मल्लिकार्जुन खड़गे, कांग्रेस अध्यक्ष और विपक्ष के नेता (राज्यसभा);केसी वेणुगोपाल, महासचिव (संगठन), एआईसीसी और रणदीप सिंह सुरजेवाला, महासचिव, एआईसीसी ने आज एआईसीसी मुख्यालय में मीडिया को संबोधित किया

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रणदीप सिंह सुरजेवाला ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सम्मानित अध्यक्षश्री मल्लिकार्जुन खरगे जी की इस विशेष पत्रकार वार्ता में मैं आप सबका स्वागत करता हूं। एक अत्यंत गंभीर विषय को लेकर विपक्ष के नेता और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष आपके बीच में हैं। मैं उनसे अनुरोध करूंगा कि वो अपनी बात आपको कहेंगे।

श्री मल्लिकार्जुन खरगे ने पत्रकारों को संबोधित करते हुएकहा –सभी को मेरा नमस्‍कार, मैं क्षमा चाहता हूं क्‍यों‍कि ये प्रेस कॉन्‍फ्रेंस बड़ी हड़बड़ी में हो रही है क्‍योंकि आपको समय हमने नहीं दिया और हमने भी कुछ समय नहीं लिया, लेकिन बात जरूरी होने की वजह से हम ये बात आपके सामने रखने के लिए यहां पर आए हैं।

आप सभी को इसकी इत्‍तला है कि पार्लियामेंट के दोनों सदनों में क्‍या चल रहा है और हमने बहुत से मुद्दे पार्लियामेंट में उठाने की कोशिश की, लेकिन जिन मुद्दों पर हम उत्तर चाहते थे और उससे जनता भी संतुष्‍ट होती थी, प्रधानमंत्री जी ने उन सभी प्रश्‍नों का उत्तर न देते हुए सिर्फ अपने चुनावी भाषण के जैसे छाती ठोक-ठोककर बोला, ठीक है हर एक को फ्रीडम ऑफ स्‍पीच हैऔर अपने हिसाब से बात करते हैं, लेकिन वैसी आजादी हमको पार्लियामेंट में कानून के तहत, संविधान के तहत और रूल्‍स ऑफ प्रोसीजर के तहत मिलनी चाहिए।

तो इसीलिए हमने छोटे उद्योगपतियों की बात कीऔर राजधर्म की बात की और अडानी की कंपनियों की हमने बात की और जो शब्‍द अनपार्लियामेंट्री नहीं थे… अब वॉशिंग मशीन की बात की…जिसमें ईडी, सीबीआई के जिनके ऊपर छापे पड़ते हैं फ़ौरन उन एमएलए को, एमपी को और राज्‍यसभा मेंबर को अपनी तरफ लेकर जाते हैं तो उस वॉशिंग मशीन में डालते ही वे बहुत उज्‍ज्वल बनते हैं, क्‍लीन होते हैं और फिर वे साफ बनकर वहां पर उनके साथ जुड़ते हैं।

तो ये जो 75 साल बाद का मित्रकाल है, इस मित्रकाल की बात हमने वहां पर की, इन शब्‍दों को भी वहां पर हटाया गया। कोई अनपार्लियामेंट्री बात तो हमने नहीं कही और हमने ये बताने की कोशिश भी की कि प्‍वाइंट ऑफ आर्डर के तहत रूल 238 और 38ए और उसी तरह एक्‍सपंज करने के लिए 261 और 262 के तहत कुछ प्रोसीजर होते हैं, उसके तहत भी हम पूछने की कोशिश करें, लेकिन मुझे मौका नहीं मिला और हम सिर्फ यही पूछना चाहते हैं कि जो अडानी इतने बड़े घोटाले कर रहे हैं,  उनकी कंपनीके शेयर्स इतने गिर रहे हैं… सिर्फ भारत ही नहीं परेशान, दुनिया के लोग भी परेशान हैं, खासकर भारत के गरीब लोग परेशान हैं, उसके लिए हम ज्‍वाइन्‍ट पार्लियामेंट्री कमेटी चाहते थे और ये कोई गुनाह है? ऐसे शब्‍द भी उसमें से निकाले गए।

