मोदी सरकार ने पूंजीपतियों को फ़ायदा पहुंचाने के लिए देश की खाद्य व्यवस्था और कृषि सेक्टर को तार-तार करने की साज़िश रची- कांग्रेस

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*साबित हो गया है कि भाजपा सरकार न किसान की है, न जवान की है, ये सिर्फ धनवान की है- दीपेन्द्र सिंह हुड्डा

*किसानों के अधिकारों को कुचलने के लिए सरकार ने एनआरआई उद्योगपति की बात सुनी और पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए कृषि कानून लाई

कांग्रेस ने कहा कि कृषि विरोधी काले कानूनों को लेकर हुए नए खुलासे से साफ हो गया है कि मोदी सरकार ने किसानों के अधिकारों को कुचलने और चुनिंदा अरबपतियों को फायदा पहुँचाने के लिए नियमों को दरकिनार किया। मोदी सरकार ने अपने करीबी एनआरआई उद्योगपति के कहने पर टास्क फ़ोर्स बनाई और कृषि सेक्टर को प्राइवेट हाथों में देने का क़दम उठाया। मोदी सरकार चुनिंदा पूंजीपतियों को फ़ायदा पहुंचाने के लिए कृषि कानून लाई थी और देश की पूरी खाद्य व्यवस्था एवं कृषि सेक्टर को तार-तार करने की साज़िश रची थी।

कांग्रेस के राज्यसभा सांसद और प्रवक्ता दीपेन्द्र सिंह हुड्डा ने नई दिल्ली स्थित कांग्रेस मुख्यालय में पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा कि मशहूर पत्रकार मंच वेबसाइट ‘द रिपोर्टर्स कलेक्टिव’ ने खुलासा किया है कि कृषि कानून आने से पहले भाजपा के करीबी एनआरआई उद्योगपति शरद मराठे ने नीति आयोग के प्रमुख राजीव कुमार को एक प्रस्ताव भेजा था। राजीव कुमार जी ने श्री शरद मराठे की ही चिट्ठी पर अमल करते हुए किसानों की आय दोगुनी करने की आड़ में एक बैठक बुलाई और कृषि सेक्टर को प्राइवेट हाथों में देने का क़दम उठाया। जबकि शरद मराठे कोई कृषि विशेषज्ञ नहीं हैं, मगर उनके कहने पर पूरा नीति आयोग जिसके अध्यक्ष खुद प्रधानमंत्री होते हैं, वह हरक़त में आ गया। शरद मराठे ने 16 लोगों की एक हाई लेवल टास्क फ़ोर्स के गठन का सुझाव दिया। इस टास्क फ़ोर्स में मोदी सरकार के नजदीकी उद्योगपति अडानी समूह के प्रतिनिधि भी थे, जिन्होंने आवश्यक वस्तु अधिनियम को ख़त्म करने का प्रस्ताव रखा।

हुड्डा ने कहा कि इसके बाद मोदी सरकार ने कोरोना महामारी के बीच जून 2020 में तीन काले कृषि अध्यादेश पारित कर विधेयक पेश किया, जिसे सितंबर 2020 में कानून के रूप में पेश किया गया। मोदी सरकार ने इसमें अपनी दलवई समिति द्वारा सुझाए गए किसानों के लिए सुरक्षा उपाय हटा दिए।

हुड्डा ने कहा कि 1955 में बने आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत सरकार बाजार में कीमतों में उतार-चढ़ाव को रोकने और जमाखोरी पर अंकुश लगाकर खाद्य भंडार को विनियमित करने का उपाय करती है। बिचौलिए अक्सर बड़ी मात्रा में अनाज जमा करते हैं और जब कीमतें बढ़ती हैं तो अनाज की कमी का फायदा उठाकर उसे बेचकर भारी मुनाफा कमाते हैं। मोदी सरकार के करीबी इसी आवश्यक वस्तु अधिनियम को ख़त्म करना चाहते थे, जिसे तीन कृषि कानून लाकर ख़त्म भी कर दिया गया था। मोदी सरकार ने चालबाज़ी से संस्थानों में अपना व्यक्ति बैठाकर, चंद अरबपति पूँजीपतियों को मुनाफ़ा कमवाया और अन्नदाता किसानों के हक़ छीनने का कुत्सित प्रयास किया।

हुड्डा ने कहा कि इन तीन कृषि कानूनों से होने वाले भयंकर नुकसान को किसान समझ गए। एक साल से ज्यादा समय तक चले शांतिपूर्ण संघर्ष और 750 किसानों की शहादत के बाद आखिरकार इस सरकार को ये तीनों काले कानून वापस लेने ही पड़े। एक साल तक चले किसान आंदोलन के दौरान 9 दिसंबर, 2021 को किसान संगठनों और सरकार के बीच एमसएसपी कमेटी गठित करने का जो समझौता हुआ उससे भी अब तक लागू नहीं किया गया है। सरकार का किसानों के साथ जो समझौता हुआ था वो भी किसान के साथ एक विश्वासघात साबित हुआ और इस सन्दर्भ में जो कमेटी गठित करने की बात हुई थी उसमें भी किसान संगठनों को कोई तवज्जो नहीं दी गई।

हुड्डा ने सरकार से सवाल पूछते हुए कहा कि जब दलवई कमेटी की तीन हजार पेज की रिपोर्ट मौज़ूद थी, तो नियमों को दरकिनार कर सरकार ने एनआरआई उद्योगपति की बात क्यों सुनी और टास्क फ़ोर्स क्यों बनाई? आख़िर मोदी सरकार के लिए चुनिंदा पूंजीपतियों का फ़ायदा कराना इतना क्यों ज़रुरी था, जिसके चलते उन्होंने देश की पूरी खाद्य व्यवस्था और कृषि सेक्टर को तार-तार करने की साज़िश रची?

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