2024 मनाया, जिसका विषय था “हिंसा समाप्त करें – स्पाइनल कॉर्ड की रक्षा करें”
नई दिल्ली । 5 सितंबर, 2024: इंडियन स्पाइनल इंजरीज सेंटर (आई.एस.आई.सी) द्वारा हाल ही में किए गए एक अध्ययन के अनुसार, भारत में स्पाइनल कॉर्ड इंजरी (एस.सी.आई) के प्रमुख 3 कारणों में से हिंसा भी एक है। 2012 से 2022 तक के डेटा के अनुसार सड़क यातायात दुर्घटनाओं (आर.टी.ए) में 44% एस.सी.आई हैं, इसके बाद ऊंचाई से गिरने के कारण सबसे अधिक चोट लगती है। 38.3% चाकू घोंपने और गोली मारने जैसी हिंसक घटनाओं ने भी एस.सी.आई के मामलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
अध्ययन में 2012 और 2022 के बीच भर्ती हुए 1,537 एस.सी.आई रोगियों को शामिल किया गया, जो 2002 से 2010 के बीच भी इसी प्रकार का निष्कर्ष से निकला। जिसमें आर.टी.ए 45% और गिरने के कारण 39.64% बताया गया था। इस प्रकार के रुझान एस.सी.आई की घटनाओं को तत्काल प्रभाव से कम करने पर जोर देते हैं। वैश्विक स्तर पर यदि देखा जाए तो बर्मिंघम, यूके (2010-2018) से नेशनल स्पाइनल कॉर्ड इंजरी स्टैटिस्टिकल सेंटर (एन.एस.सी.आई.एस.सी) के आंकड़ों से पता चलता है, कि वाहन दुर्घटनाओं के कारण 38.52% मामले, ऊंचाई से गिरने के कारण 31.13%, हिंसा के कारण 13.55% और खेल व मनोरंजन गतिविधियों के कारण 8.57% मामले सामने आए।
एस.सी.आई दिवस 2024 के अनुरूप ही, इस बार के विषय “हिंसा समाप्त करें – रीढ़ की हड्डी की रक्षा करें” को ध्यान में रखते हुए, आई.एस.आई.सी अपनी जागरूकता अभियान और उपचारात्मक प्रयासों को तेज कर रहा है।
डॉ. विकास टंडन, चीफ ऑफ, स्पाइन सर्विसेज, आई.एस.आई.सी ने कहा कि, “रीढ़ की हड्डी की चोटें केवल शारीरिक पीड़ा नहीं हैं बल्कि वे व्यक्ति को भावनात्मक रूप से, सामाजिक और आर्थिक रूप से भी प्रभावित करती है। हमारा डेटा रीढ़ की हड्डी के स्वास्थ्य पर आर.टी.ए और गिरने के महत्वपूर्ण प्रभाव को रेखांकित करता है, जिसमें हिंसा भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इनको ध्यान में रखते हुए एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है। डॉक्टर टंडन ने बताया कि, “हमारा मिशन रीढ़ की हड्डी की चोटों से जूझ रहे लोगों के लिए एक समग्र समाधान बनाना है, जिसका लक्ष्य एक ऐसा समाज बनाना है जो वास्तव में विविधता और समावेशिता को महत्व देता हो। हमने हिंसा के शिकार लोगों सहित सभी एस.सी.आई रोगियों के लिए सर्वश्रेष्ठ-इन-क्लास सुविधाएं और सेवाएं प्रदान की हैं।” रीढ़ की हड्डी की चोट वाले व्यक्तियों की कार्यात्मक क्षमताओं में सुधार के लिए पुनर्वास बहुत ही महत्वपूर्ण है। इसमें फिजियोथेरेपी, सहकर्मी परामर्श, प्लास्टिक सर्जरी, मनोवैज्ञानिक सलाह, नर्सिंग देखभाल, सहायक तकनीक, मूत्र संबंधी देखभाल और व्यावसायिक सहायता शामिल है। जो रीड की हड्डी की समस्या को ठीक होने में बहुत मदद करती हैं।
