देश से राक्षसी वृत्ति मिटाने व युवा पीढ़ी को संस्कारित करने के उद्देश्य को लेकर कार्य करने वाले श्री देवालय संघ के पंजाबी बाग केंद्रीय कार्यालय में नव-वर्ष के आगमन पर नए संकल्पों और बीते वर्ष के कार्यों व उपलब्धियों पर चर्चा करने हेतु पत्रकारवार्ता का आयोजन किया गया

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इस मौके पर देवालय संघ के संस्थापक एवं मार्गदर्शक आचार्य श्री देव श्री श्री वेदप्रकाश गुप्ता ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए बताया कि वर्तमान दौर के भारत में सामाजिक और आध्यात्मिक वातावरण में बहुत तेज गति से बदलाव हो रहा है।
परिणाम स्वरूप भारत भूमि के निवासी, बालक, युवा और बुजुर्ग सभी की सात्विक प्रवृत्तियाँ धीरे-धीरे राक्षसी झुकाव लेती जा रही हैं, नतीजा है कि लोग अपने संस्कार एवं संस्कृति से विमुख होते जा रहे हैं। लोगों का संस्कार एवं संस्कृति से विमुख होना हमारे राष्ट्र व सनातन संस्कृति के लिए घातक सिद्ध हो रहा है। हमारा श्री देवालय संघ भारतवासियों के जनमानस में व्याप्त इन सभी कुरीतियों, भ्रांतियों व दिग्भ्रमित करने वाले वातावरण को दूर करने के कार्य करता है।
हमारा लक्ष्य “सभी सुखी हों , समृद्ध हो , सर्वत्र शांति हो”

संस्कृति रक्षक की उद्घोषणा:

• परमपिता परमात्मा (भगवान अल्लाह वाहेगुरू-गॉड कुछ भी कहो) सर्व शक्तिमान है। मैं परमपिता परमात्मा का अंश हूँ। मुझे परमपिता परमात्मा ने सब प्रकार की शक्ति अर्जित करने की शक्ति दी है। मैं शक्तिवान् बनूंगा। शक्तिवान् बनकर दान करूंगा, दीन-दुःखी की सहायता करूंगा, राक्षसी वृत्ति को समाप्त करूंगा।

• मैं यह मानता हूँ कि हर प्राणी में, हर वस्तु में, हर जगह परमपिता परमात्मा विद्यमान हैं। सभी उसकी संतान हैं। केवल राक्षसी वृत्ति वालों को छोड़कर मैं अन्य किसी से भी छोटा-बड़ा, ऊँचा-नीचा मान कर भेदभाव नहीं करूंगा। सात्विक वृत्ति वालों को संगठित करके शक्तिशाली बनाऊँगा, जिससे कि राक्षसी वृत्ति समाप्त की जा सके। संगठन में ही शक्ति है।

• राक्षसी वृत्ति कहती है कि मेरे अनुसार चलो वरना सताऊँगा – मार दूंगा। मैं कहता हूँ कि सभी सुखी हो सभी समृद्ध हो सर्वत्र शांति हो। सभी मिलकर रहें, मिल कर आगे बढ़ें, एक दूसरे की न्यायोचित भावना व स्वतंत्रता का सम्मान करें।

आध्यात्मिक और सामाजिक वातावरण में सुधार के लिए श्री देवालय संघ निम्न संकल्पों के साथ निरंतर कार्यशील है:–

१. मैं मानता हूँ की कण – कण में हर जगह पर परमपिता परमात्मा का वास है।
२. मै किसी भी प्राणी से जात-पात या ऊँच-नीच का भेदभाव नहीं करूँगा।
३. मैं हमेशा यही कामना करता हूँ की सभी सुखी हों, सभी समृद्ध हों, सर्वत्र शांति हो।
४. मैं संस्कृति रक्षक बनकर संस्कार व संस्कृति की रक्षा के लिए कार्य करूँगा।
५. मैं शक्तिशाली बनकर राक्षसी शक्तियों और वृत्तियों को समाप्त करने के लिए कार्य करूँगा।
६. मैं मानवता की भलाई के लिए अपनी कमाई में से एक रूपया प्रतिदिन अवश्य निकलूंगा।
७. मैं सात्विक वृत्ति वालों को संगठित करने व शक्तिशाली बनाने के “श्री देवालय संघ” के कार्य को आगे बढ़ाने के
लिए प्रतिदिन कुछ समय (१६ मिनट) अवश्य दूंगा।

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