और मुझे बड़ीहंसी भी आती हैउन्‍होंने मेरे ऐसे-ऐसे लफ्ज़ निकाल दिए, मैंने पेज नंबर 48 पर कहा था ‘आपकी चुप्‍पी साधने की वजह से और मौनी बाबा बनने की वजह से ये परिस्थिति आई है’। मोदी साहब भी वहां थे और ये ‘मौनी बाबा’ का शब्‍द उन्‍होंने अनेक बार मनमोहन सिंह जी के खिलाफ बोलेथे… वो अनपार्लियामेंट्री नहीं था !वो निकाले और दूसरा पेज नंबर 54 पर ‘आप कैसे ऐसा बोल रहे हैं, मुझे बोलना भी आप सिखाएंगे?’मैंने कहा क्‍योंकि जब चेयरमैन साहब ने मुझे कहा कि ‘आप ठीकसे बोलिए’, तब मैंने बोला ‘साहब, आप क्‍या मुझे बोलना भी सिखाएंगे’ तो वो भी आपत्तिजनक हो गया, वो भी निकाल दिया आपने,इसमें अनप‍ार्लियामेंट्री क्‍या है? और पेज नंबर 55 पर ‘वे चन्‍द उद्योगपतियों को क्‍यों खिला रहे हैं?’…‘मोदी जी के एक नजदीकी दोस्‍त की दौलत’…‘आज वो दोस्‍त मेहरबान हो गए हैं’… और हमारे पास जो आंकड़े थे, आंकड़ों के साथ हमने बोला कि उसकी संपत्ति पहले क्‍या थी? उसके बाद किस ढंग से बढ़ी? उसके बाद में आज 12-13 लाख करोड़ के मालिक कैसे बने? ये हमने वहां पर रखा, इसमें भी उनको आपत्ति थी और हर बात को आप ऑथेंटिकेट करने कोकह रहे हो।

अरे हम अखबार से जानकारीहासिल करते हैं, टीवी से हासिल करते हैं, आप लोगों से लेते हैं, जनता के पास जाते हैं तो हर बात की ऑथेंटिसिटी क्‍या है?… वो निकाल दिया।

पेज नंबर 81… उसमें जो भी मेंबरर्स ईडी और इन्‍कम टैक्‍स घोटाले में लिप्‍त थे, मैंने कही वो वॉशिंग मशीन की बात, उन्‍होंने वो भी निकाल दिया। फिर पेज 83 में…‘जो कलंकित लोग होते थे उनके खिलाफ छापे अब बन्‍द हो गए और उनको कंसेशन दिया जाता है’ इसको भी उन्‍होंने निकाल दिया। फिर आखिरी में शेरो-शायरी तो पार्लियामेंट में चलती है और खासकर अटल बिहार बाजपेयी जी जब थे तो कविताएं पढ़कर वो सुनाते थे, हमने वो देखा है। आज भी शेरो-शायरी होती है, लेकिन पेज नंबर 92 पर मैंने जो शायरी कही थी उसकीकम से कम 7 लाइन काट दी। अरे वो शायरी थी 9 लाइन की… “नजर नहीं हैं नजारों की बात करते हैं, जमीन में चांद सितारों की बात करते हैं, वो हाथ जोड़कर बस्‍ती को लूटने वाले, भरी सभा में सुधारों की बात करते हैं, बड़ा हसीन है उनकी जुबान का जादू, लगा के आग बहारों की बात करते हैं” ये निकाल दिया, ये कौन सा अनपार्लियामेंट्री है? ये तो किसी शायर का है, मेरा नहीं है।

तो ये अगर ऐसी चीजें भी, जो साहित्‍य है, जो लिट्रेचर है, इसकी भी बात अगर हम पार्लियामेंट में नहीं कर सकते तो फ्रीडम ऑफ स्‍पीच कहां है? और संविधान हमको बोलता है कि पार्लियामेंट मेंबर अपनी बात रख सकते हैं, लेकिन उन्‍होंने इसको कांट-छांटकर मेरा पूरा जितना भी कहना था, उसको उन्‍होंने निकाल दिया।

ठीक है वो ज्ञानी हैं, समझदार हैं, हिन्‍दी मुझसे अच्‍छी जानते हैं।मेरी हिन्‍दी तो छोटी-मोटी है, प्राइमरी स्‍कूल में पढ़े उतनी ही है और मैं आम आदमी की हिन्‍दी बोलता हूं, हिन्‍दुस्‍तानी बोलता हूं तो इसीलिए मेरे हिन्‍दी में कुछ कमजोरी उनको दिखी होगी और मेरे पढ़ने में कुछ उनको मुश्‍किल हो गई होगी शायद… तो ये भी निकाल दिया।