आई.एस.आई.सी में रिहैबिलिटेशन डिपार्मेंट के हेड डॉ. गौरव सचदेवा, ने कहा कि, रिहैबिलिटेशन, जो रोगियों को चोट के बाद अपने नए सामान्य जीवन के अनुकूल होने के लिए सिखाने में महत्वपूर्ण है, मौजूदा सरकारी योजनाओं और बीमा योजनाओं के तहत अपर्याप्त रूप से कवर किया जाता है। रिहैबिलिटेशन और सहायक उपकरणों की आवश्यकता अधिक है परंतु अक्सर इसे अनदेखा किया जाता है। उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य से रिहैबिलिटेशन लागतों को शायद ही कभी सरकारी योजनाओं या कई बीमा कंपनियों द्वारा कवर किया जाता है, जिससे एस.सी.आई रोगियों के लिए महत्वपूर्ण वित्तीय चुनौतियाँ पैदा होती हैं।
आई.एस.आई.सी एक ही छत के नीचे विश्व स्तरीय रीढ़ सर्जनों के साथ सुविधाएं प्रदान करता है। इसने भारत का पहला समर्पित न्यूरो-यूरोलॉजी विभाग भी स्थापित किया है, जो एस.सी.आई रोगियों की देखभाल करता है। आई.एस.आई.सी विश्व स्तरीय रिहैबिलिटेशन प्रोग्राम प्रदान करके मरीज को बेहतर उपचार प्रदान कराता है। यहां के विशेषज्ञों ने 10 वर्षीय लड़के की गोली लगने के कारण जानलेवा स्थिति में एक सफल उपचार और रिहैबिलिटेशन के चलते नया जीवन दिया। सड़क पर खेलते समय पीठ में गोली लगने से 10 वर्षीय लड़के की रीढ़ की हड्डी में चोट लग गई, जिससे लकवा, संवेदना का नुकसान और गंभीर स्वास्थ्य गिरावट आई। शुरू में केवल प्राथमिक उपचार दिए जाने के बाद, उसकी हालत बिगड़ती गई, जिससे सेप्टीसीमिया और मूत्र पथ का संक्रमण हो गया। एक महीने बाद, उसे आई.एस.आई.सी में डॉ. नीरज गुप्ता के पास लाया गया। डॉ. गुप्ता ने गोली निकालने, रीढ़ को स्थिर करने और रीढ़ की हड्डी की क्षति को ठीक करने के लिए सर्जरी की। सर्जरी के बाद, लड़के की हालत में सुधार हुआ और उसका रिहैबिलिटेशन शुरू हुआ।
डॉ. तारुश रुस्तगी के मामले में, 30 वर्षीय पुरुष ने घरेलू हिंसा के बाद दूसरी मंजिल से छलांग लगा दी। उसकी पीठ और कलाई में चोट लग गई और कमर से नीचे का हिस्सा पूरी तरह लकवाग्रस्त हो गया। मनोवैज्ञानिक सहायता सहित सर्जरी और रिहैबिलिटेशन के बाद, वह पूरी तरह लकवाग्रस्त होने से उल्लेखनीय रूप से उबरकर सामान्य जीवन जीने लगा।
पैनल को उन मरीजों से भी बात करने का मौका मिला जो हिंसा के कारण एस.सी.आई से पीड़ित थे। उनसे जुड़ी समस्याओं की पहचान की गई और उस पर अपनी बात रखी गई।
रिपोर्ट के अनुसार यह दोनों मामलों में न केवल रीड की हड्डी की उचित देखभाल के महत्व को दर्शाया गया है बल्कि इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि हिंसा (प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष) से संबंधित मुद्दों को संबोधित करने की आवश्यकता है, जो ऐसी घटनाओं को जन्म देती है।
यदि देखा जाए तो भारत हजारों चौंका देने वाली मौतों का सामना कर रहा है। जिसमें 1.5 मिलियन लोग रीढ़ की हड्डी की चोटों के साथ जी रहे हैं। ऐसे में स्वास्थ्य जगत के लिए समाधान पर जोर देना अत्यंत महत्वपूर्ण हो गया है। इसी को लेकर आई.एस.आई.सी के स्वास्थ्य विशेषज्ञ संपूर्ण समाधान पर जोर देते हैं जिसमें सर्जिकल प्रक्रिया के साथ एक व्यापक रिहैबिलिटेशन प्रोग्राम की आवश्यकता है।