आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता दिलीप पांडे ने कहा कि भाजपा द्वारा नियुक्त पंजाब के राज्यपाल ने विधानसभा सत्र से पहले लिस्ट ऑफ बिज़नेस मांगकर लोकतंत्र की हत्या की है। संविधान में साफ़ लिखा है कि राज्यपाल मंत्रीमंडल के सुझाव पर काम करेंगे। मंत्रिमंडल के काम, विधान सभा में हस्तक्षेप नहीं करेंगे। पंजाब के राज्यपाल ने अपने पद की गरिमा और कुर्सी के गौरव और प्रतिष्ठा का बिल्कुल भी ख्याल नहीं रखा है। राज्यपाल ने सत्र से पहले ही तमाम सीमाएं को लांघकर और लोकतांत्रिक मूल्यों को पीछे छोड़ते हुए लिस्ट ऑफ बिज़नेस की मांग की है। देश में आजादी के 75 सालों में किसी भी राज्य के गवर्नर ने एडवांस में विधानसभा स्पीकर से लिस्ट ऑफ बिजनेस की डिमांड नहीं की। यह लोकतांत्रिक मूल्यों की हत्या करने और हनन की किताब में एक नई इबादत और अध्याय लिखी जा रहा है।
आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता और विधायक दिलीप पांडे ने आज पार्टी कार्यालय में प्रेसवार्ता किया। उन्होंने कहा कि पंजाब से डेमोक्रेटिक फैब्रिक को बर्बाद करने की खबर आई है कि गवर्नर ने पहले सत्र चलाने की अनुमति दी, फिर उसके बाद अनुमति को वापस ले लिया। यह पंजाब की जानता द्वारा चुनी हुई सरकार, विधानसभा और विधानसभा के अध्यक्ष सहित सब के संवैधानिक अधिकारों का हनन है। विधानसभा में जो सत्र बुलाया जा रहा था। उसमें कौन से मुद्दे उठने वाले हैं, जिसे लिस्ट ऑफ बिज़नेस कहा जाता है। उस लिस्ट ऑफ बिजनेस में बड़ी रूचि जाग उठी। राज्यपाल ने सत्र से पहले ही तमाम सीमाएं लांघते और लोकतांत्रिक मूल्यों को पीछे छोड़ते कर लिस्ट ऑफ बिज़नेस मांग लिया।
विधायक दिलीप पांडे ने कहा कि राज्यपाल एक जानता द्वारा चुनी हुई सरकार के कामकाज में सीधा हस्तक्षेप कैसे कर सकते हैं? जहां जानता द्वारा चुनी हुई सरकार होती हैं, वहां लोकतंत्र की सर्वोच्च मंदिर विधानसभा और उसके अध्यक्ष की संसद सर्वोपरि होती है। ऐसे में वहां के राज्यपाल और उपराज्यपाल की सहमति सत्र को चलाने को लेकर औपचारिकता से बढ़कर कुछ भी नहीं है। यह संविधान में लिखा हुआ है कि हर परिस्थिति में सिर्फ और सिर्फ मंत्रिमंडल की सलाह और मशवरा से उनको काम करना है। यही उनकी अनिवार्यता और आवश्यकता है। किसी भी परिस्थिति में गवर्नर सुप्रीमो बनकर मंत्रिमंडल के फैसले और विधानसभा की प्रक्रिया को अपने कंट्रोल में लेने की कोशिश नहीं कर सकता है। देश को 75 साल आजाद हुए हो गए, लेकिन इन 75 सालों में किसी भी राज्य के गवर्नर ने एडवांस में विधानसभा स्पीकर से लिस्ट ऑफ बिजनेस की डिमांड नहीं की है। यह लोकतांत्रिक मूल्यों की हत्या करने और हनन की किताब में एक नई इबादत और अध्याय लिखी जा रही है। राज्यपाल महोदय कल को यह कह दे कि आगामी विधानसभा सत्र में जो-जो विधायक जनता की प्रतिनिधि होने के नाते अपनी बात रखने वाले हैं, उन तमाम विधायकों की स्पीच की लिस्ट चाहिए। वह क्या और कितना बोलेगा पहले उनका मूल्यांकन करने के बाद तय करूंगा।
विधायक दिलीप पांडे ने कहा कि अब तक ऐसा कही नहीं हुआ है लेकिन पंजाब का गवर्नर साहब इसका शुरुआत कर रहे हैं। अगर ऐसा हो जाए तो लोकतंत्र और लोकतंत्र की सर्वोच्च मंदिर कहां बचा और जो संविधान में लिखित विधानसभा की शक्तियां है वह कहां बची। संविधान के हिसाब से चुनी हुई सरकार को विधानसभा का सत्र भी नहीं चलाने दिया जाए और काम नहीं करने दिया जाए, तो लोकतंत्र कैसे बचेगा। यह पूरे देश की जानता और गवर्नर साहब भी जानते हैं कि विधानसभा की कार्रवाई और लिस्ट आफ बिजनेस तय करने का सर्वाधिकार सिर्फ और सिर्फ स्पीकर साहब और विधानसभा की बिजनेस एडवाइजरी कमेटी को है। यह देश के संविधान विधि में बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि इतने महत्वपूर्ण संवैधानिक पद पर बैठे हुए व्यक्ति ने अपने पद की गरिमा और कुर्सी का गौरव और प्रतिष्ठा का बिल्कुल भी ख्याल नहीं रखा। अपने स्थिति और कार्रवाई की वजह से लोकतांत्रिक मूल्यों के हनन के सीढ़ी पर बहुत तेजी से ऊपर चढ़ गए है।