ये बड़ा महत्‍वपूर्ण है आगे, इसलिए मैंआपको पढ़कर थोड़ा सुना रहा हूं, जो हमने नोट तैयार किया है, तो:

  1. क्या अडानी घोटाले की जाँच नहीं होनी चाहिए?मैं ये पूछना चाहता हूं।
  2. क्‍या ज्‍वाइन्‍ट पार्लियामेंट्री कमेटी नहीं बैठानी चाहिए? और ये नई प्रथा नहीं है, 3-4-5 दफा पार्लियामेंट में ऐसी घटनाएं घटी हैं
  3. क्या LIC का पैसा, जो अडानी की कंपनियों में लगा है, उसकी गिरती कीमतों पर सवाल नहीं पूछा जाना चाहिए?
  4. क्‍या SBI व दूसरे बैंकों द्वारा अडानी को दिए गए 82,000 करोड़ रु. के लोन के बारे में सवाल नहीं पूछा जाना चाहिए?
  5. क्या यह नहीं पूछना चाहिए कि अडानी के शेयरों में 32 प्रतिशत से ज्यादा गिरावट के बावजूद LIC और SBI का 525 करोड़ रु. अडानी FPO में क्यों लगवाया गया?ये तो पूछना चाहिए, जनता का पैसा इसमें लगा हआ है, हर एक की जिंदगी उसमें लगी हुई है।
  6. क्या यह नहीं पूछा जाना चाहिए कि LIC और SBI के शेयरों की कीमत शेयर बाजार में 1 लाख करोड़ रु. से ज्यादा क्यों गिर गई?और दूसरा प्रश्‍न क्या यह नहीं पूछा जाना चाहिए कि टैक्‍स हैवन्‍स से अडानी की कंपनियों में आने वाला हजारों करोड़ रुपया किसका है?
  7. क्‍या ये पूछना गलत है कि मोदी जी ने अडानी के एजेंट के तौर पर श्रीलंका और बांग्लादेश में ठेके दिलवाए?ये तो पत्रिका में आया था आप सबको मालूम है, जब हमने अंदर भी कहा, उस वक्‍त किसी ने पूछा नहीं।
  8. क्या यह सच है कि फ्रांस की “टोटल गैस”ने अडानी की कंपनी में होने वाले 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर के निवेश को जाँच पूरी होने तक रोक दिया है? ये भी हम पूछ रहे हैं।
  9. क्या दुनिया के सबसे बड़े शेयर इन्वेस्टर, नॉर्वे सोवेरन फंड ने 200 मिलियन अमेरिकी डॉलर के अडानी के सारे शेयर बेच दिए हैं?
  10. क्या एमएससीआई ने अडानी की कंपनियों की रैंकिंग गिरा दी है?
  11. क्या Standard Chartered, City Group, Credit Suisse ने अडानी के डॉलर बॉन्ड्स पर लोन देना बंद कर दिया है?
  12. क्या Dow Jones ने अडानी की कंपनी को “Sustainability Indices”से हटा दिया है?तो फिर मोदी सरकार अडानी की जाँच क्यों नहीं करवाती?
  13. क्या कारण है कि मोदी जी और पूरी सरकार संसद में अडानी शब्द भी नहीं बोलने देती?
  14. क्या कारण है कि RBI, SEBI, ED, SFIO, Corporate Affairs Ministry, Income Tax, CBI, सबको लकवा मार गया है, क्‍या दिख नहीं रहा उनको, क्‍या सिर्फ दूसरे लोग ही दिखते हैं, इतने घोटाले होने के बावजूद ये संस्‍थाएं क्‍यों चुप बैठी हैं?

इसीलिए ये हमारा काम है सरकार को पूछना, जनता ने हमको चुनकर भेजा है, हमारी जिम्‍मेदारी होती है, हमारी रेस्‍पॉन्‍सबिल्‍टी होती है कि जनता के पैसे की हिफाजत भी करें, उनके हकों की रक्षा भी करें और जो घोटाले हो रहे हैं देश में, इसका परिणाम जो आम जनता पर हो रहा है, उसके बारे में पू्छना हमारा फर्ज होता है, लेकिन हमको उन्‍होंने वहां पर न कमेटी बैठानी की सहमति दी और हमें कहने भी नहीं दिया, यहां तक कि जो-जो सवाल हमने उठाने की कोशिश की, उसको भी वहां पर बोलने की इजाजत नहीं मिलने की वजह से एजिटेट होगए और वहां पर डिमान्ड की ‘ज्‍वाइन्‍ट पार्लियामेंट्री कमेटी बैठाओ, बैठाओ, बैठाओ’ तो उन्‍होंने नहीं सुना। तो इन्‍हीं शब्‍दों के साथ मैं अपनी बातों को समाप्‍त करता हूं और जो बजट पर उत्तर चल रहा है… इसीलिए मैं संक्षिप्‍त में आपको भी बोलूंगा कि एक-दो प्रश्‍न अगर कुछ हैं तो आप कह सकते हैं।

