जयराम रमेश, संसद सदस्य, महासचिव (संचार) भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा जारी वक्तव्य

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सुप्रीम कोर्ट की एक्सपर्ट कमेटी ने अडानी महाघोटाले पर SEBI के दृष्टिकोण के संबंध में सॉफ्ट लेकिन दोषी ठहराने जैसी भाषा का इस्तेमाल किया। इसमें दावा किया गया कि SEBI की तरफ़ से कोई विनियामक विफलता नहीं हुई है, लेकिन “विचित्र रूप से” कई प्रमुख विनियामक विफलताओं की बात कही गई है। इनमें नियमों को बदला जाना भी शामिल है, जिसकी वजह से अपारदर्शी विदेशी फंड्स को भारी मात्रा में अडानी की कंपनियों में निवेश करने की इज़ाजत मिली। SEBI के बोर्ड की 28 जून 2023 की बैठक के बाद सख़्त रिपोर्टिंग नियमों को फिर से लागू करना नियामक संस्था द्वारा सार्वजनिक रूप से अपराध स्वीकार करना दिखाता है।

SEBI का बोर्ड यह स्वीकार करता है कि उसे “न्यूनतम पब्लिक शेयर होल्डिंग की आवश्यकता जैसे नियमों की अनदेखी” को रोकने के लिए और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है, ठीक यही आरोप तो अडानी ग्रुप के ख़िलाफ़ है। इसलिए इसने उन विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों के लिए “स्वामित्व, आर्थिक हित और नियंत्रण के संबंध में अतिरिक्त विस्तृत स्तर के खुलासे” को अनिवार्य कर दिया है, जो (1) अपनी भारतीय संपत्ति का 50% से अधिक एक ही कॉर्पोरेट ग्रुप में रखते हैं या (2) भारतीय बाज़ार में 25,000 करोड़ रुपए से अधिक रखते हैं। इसमें यह भी कहा गया है कि लाभकारी (यानी वास्तविक) स्वामित्व पर धन शोधन निवारण नियमों को मार्च 2023 में कड़ा कर दिया गया है।

इनमें से कोई भी कदम मोदानी महाघोटाले पर व्यापक जन आक्रोश और कांग्रेस पार्टी द्वारा “हम अडानी के हैं कौन-HAHK” श्रृंखला के तहत पूछे गए लगातार 100 सवालों के बिना संभव नहीं था। लोगों के आक्रोश और कांग्रेस पार्टी द्वारा लगातार मामले को हाइलाइट करते रहने से कार्रवाई लिए दबाव बना। एक्सपर्ट कमिटी की रिपोर्ट को “क्लीन चिट” के रूप में दिखाने वालों के लगातार प्रयासों के बावजूद, SEBI द्वारा बाद में की गई सभी कार्रवाइयां अपराध स्वीकार करने और पैसों के प्रवाह के संबंध में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए देर से किए गए प्रयासों का संकेत देती हैं।

14 अगस्त 2023 को आने वाली SEBI की रिपोर्ट का इंतज़ार है। हम महत्वपूर्ण सवालों पर स्पष्टता की उम्मीद करते हैं, जैसे कि अडानी की कंपनियों में 20,000 करोड़ रुपए कहां से आए।

जैसा कि हम लगातार कह रहे हैं, सुप्रीम कोर्ट की एक्सपर्ट कमेटी और SEBI की अपनी जांच का दायरा सीमित है। सिर्फ एक JPC ही अडानी ग्रुप के साथ पीएम मोदी के घनिष्ठ संबंधों की जांच कर सकती है। साथ ही इस बात का पता लगा सकती है कि अपने करीबी दोस्तों की मदद के लिए कानूनों, नियमों और विनियमों को बदलकर भारत और विदेशों में अडानी के व्यवसाय को उन्होंने व्यक्तिगत रूप से कैसे सुविधाजनक बनाया है। मोदानी महाघोटाले के सभी पहलुओं को सिर्फ JPC ही सामने ला सकती है।

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