एक प्रश्न के उत्तर में श्री मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि देखिए, ऐसी चीजों पर पार्लियामेंट्री डेमोक्रेसी में हमें बार-बार अपनी बात को रखते रहना, सत्यता को बताते रहना, जो कुछ भी अपने पास मटेरियल है, सदन के सामने रखना या उनको देना, ये हमारा काम है। अगर सरकार डेमोक्रेटिकली नहीं चलना चाहती है, ऑटोक्रेसी की बात करती है, अब वो डिक्टेटरशिप की बात करती हैतो जनता ही इनसे छुटकारा पाएगी।

एक अन्य प्रश्न पर कि इस मामले को आप लोग क्या आगे लेकर जाएंगे?श्री खरगे ने कहाकि नहीं, ये देखिए, हमने रूल के मुताबिक, प्रोसीजर के मुताबिक जो कहना था, वो कहा है और उन्हें चिट्ठी भी लिखी है और मैंने मिलकर भी उन्हें कहा है कि ये देखिए, हमने ये चिट्ठी लिखी है और इसके तहत आप एक्शन लीजिए, केवल मेरे शब्दों को एक्सपंज (expunge) करने से जो एलिगेशन लगे हुए जनता की ओर से, मीडिया की ओर से, वो तो साफ नहीं होते…तो इसलिए अपना काम हम लोगों ने किया।

एक अन्य प्रश्न पर कि अब आप लोगों के पास विकल्प क्या बचा हुआ है? श्री खरगे ने कहा कि आप देखिए, हमारा फर्ज ये है कि सदन में इसे उठाएंगे। जब वो मानेंगे नहींतो हमारे लोगों ने तो हर डिस्ट्रिक्ट में इसके बारे में एजिटेट किया है, आप सभी को मालूम है, आपने भी बताया इस बारे में। तो संसद के अंदर भी तो हम लड़ रहे हैं, अब संसद चल रही है और संसद के बाहर भी लड़ते रहेंगे, लोगों को बताते रहेंगे।

एक अन्य प्रश्न पर कि राज्यसभा के सभापति के बारे में आपकी क्या राय है, जैसा कि उन्होंने आपकी बातों को एक्सपंज किया? श्री खरगे ने कहा कि नहीं, मेरी बातों को चेयरमैन साहब ने एक्सपंज किया।वहाँ लोकसभा में स्पीकर साहब ने राहुल जी की बातों को एक्सपंज किया। अब इसके ऊपर ही आप सोचिए कि डेमोक्रेसी के नाम पर क्या चल रहा है और ऐसा कभी नहीं देखा, मैं 5 साल वहाँ भी फ्लोर लीडर था, मेरा एक शब्द भी वहाँ एक्सपंज नहीं हुआ और कर्नाटक में मैं 9 साल रेगुलर था और 5 साल मैं डिप्टी लीडर था, एक शब्द वहाँ पर भी एक्सपंज नहीं हुआ 14 साल में। ये पहली बार देख रहा हूं यहाँ पर अपनी शायरी से लेकर वॉशिंग मशीन तक सब अनपार्लियामेंट्री- अनपार्लियामेंट्री।

एक अन्य प्रश्न पर कि इस मामले पर क्या पूरी विपक्षी एकजुटता ना दिखने की वजह से सरकार एक्सपंज कर रही है ? श्री खरगे ने कहा कि नहीं, इस इशू पर सब इकट्ठे थे। देखो, पॉलिटिकली हर स्टेट में उनकी अलग-अलग पार्टियां हैं, तो वो लड़ते रहेंगे अपने उसूलों पर। लेकिन इस मुद्दे पर ये ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी के बारे में तो पहले ही दिन सभी ने मिलकर मेरे ही चेंबर में 17 पार्टियां एक होकर बोलीं, फिर आपके सामने हम विजय चौंक पर आए, वहाँ पर भी हमने आपको बताया। तो एकता तो है ही इस विषय पर और सभी लोग इस देश को बचाना चाहते हैं और गरीब लोगों की संपत्ति की हिफाजत करना चाहते हैं, तो इसमें कोई दो राय नहीं है।

On another questionabout Rajya Sabha Chairperson’s conduct, Shri Mallikarjun Kharge said- No, I don’t want to say anything about that. When you have seen, I am very thankful to you. You have personally seen on TV and everywhere, how the matter was going there. So, I leave it to your judgment… how was the situation?

एक अन्य प्रश्न के उत्तर में श्री खरगे ने कहा कि देखिए, मैंने पहले ही कहा, मैं पहली बार देख रहा हूं मेरी जिंदगी में, 51 साल के लेजिस्लेटिवकार्यकाल में कि इतना बड़ा एक्सपंज…6 प्वाइंट मेरे, 18 प्वाइंट राहुल जी के, किसी ने नहीं किया, पीछे भी नहीं, आगे भी नहीं। मैं वहाँ पर लोवर हाउस में भी लीडर था, कभी नहीं हुआ। अपर हाउस में पहले नायडू साहब थे। लड़ते थे इशू पर रूल के तहत, लेकिन ये पहली बार हो रहा है। सभी लोग सोचेंगे उसके बारे में, फिर देखेंगे।

एक अन्य प्रश्न पर कि चेयरमैन साहब ने कहा था कि नेशनल इंटरेस्ट की ही बातें होनी चाहिए, श्री खरगे ने कहा कि देखो, यहाँ पर अब मैं ऐसा कहूंतो कहेंगे कि देखिए, ये चेयरमैन के ऊपर एसपर्शन हैं। आप ने देखा…अच्छा हुआ, आप कहें… अच्छा लगता है मुझे, क्योंकि अगर हम कहतेतो उसको बहुत दूसरे तरीके से लिख देते और ये नेशनल इंटरेस्ट नहीं तो क्या है – एलआईसी डूब रही है, एसबीआई डूब रहा है, पंजाब नेशनल बैंक डूब रहा है, अनेक जो मनी लेंडिंग बैंक है, जो इन्वेस्टर हैं, वो डूब रहे हैं और ये हम नेशनल इंटरेस्ट की बात नहीं कर रहे हैं! और उन्होंने जो कहा, नेशनल इंटरेस्ट की कोई बात नहीं कही…नेहरू जी पर, गांधी जी पर और नेहरू, गांधी का नाम बदलना। अरे देश को क्या बना रहे हैं? कुछ बना है, वो तो बोलिए। हमने तो बड़े-बड़े आईआईटी और एम्स… ऐसेबड़े संस्थान बनाए, जिस देश में खाने के दाने के लिए लोग तरसते थे, वहां बड़े-बड़े डैम बनाकर आज अनाज का भंडार भर दिया और ऐसे लोगों से पूछ रहे हैं कि क्या किया 60 साल में? क्या किया…आपका पेट भरा।

एक अन्य प्रश्न पर कि विपक्ष को जब बोलने ही नहीं दिया जाएगा, तो पार्लियामेंट में काम कैसे होगा? श्री खरगे ने कहा देखो, यही तो मुश्किल है, हम इसी के लिए तो लड़ रहे हैं। हम अंदर जाते हैं, उनको मनवाते हैं। ये बात उनके सामने रखते हैं। साहब इस शेर में क्या गलती है, बोलिए। तो उस वक्त वो बोलते हैं, ठीक है लेकिन…लेकिन बोलकर वहाँ पर बदल जाते हैं, अब मैं क्या करूं। तो इसलिए ज्यादा कुछ उनके बारे में बोलना भी नहीं चाहता हूं। Ihave very great respect for him and पार्लियामेंट्री डेमोक्रेसी हम चाहते हैं, इसलिए थोड़ी सहनशीलता से हम चल रहे हैं।

प्रधानमंत्री द्वारा नेहरू सरनेम न लगाए जाने के बारे में पूछे एक अन्य प्रश्न के उत्तर में श्री रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा कि केवल हिंदुस्तान की संस्कृति को ना जानने वाला एक नासमझ व्यक्ति ही इतने जिम्मेदार पद पर बैठ कर यह कह सकता है, जो प्रधानमंत्री जी ने कहा। इस देश के किसी व्यक्ति से पूछिए, अपने नाना का सरनेम कौन लगाता है, भइया अपने नाम के साथ? अब उन्हें ये जानकारी भी नहीं है, अब उन्हें इस देश की संस्कृति की भी जानकारी नहीं है, तो इस देश को भगवान ही बचा सकता है।

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